ICU में पेट के बल लेटकर कोरोना से जंग जीत रहे मरीज, 'प्रोन वेंटिलेशन तकनीक' हो रही कारगर
Coronavirus Treatment News लखनऊ में कोरोना से ग्रसित गंभीर मरीज प्रोन वेंटिलेशन तकनीक से हो रहे हैं ठीक आइसीयू में पेट के बल लिटाकर किया जा रहा है इलाज।
लखनऊ [संदीप पांडेय]। कोरोना वायरस मरीजों में सबसे पहले श्वसन तंत्र पर हमला कर रहा है। खासकर, फेफड़े को एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) का शिकार बना रहा है। लिहाजा, शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई गड़बड़ा जाती है। ऐसे में मरीज को वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है। इस दौरान प्रोन वेंटिलेशन (पेट के बल लिटाना) तकनीक गंभीर मरीजों के लिए वरदान बन रही है। लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के आइसीयू में पेट के बल लिटाकर मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इसमें गंभीर मरीजों की रिकवरी रेट बेहतर मिली है।
लोहिया के कोविड अस्पताल में बीस बेड का आइसीयू
लोहिया संस्थान को कोविड का लेवल थ्री अस्पताल बनाया गया है। सौ बेड के इस अस्पताल में 20 बेड का आइसीयू है। अब तक दो सौ से अधिक कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया गया है। वहीं, 16 मरीजों को हालत गंभीर होने पर आइसीयू में शिफ्ट किया गया। इनमें से तीन मरीजों की मौत हुई, वहीं 13 गंभीर मरीजों ने जिंदगी की जंग जीतने में कामयाबी हासिल की है। गंभीर मरीजों की रिकवरी में डॉक्टरों ने प्रोन वेंटिलेशन, लेटरल वेंटिलेशन और सुपाइन वेंटिलेशन तकनीक अपनाई। डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना के अधिकतर मरीजों में एआरडीएस की समस्या हो रही है। इसमें प्रोन वेंटिलेशन देने से मरीज के शरीर में ऑक्सीजन लेवल में सुधार जल्दी आ रहा है। यह तकनीक पहले भी गंभीर मरीजों में उपयोग में लाई जाती रही है। मगर, यह कोविड के एआरडीएस मरीजों में भी काफी असरकारी साबित हो रही है।
विदेशों में भी अपनाई जा रही यही विधि
विदेश में कोविड मरीजों पर हुई स्टडी में भी प्रोन वेंटिलेशन को कारगर पाया गया है।
एआरडीएस से गड़बड़ा जाती है श्वसन प्रक्रिया
कोविड अस्पताल के आइसीयू प्रभारी डॉ. पीके दास के मुताबिक एआरडीएस की समस्या होने से फेफड़े के निचले हिस्से में पानी आ जाता है। पीठ के बल मरीज के लेटे रहने से फेफड़े के निचले हिस्से की एल्वियोलाइ में रक्त तो पहुंचता है। मगर, पानी होने की वजह से ऑक्सीजनेशन व कॉर्बन डाइऑक्साइड को निकालने की प्रक्रिया बाधित रहती है। ऐसे में मरीज और गंभीर होने लगता है। वहीं, मरीज को पीठ के बल लिटाने से फेफड़े में संकुचन कम हो जाता है। पीठ वाला प्रेशर हल्का हो जाता है। पूरे फेफड़े में रक्त का संचार अच्छा होने लगता है। कॉर्बन डाइऑक्साइड के निकलने और ऑक्सीजनेशन की प्रक्रिया में सुधार आता है। इससे मरीज की स्थिति पांचवें दिन से बेहतर होने लगती है।
मरीज में वेंटिलेशन की तीन अलग-अलग थेरेपी
डॉ. पीके दास के मुताबिक आइसीयू में भर्ती गंभीर मरीज दो तरह के होते हैं। इनमें एक होश में होते हैं। दूसरे बेहोशी की अवस्था में आते हैं। होश में आए मरीजों में ऑक्सीजन की जरूरत पडऩे पर अवेक वेंटिलेशन पर रखा जाता है। इसमें मास्क या बाई-पैप मशीन से ऑक्सीजन दी जाती है। इन मरीजों को दो घंटे प्रोनिंग वेंटिलेशन (पेट के बल), दो घंटे लेटरल (करवट से लिटाना), दो घंटे सुपाइन (सिर ऊंचा कर लिटाना) वेंटिलेशन दिया जाता है। वहीं, बेहोशी के मरीजों की सांस नली में इंडो ट्रैकियल ट््यूब डाली जाती है। इन मरीजों में 16 घंटे प्रोन वेंटिलेशन और आठ घंटे सुपाइन वेंटिलेशन दिया जाता है। ऐसा करने से मरीज के शरीर में ऑक्सीजन लेवल में जल्द सुधार आता है। जल्द ही उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट से मुक्ति मिल जाती है।