BBAU के छात्र ने काई से तैयार किया ओमेगा थ्री दवा, मधुमेह-हृदय और कर्क रोगी बेझिझक कर सकेंगे सेवन
सस्ती होने के साथ और भी सुरक्षित होगी दवा। शाकाहारी मरीज बेझिझक कर सकेंगे सेवन।
लखनऊ [पुलक त्रिपाठी]। मछली से बनने वाली ओमेगा थ्री दवा को बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी डॉ. रंजन सिंह ने काई से तैयार कर दिखाया है। ऐसे में अब मधुमेह, हृदय और कर्क रोग पीड़ित शाकाहारी मरीज भी बेझिझक इसका सेवन कर सकेंगे। इस आविष्कार से यह दवा सस्ती होने के साथ और भी सुरक्षित होगी।
डॉ. रंजन सिंह ने यह कामयाबी बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. डीपी सिंह के निर्देशन में हासिल की है। डॉ. रंजन सिंह के मुताबिक, प्रदूषण से हमारे जल स्नोत आर्सेनिक, क्रोमियम जैसे हानिकारक तत्वों से दूषित हो चुके हैं। इससे मछलियां भी दूषित हो चुकी हैं। खाद्य श्रंखला के माध्यम से मनुष्यों में पहुंचकर ये तत्व उनकी सेहत बिगाड़ रहे हैं। इसके कारण हर दूसरा या तीसरा व्यक्ति कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार हो रहा है।
इस समस्या को ध्यान में रखकर शोध शुरू किया तो मछली से बनी ओमेगा थ्री भी खतरनाक होती मिली, जबकि मरीज इसे फायदेमंद मानकर लेते हैं। फिर इसका विकल्प ढूंढने की कोशिश शुरू की गई। पता चला कि शैवाल (काई) में प्रचुर मात्र में ओमेगा का उत्पादन होता है। सहज उपलब्धता के चलते इससे ओमेगा थ्री बनाने में लागत बेहद कम आई। यह बेहद आसान भी था। इसके लिए 13 से 15 दिन में काई तैयार कर उसे काटा। फिर उससे लिपिड (वसा) को निकाल लिया। इस वसा से उसके परमाणु भार के आधार पर कुछ उपकरणों की मदद से ओमेगा थ्री को हासिल कर लिया।
क्या है ओमेगा थ्री ?
ओमेगा थ्री पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है। यह मनुष्य के शरीर में नहीं पाया जाता है, जबकि हर व्यक्ति को भोजन में प्रति सप्ताह इसकी 200 से 500 एमजी मात्र का सेवन करना आवश्यक है। इसकी कमी से शरीर में इंसुलिन कम बनता है या कई बार नहीं बन पाता। इसके चलते शरीर में शुगर का स्तर बढ़ जाता है।