Ayodhya Ram Janmabhoomi News: रामनगरी का खोया गौरव लौटाने के लिए 491 वर्ष के बीच हुए अनगिनत संघर्ष

Ayodhya Ram Janmabhoomi Newsजन्मभूमि की मुक्ति के लिए 76 युद्ध इतिहास में दर्ज हैं। कुछ बार ऐसा भी हुआ जब मंदिर के दावेदार राजाओं-लड़ाकों ने कुछ समय के लिए इस पर कब्‍जा भी क‍िया।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Wed, 05 Aug 2020 09:06 AM (IST) Updated:Wed, 05 Aug 2020 08:23 PM (IST)
Ayodhya Ram Janmabhoomi News: रामनगरी का खोया गौरव लौटाने के लिए 491 वर्ष के बीच हुए अनगिनत संघर्ष
Ayodhya Ram Janmabhoomi News: रामनगरी का खोया गौरव लौटाने के लिए 491 वर्ष के बीच हुए अनगिनत संघर्ष

अयोध्या, (रमाशरण अवस्थी)। यह नई सुबह है। सिर्फ रामनगरी के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के सनातन धर्मावलंबियों के जीवन का यह नया सवेरा है। कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भव्य राममंदिर की आधारशिला रखेंगे तो सप्तपुरियों में श्रेष्ठ अवधपुरी का पांच सदी पुराना संताप मिट जाएगा। यह अवसर यूं ही नहीं आया। इसके पीछे 491 वर्ष का अथक संघर्ष और अनगिनत बलिदान छिपे हैं। 21 मार्च 1528 को बाबर के आदेश पर सेनापति मीर बाकी ने राममंदिर को ध्वस्त किया और फिर यहां विवादित ढांचा खड़ा कर दिया। सनातन संस्कृति की अस्मिता को दागदार करने वाला यह ऐतिहासिक कलंक अब धुलने जा रहा है, यद्यपि इसे मिटाने की कोशिशें इसके वजूद में आने के साथ ही शुरू हो गई थीं।

मंदिर तोड़ने की घटना के बाद उसी साल भीटी रियासत के राजा महताब सिंह, हंसवर रियासत के राजा रणविजय सिंह, रानी जयराज कुंवरि, राजगुरु पं. देवीदीन पांडेय आदि के नेतृत्व में मंदिर की मुक्ति के लिए सैन्य अभियान छेड़ा गया। इस हमले ने शाही सेना को विचलित किया, लेकिन उनकी बड़ी फौज के आगे मंदिर मुक्ति का यह संग्राम सफलता की परिणति न पा सका। 1530 से 1556 ई. के मध्य हुमायूं एवं शेरशाह के शासनकाल में भी ऐसे 10 युद्धों का उल्लेख मिलता है। इन युद्धों का नेतृत्व हंसवर की रानी जयराज कुंवरि एवं स्वामी महेशानंद ने किया। रानी स्त्री सेना का और महेशानंद साधु सेना का नेतृत्व करते थे। इन युद्धों की प्रबलता का अंदाजा रानी और महेशानंद की वीरगति से लगाया जा सकता है। जन्मभूमि की मुक्ति के लिए ऐसे 76 युद्ध इतिहास में दर्ज हैं। इनमें कुछ बार ऐसा भी हुआ, जब मंदिर के दावेदार राजाओं-लड़ाकों ने कुछ समय के लिए विवादित स्थल पर कब्जा भी जमाया, लेकिन यह स्थायी नहीं रह सका।

युगों-युगों तक अपराजेय रही अयोध्या अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है, जहां युद्ध न हो या जिसे युद्ध से जीता न जा सके। ब्रह्मा के मानसपुत्र महाराज मनु ने सृष्टि के प्रारंभ में जिस अयोध्या का निर्माण किया और अथर्व वेद में जिसे अष्ट चक्र-नव द्वारों वाली अत्यंत भव्य एवं देवताओं की पुरी कहकर प्रशंसित किया गया, वह अयोध्या नाम की गरिमा के सर्वथा अनुकूल भी थी। मनु की 64वीं पीढ़ी के भगवान राम के समय तो अयोध्या के वैभव और मानवीय आदर्श का शिखर प्रतिपादित हुआ, लेकिन उनके पूर्व के सूर्यवंशीय नरेशों के प्रताप-पराक्रम से सेवित-संरक्षित अयोध्या अपराजेय ही नहीं, युद्ध की जरूरत से ऊपर उठी हुई थी।

महाभारत युद्ध के समय भी अयोध्या में सूर्यवंशियों का शासन था। उस समय अयोध्या के राजा वृहद्बल ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया और अभिमन्यु के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। महाभारत युद्ध के बाद तीर्थयात्रा करते हुए अयोध्या पहुंचे भगवान कृष्ण ने नगरी का जीर्णोद्धार कराया। दो हजार वर्ष पूर्व भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का नवनिर्माण कराते हुए जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर का निर्माण कराया। 21 मार्च 1528 को यही मंदिर ही तोड़ा गया था। 

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