ऐसे तो साफ नहीं होगी प्रदूषण की असल तस्वीर, 93 शहरों में केवल एक मॉनिटरिंग स्टेशन
उत्तर प्रदेश की बात करें तो 14 शहरों में वायु प्रदूषण की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जा रही है। लेकिन गाजियाबाद लखनऊ नोएडा ग्रेटर नोएडा मेरठ को छोड़ अन्य शहरों जैसे वाराणसी सिंगरौली बुलंदशहर कानपुर हापुड़ मुरादाबाद मुजफ्फरनगर आगरा में केवल एक-एक रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित हैं।
लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। बढ़ता वायु प्रदूषण एक बार फिर जहां लोगों के लिए बड़ी आफत साबित हो रहा है वहीं, जिम्मेदार संस्थाओं के लिए भी चिंता का सबब बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा प्रतिदिन देश के 113 शहरों में प्रदूषण स्तर की नापजोख पर आधारित एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) बुलेटिन जारी किया जाता है। देश में अब तक यह पहली ऐसी ऑनलाइन व्यवस्था है जिसके तहत नागरिकों को उनके शहर में प्रदूषण स्तर की जानकारी होती है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह बुलेटिन प्रदूषण की असल तस्वीर सामने रखता है। यह इसलिए कि 113 में से 93 शहर ऐसे हैं जहां मात्र एक मॉनिटरिंग स्टेशन द्वारा प्रदूषण की नापजोख की जा रही है। जाहिर है कि पूरे शहर में प्रदूषण की स्थिति का पता लगाने के लिए यह काफी नहीं है।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो 14 शहरों में वायु प्रदूषण की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जा रही है। लेकिन गाजियाबाद, लखनऊ, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ को छोड़ अन्य शहरों जैसे वाराणसी, सिंगरौली, बुलंदशहर, कानपुर, हापुड़, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, आगरा में केवल एक-एक रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित हैं। गाजियाबाद जो कि प्रदूषण के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है चार मॉनिटरिंग स्टेशन हैं जबकि लखनऊ व नोएडा में तीन मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित हैं। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा व मेरठ में दो मॉनिटरिंग स्टेशन हैं। साफ है कि नौ शहरों में केवल एक जगह वायु प्रदूषण की नापजोख से पूरे शहर के वायु प्रदूषण के सूरते हाल जानने की कोशिश की जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो केवल एक जगह वायु प्रदूषण की पड़ताल कर पूरे शहर में वायु प्रदूषण की असल तस्वीर सामने आना लगभग असंभव है। बताते चलें कि दिल्ली में सबसे ज्यादा 35 स्थानों पर वायु प्रदूषण की नापजोख की जाती है।
दरअसल हर दिन जारी होने वाले सीपीसीबी के एयर क्वालिटी इंडेक्स बुलेटिन पर नियंत्रक संस्थाएं एक्शन में आती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसके लिए बाकायदा एक प्रोटोकोल भी तैयार किया है। इसके तहत जैसे ही एक्यूआई का स्तर बढ़ता है, शहर की तमाम गतिविधियां जैसे ट्रकों का आना, निर्माण कार्य, जनरेटर, वाहनों पर पाबंदी स्वतः लग जाती है। ऐसे में यदि शहर के वास्तविक प्रदूषण की स्थिति सामने नहीं आएगी तो तमाम गतिविधियों पर ब्रेक लग जाएगा जिसका प्रभाव विकास के साथ-साथ आम जनजीवन पर पड़ सकता है।
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन मानते हैं कि महज एक जगह नापजोख से पूरे शहर के प्रदूषण की तस्वीर साफ नहीं हो सकती। वह कहते हैं कि इसके लिए मॉनिटरिंग के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन भी बेहद जरूरी है जिससे प्रदूषण के स्रोत का भी पता लगाया जा सके। इससे रोकथाम में तो मदद मिलेगी ही साथ ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदारी भी तय की जा सकेगी।