Water conservation: बरतें सावधानी, खेत की सेहत खराब न करे उद्योगों का पानी

Water conservation सीपीसीबी ने सिंचाई प्रबंधन प्लान तैयार करने के लिए बनाई गाइडलाइन। उद्योगों को ही करानी होगी खेतों में दे रहे पानी की रासायनिक जांच।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 07:02 AM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 02:31 PM (IST)
Water conservation: बरतें सावधानी, खेत की सेहत खराब न करे उद्योगों का पानी
Water conservation: बरतें सावधानी, खेत की सेहत खराब न करे उद्योगों का पानी

लखनऊ [रूमा सिन्हा]।  Water conservation: उद्योगों को अपने उपचारित उत्प्रवाह (शोधित जल) को सिंचाई के लिए खेतों तक पहुंचाने के पहले सभी पर्यावरणीय सावधानियों का अनुपालन करना होगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने औद्योगिक उत्प्रवाह यानी ग्रे वाटर से जुड़े पर्यावरणीय खतरों को देखते हुए गाइडलाइन जारी की है। 

काफी समय से उद्योग जल संरक्षण के नजरिए से अपने शोधित जल को सिंचाई के लिए किसानों को उपलब्ध कराते रहे हैं। लेकिन, ऐसे कई मामले भी सामने आए कि वाटर ट्रीटमेंट मानक के अनुरूप नहीं था। तमाम खतरनाक तत्व पानी में रह जाते हैं। इससे खेतों में दूषित पानी से मृदा के साथ-साथ भूजल के प्रदूषित होने का खतरा भी रहता है। इसी के चलते सीपीसीबी ने गाइडलाइन जारी कर सभी उद्योगों को सिंचाई प्रबंधन योजना बनाने के निर्देश दिए हैं।

एनजीटी ने सीपीसीबी को निर्देश दिए थे कि उद्योगों के उपचारित उत्प्रवाह से जुड़े गुणवत्ता जोखिम को देखते हुए इस जल को सिंचाई में इस्तेमाल के लिए समग्र गाइडलाइन तैयार की जाए। इसके लिए सीपीसीबी, नीरी व आइआइटी दिल्ली के विशेषज्ञों की समिति बनाई गई थी। गाइडलाइन समिति की संस्तुतियों के आधार पर तैयार की गई है।

दरअसल, अनेक उद्योग रीयूज व रिसाइकलिंग द्वारा जीरो लिक्विड डिस्चार्ज के मानकों का पालन तकनीकी व आॢथक वजह से नहीं कर पा रहे थे। इसके चलते उद्योगों के उपचारित जल को खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। इससे मृदा व भूजल गुणवत्ता से जुड़े तमाम मामले प्रकाश में आए और प्रकरण एनजीटी तक पहुंचा। अब केंद्रीय बोर्ड ने सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उद्योगों को पर्यावरणीय सहमति देते समय इन गाइडलाइन की सभी शर्तों का पालन कराने के निर्देश दिए हैं। अब उद्योगों को शोधित जल का प्रयोग सिंचाई में करने के लिए सिंचाई प्रबंधन प्लान बनाना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए उद्योग कृषि वैज्ञानिक या किसी कृषि विश्वविद्यालय से विशेषज्ञ की सेवा ले सकते हैं। 

किसानों को यह पानी देने के लिए उनकी लिखित सहमति लेनी होगी। पर्यावरण संरक्षण नियमावली, 1986 के मानकों का अनुपालन करना अनिवार्य होगा।

ये शर्तें करनी होंगी पूरी

उद्योगों को खेतों तक शोधित जल पहुंचाने के लिए अलग से पाइप लाइन बिछानी होगी। इसका पूरा खर्च उन्हें ही करना होगा। उद्योग यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उपचारित जल की नियमित रासायनिक जांच की जाए और वर्ष में दो बार मृदा व भूजल की गुणवत्ता परखी जाएगी। इन जांचों में गुणवत्ता खराब मिलती है तो सिंचाई तत्काल रोक दी जाएगी।

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