मायावती ने गठबंधन से की तौबा-तौबा, कहा- अब पार्टी अपने बूते पर ही लड़ेगी छोटे-बड़े सभी चुनाव
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि अब वह किसी प्रकार का गठबंधन नहीं करेंगी और आने वाले सभी चुनाव अपने बूते ही लड़ेंगी।
जेएनएन, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में गठबंधन से बसपा प्रमुख मायावती ने तौबा कर ली है। लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बावजूद शिकस्त मिलने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने एलान किया है कि अब वह सारे चुनाव अकेले ही लड़ेंगी। सोमवार सुबह से ही बसपा नेताओं के साथ बैठक कर रहीं मायावती ने कहा कि वह भविष्य में अकेले ही चुनाव लड़ेंगी।
बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर भी कहा कि अब वह किसी प्रकार का गठबंधन नहीं करेंगी और आने वाले सभी चुनाव अपने बूते ही लड़ेंगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कल पार्टी की बैठक के दौरान हुई बातें जो मीडिया में चल रही हैं, वे पूरी तरह से सही नहीं हैं। रविवार को हुई पार्टी नेताओं की बैठक के बाद सोमवार को भी उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रति अपने तेवर बरकरार रखे हैं।
लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले के लिए तकरीबन साढ़े पांच माह पहले साथ आये अखिलेश और मायावती की राहें अब बिल्कुल जुदा हो गई हैैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने तीन ट्वीट करके समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोडऩे का एलान कर दिया कि अब सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले ही लडऩे की घोषणा की है। हालांकि उन्होंने गठबंधन तोडऩे का ठीकरा सपा पर ही फोड़ा है। वैसे लोकसभा चुनाव में गठबंधन से बेहतर नतीजे न आने के बाद अकेले ही उप चुनाव लडऩे की घोषणा करके मायावती ने पिछले दिनों ही इस तरह के स्पष्ट संकेत दे दिए थे।
रविवार को पार्टी के देशभर के पदाधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद सोमवार को मायावती ने आधिकारिक रूप से एलान कर दिया कि अब आगे सपा के साथ गठबंधन संभव नहीं है। मायावती ने ट्वीट किया- 'लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अत: पार्टी व मूवमेंट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।'
इससे पहले मायावती ने ट्वीट किया-''वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ सन् 2012-17 में सपा सरकार के बीएसपी व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरुद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया।'
बसपा प्रमुख ने एक ट्वीट में मीडिया पर भी निशाना साधा-'बीएसपी की ऑल इंडिया बैठक रविवार को लखनऊ में ढाई घंटे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिनमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं, वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि बीएसपी की अॉल इंडिया बैठक कल लखनऊ में ढाई घंटे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा, जिसमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे पूरी तरह से सही नहीं हैं, जबकि इस बारे में प्रेस नोट भी जारी किया गया था।
बीएसपी की आल इण्डिया बैठक कल लखनऊ में ढाई घण्टे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिसमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था।
— Mayawati (@Mayawati) June 24, 2019
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ वर्ष 2012-17 में सपा सरकार के बीएसपी व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरुद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया, लेकिन लोकसभा आम चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेंट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी। परन्तु लोकसभा आमचुनाव के बाद सपा का व्यवहार बीएसपी को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। अतः पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बीएसपी आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।— Mayawati (@Mayawati) June 24, 2019
कांशीराम-मुलायम से भी कम रहा माया-अखिलेश का साथ
गत 12 जनवरी 2019 को बसपा सुप्रीमो मायावती ने देश हित में गेस्ट हाउस कांड को किनारे करते हुए सपा से गठबंधन किया तो इसके लंबे चलने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन छह माह से भी कम समय में मायावती और अखिलेश के रास्ते अलग हो गए। गौरतलब है कि वर्ष 1993 में कांशीराम और मुलायम ने जो गठबंधन किया था वह करीब डेढ़ वर्ष चला और गेस्ट हाउस कांड के कारण जून 1995 में टूटा था।
बुआ-भतीजा के रिश्तों में और बढ़ी खटास
लोकसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच मधुर हुए रिश्तों में खटास अब और बढ़ती जा रही है। बसपा की राष्ट्रीय स्तरीय बैठक में मायावती समाजवादी नेताओं पर खूब बरसीं। यादव वोट बैंक ट्रांसफर नहीं कराने की तोहमत दोहराने के साथ अनेक सीटों पर बसपा की हार के लिए उन्होंने सपा के जिम्मेदार नेताओं को दोषी ठहराया। इतना ही नहीं, मायावती ने चुनाव खत्म होने के बाद अखिलेश द्वारा कोई फोन नहीं करने पर भी कड़ा एतराज जताया।
राष्ट्रीय स्तरीय बैठक में साफ हो गई गठबंधन की स्थिति
मायावती की ओर से उपचुनाव अकेले लड़ने का एलान करने के दिन से सपा-बसपा में दूरियां बढऩे लगी थीं। हालांकि दोनों दलों की ओर से गठबंधन कायम रखने को लेकर गोलमोल बयान दिए जा रहे थे। ऊहापोह की यह स्थिति राष्ट्रीय स्तरीय बैठक में काफी हद तक साफ होती दिखाई दी। बैठक में मायावती ने आरोप लगाया कि चुनाव में हार की एक वजह सपा शासन में दलितों पर हुए अत्याचार भी थे। सपा के नेताओं ने कई स्थानों पर बसपा को हराने का भी काम किया। उन्होंने सलेमपुर सीट का उदाहरण भी दिया। कहा कि बसपा के प्रदेश अध्यक्ष को हराने के लिए सपा के बड़े नेता जिम्मेदार है। मायावती ने आरोपित नेता का नाम लेते हुए अखिलेश द्वारा उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर नाराजगी व्यक्त की।
मुलायम सिंह पर भी उठायी अंगुली
मायावती ने बैठक में कहा कि उनको ताज कॉरीडोर केस में फंसाने में भाजपा के साथ मुलायम सिंह का भी रोल था। चुनाव में गठबंधन को अनुकूल परिणाम नहीं मिलने के बाद से अखिलेश ने मुझे कोई फोन नहीं किया। केवल सतीश मिश्रा से ही फोन पर वार्ता की जबकि हमने अखिलेश को फोन करके परिवार के हारने पर अफसोस जताया था।
अखिलेश नहीं चाहते थे मुस्लिमों को मिले ज्यादा टिकट
समाजवादी पर निशाना साध रही मायावती यहीं पर नहीं ठहरीं। उन्होंने अखिलेश यादव को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने की कोशिश भी की। उन्होंने बताया कि लोकसभा के उम्मीदवार तय होते समय अखिलेश ने मुस्लिमों को अधिक टिकट देने पर आपत्ति जताई थी।
भाजपा से भी तोड़ चुकीं हैं दोस्ती
भाजपा ने मायावती को समर्थन दिया और 1995 में वह पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन चार महीने बाद ही उनका भाजपा से मोहभंग हो गया। 1996 में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तथा विधानसभा में 68 सीट प्राप्त कीं। वर्ष 1997 में मायावती भाजपा के सहयोग से छह-छह महीने के फार्मूले पर मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन छह महीने बाद भाजपा के कल्याण सिंह को कुर्सी सौंपने के बाद जल्द ही उन्होंने समर्थन वापस ले लिया। वर्ष 2002 में विधानसभा में बसपा को 101 सीट मिलीं और मायावती तीसरी बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं। तीन महीने के अंदर ही मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 2007 में बसपा को प्रदेश में ऐतिहासिक विजय मिली और मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं।
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