Ayodhya Ram Temple News: जन्मभूमि की मुक्ति के लिए निहंगों पर हुआ था पहला केस

Ayodhya Ram Temple News ब्रिटिश प्रशासन के तुगलकी आदेश से आहत निहंगों ने 1858 में ढांचे पर बोला था धावा। ढांचे की दीवारों पर राम-राम लिखने के साथ निशान साहेब की स्थापना की।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 09:37 AM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 03:13 PM (IST)
Ayodhya Ram Temple News: जन्मभूमि की मुक्ति के लिए निहंगों पर हुआ था पहला केस
Ayodhya Ram Temple News: जन्मभूमि की मुक्ति के लिए निहंगों पर हुआ था पहला केस

अयोध्या, (रघुवर शरण)। सिख गुरुओं ने धर्म की रक्षा के लिए जिस जिम्मेदारी का परिचय दिया, वो अभूतपूर्व है। रामजन्मभूमि की मुक्ति के प्रति भी सिख परंपरा से जुड़े धर्मयोद्धा संवेदनशील थे। 1858 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन का एक आदेश आम रामभक्तों सहित सिखों को आंदोलित करने वाला था। इस आदेश में कहा गया था कि ढांचे के बाहर हिंदू पूजा करेंगे और भीतर मुस्लिम नमाज पढ़ेंगे। हिंदुओं को ब्रिटिश प्रशासन का यह आदेश नागवार गुजरा। धर्म की रक्षा के लिए जान देने-लेने तक आमादा रहने वाले निहंग सिखों को जब यह सूचना मिली, तो उनका सामरिक दृष्टि से एक अति प्रशिक्षित दस्ता रामजन्मभूमि आ पहुंचा और उसने विवादित ढांचे पर कब्जा जमाने की कोशिश करने वालों को भगा कर स्वयं वहां कब्जा जमा लिया।

निहंगों का जत्था यहां करीब डेढ़ माह तक रहा। इस जत्थे में शामिल निहंगों ने पूजन-हवन करने के साथ विवादित ढांचे की दीवारों पर राम-राम लिखने के साथ वहां धर्म के प्रतीक निशान साहेब की स्थापना की। इस हरकत के लिए 30 नवंबर 1858 को 25 निहंग सिखों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया और तत्कालीन प्रशासन को यहां से निहंगों को हटाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। करीब डेढ़ माह के बाद निहंगों ने विवादित ढांचा तो छोड़ दिया, पर ढांचा के सामने कब्जा बनाए रखा। मंदिर-मस्जिद की अदालती लड़ाई में निर्मोही अखाड़ा के अधिवक्ता रहे तरुणजीत वर्मा कहते हैं, इसी घटना के आधार पर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक ने यह स्वीकार किया कि 1858 तक उस स्थल पर कभी नमाज ही नहीं पढ़ी गई, जिसे दूसरा पक्ष मस्जिद की भूमि बताता है। साकेत महाविद्यालय में इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कविता सिंह के अनुसार, यह घटना सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद अहम है और इससे सिद्ध होता है कि हिंदुओं और सिखों की जड़ें कितनी अभिन्न हैं। 

जन्मभूमि पर था प्राचीन चबूतरा

सुप्रीमकोर्ट में राममंदिर के पक्षकार एवं 'अयोध्या रिविजिटेड' नाम से रामजन्मभूमि के संदर्भ में प्रामाणिक ग्रंथ लिखने वाले महावीर सेवा ट्रस्ट के सचिव तथा पूर्व आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल के अनुसार, जिस समय निहंगों ने विवादित ढांचे पर धावा बोला उस समय भी रामजन्मभूमि पर बना करीब 18 फीट लंबा एवं 15 फीट चौड़ा प्राचीन चबूतरा कायम था, जिसका स्पर्श हिंदू जन्मस्थान मानकर काफी आदर से करते थे और निहंगों ने भी इस चबूतरे की पूजा की।

सदियों से संघर्ष का साक्षी रहा गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड

गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड पुण्यसलिला सरयू के उस प्राचीन तट पर स्थित है, जहां प्रथम गुरु नानकदेव, नवम गुरु तेगबहादुर एवं दशम गुरु गोविंद सिंह समय-समय पर आए। सन 1668 में नवम गुरु के आगमन को समीक्षक जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयासों से जोड़कर देखते हैं। सन 1672 में दशम गुरु गोविंद सिंह मात्र छह वर्ष की अवस्था में मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ यहां पहुंचे और यह संदेश दिया कि अयोध्या और रामजन्मभूमि का सिख परंपरा से सरोकार कितना गंभीर है। कालांतर में यह सरोकार और स्पष्टता से भी परिलक्षित हुआ। 'रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष का इतिहास' पुस्तक के अनुसार राम मंदिर के लिए संघर्षरत निर्मोही अखाड़ा के साधु वैष्णवदास ने गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगी थी और निहंगों की सहायता से वैष्णवदास ने फौरी तौर पर कामयाबी भी हासिल की थी।

18 वीं सदी के उत्तरार्ध में कश्मीर के बाबा गुलाब सिंह ने इस स्थल को नए सिरे से सहेजने के साथ रामजन्मभूमि मुक्ति का संघर्ष भी आगे बढ़ाया। इसके बाद गुरुद्वारा में पांच अगुआ हुए और सभी राममंदिर के लिए प्रयासरत रहे। गुरुद्वारा के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत सिंह भी मंदिर आंदोलन के सक्रिय संवाहक रहे हैं। मंदिर निर्माण शुरू होने की बेला में उत्साहित ज्ञानी गुरुजीत कहते हैं, हमें गर्व है कि हमारे पूर्वज सदियों से मंदिर की मुक्ति के संघर्ष में शामिल रहे हैं। हम अब वह दिन देखने के लिए बेकरार हैं, जब रामलला का अद्भुत-अकल्पनीय मंदिर बनेगा। 

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