सेना के सामने समर्पण करे तीस वर्ष से भगोड़ा सैनिक, सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ का आदेश

जवान ने 2017 में सेना कोर्ट लखनऊ में वाद दायर किया। इसमें 30 अक्टूबर 2017 को अधिकरण ने सेना को आदेशित किया कि याची को नौकरी ज्वाइन कराए लेकिन सेना ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वादी सेना से भगोड़ा घोषित है।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 08:36 PM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 01:50 PM (IST)
सेना के सामने समर्पण करे तीस वर्ष से भगोड़ा सैनिक, सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ का आदेश
सेना को स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल के दिए आदेश। सेना ने पेंशन देने से भी कर दिया आवेदन खारिज।

 लखनऊ, जागरण संवाददाता। सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ खंडपीठ ने तीस वर्ष से भगोड़ा घोषित अंबेडकरनगर निवासी सिपाही दिलीप कुमार सिंह को सेना के सामने समर्पण करने का आदेश जारी किया है l खंडपीठ के न्यायिक सदस्य सेवानिवृत न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य अभय रघुनाथ कार्वे ने कहा कि मास्टर व सर्वेंट का रिश्ता स्वतः समाप्त नहीं होता। भगोड़े जवान के आत्मसमर्पण के बाद सेना की स्वतंत्र ट्रायल करना होगा।

दिलीप कुमार 1996 में आर्मी सप्लाई कोर में भर्ती हुए थे। वह वर्ष 2011 में पन्द्रह दिन के आकस्मिक अवकाश पर घर आये , लेकिन व्यक्तिगत समस्याओं की वजह से वह समय से ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सके। अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वादी ने 2017 में सेना कोर्ट लखनऊ में वाद दायर किया। इसमें 30 अक्टूबर 2017 को अधिकरण ने सेना को आदेशित किया कि याची को नौकरी ज्वाइन कराए, लेकिन सेना ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वादी सेना से भगोड़ा घोषित है, वह निर्धारित सेवा शर्त की अवधि पूर्ण कर चुका है। ऐसे में न तो हम उसे सेवा से डिसमिस कर सकते हैं और न डिस्चार्ज।

वादी का पक्ष रखते हुए वादी के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि नौकरी से भगोड़ा घोषित होने मात्र से “मास्टर” और “सर्वेंट” का संबंध स्वतःसमाप्त नहीं हो जाता। इसे कानूनी आदेश के बगैर समाप्त नहीं किया जा सकता,जबकि भारत सरकार और सेना द्वारा अभी तक मेरे मुवक्किल को न तो सेना से डिसमिस किया गया है और न डिस्चार्ज, इसलिए वह संबंध अब भी बना हुआ है, दूसरी तरफ यदि पुलिस अधीक्षक अम्बेडकरनगर घर पर मौजूद सैनिक को कागजी कार्यवाही में लापता दिखा रहे हैं तो इसके लिए वादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।

दोनों पक्ष की दलीलों और दस्तावेजों के अवलोकन के बाद पीठ ने कहा कि रिकार्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि वादी ने ड्यूटी ज्वाइन करने का प्रयास किया। यदि उसे कोई बीमारी थी तो निजी अस्पताल में इलाज कराने के बजाय मिलिट्री हास्पिटल में इलाज कराना चाहिए था। इसलिए वादी को दोबारा ड्यूटी ज्वाइन कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन सेना और वादी को निर्देशित करते हुए आदेश जारी किया कि वादी एक महीने के अंदर आर्मी रुल 123 के तहत आत्म-समर्पण कर दे। सेना वादी का स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल जल्दी से जल्दी करने के लिए स्वतंत्र होगी l 

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