गंदे नालों की सफाई में अब प्रयोग होंगे जलीय पौधे, नदियों को साफ रखने के लिए यूपी सरकार की नई योजना

यूपी में अनटैप्ड नालों की सफाई जलीय पौधों से होगी। सरकार ऐसे नालों का फाइटो रेमेडिएशन तकनीक से उपचार करेगी। कुछ स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग इसे नगर विकास विभाग के सहयोग से पूरे प्रदेश में लागू करने जा रहा है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 08:50 AM (IST)
गंदे नालों की सफाई में अब प्रयोग होंगे जलीय पौधे, नदियों को साफ रखने के लिए यूपी सरकार की नई योजना
उत्तर प्रदेश में अब अनटैप्ड नालों की सफाई जलीय पौधों से होगी।

लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। उत्तर प्रदेश में अब अनटैप्ड नालों की सफाई जलीय पौधों से होगी। सरकार ऐसे नालों का बायो फाइटो रेमेडिएशन तकनीक से उपचार करेगी। कुछ स्थानों पर पायलट प्रोजेक्ट की सफलता को देखकर पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग इसे नगर विकास विभाग के सहयोग से पूरे प्रदेश में लागू करने जा रहा है। इसमें कम प्रवाह वाले अनटैप्ड नालों में ऐसी प्रजातियों के पौधे लगाए जाएंगे, जो प्राकृतिक रूप से गंदगी को साफ करते हैं। इस तकनीक में आने वाला खर्च नगर विकास विभाग वहन करेगा।

उत्तर प्रदेश की 15 प्रमुख नदियों में 248 नाले बिना किसी उपचार के सीधे मिलते हैं। सबसे अधिक 106 नाले गंगा में मिलते हैं। काली में 31, हिंडन व रामगंगा में 19-19 यमुना में 14 और गोमती में 13 नाले सीधे गिरते हैं। इनके उपचार के लिए अब फाइटो रेमेडिएशन तकनीक इस्तेमाल की जाएगी। इसमें ऐसे पौधे लगाए जाएंगे जो गंदे पानी में पनपते हैं। यह गंदगी को साफ कर उसमें आक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं। अपर मुख्य सचिव वन मनोज सिंह ने प्रभागीय वनाधिकारियों को अपने-अपने यहां ऐसे नालों को चिन्हित कर फाइटो रेमेडिएशन के लिए योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं।

सचिव वन आशीष तिवारी ने बताया कि इस तकनीक के तहत नाले में सबसे पहले लोहे का जाल लगाया जाएगा। इसके बाद एक से डेढ़ मीटर गहरे दो आक्सीकरण तालाब बनाए जाएंगे। इसे इस तरह बनाया जाएगा, ताकि आठ से 10 घंटे गंदा पानी इसमें रुक सके। इसके बाद वाले हिस्से में लोहे के जाल में पत्थरों को फंसाकर एक चेकडैम बनाया जाएगा। फिर एक वेटलैंड निर्मित किया जाएगा, जिसमें करीब 20 घंटे तक पानी रोकने की क्षमता होगी। इसी वेटलैंड में जलीय पौधे लगाए जाएंगे। इसमें कंकड़ भी डाले जाएंगे, जो पानी को छानेंगे। इसके बाद जो पानी निकलेगा, उसके आउटलेट में भी पत्थर व जलीय पौधे लगाए जाएंगे। यहां से पानी पूरी तरह से साफ होने के बाद नदी में मिल जाएगा।

ये होगा फायदा

इस तकनीक के इस्तेमाल से आता है बहुत कम खर्च। पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कम करेगा जोखिम। इस तकनीक में स्थिरीकरण के माध्यम से रुकता है क्षरण और धातु का रिसाव। पर्यावरण में दूषित पदार्थों के प्रसार को भी जा सकेगा रोका। इससे आस-पास की मिट्टी की भी उर्वरता में आएगा सुधार। प्रदूषक कम करने के साथ-साथ पानी में आक्सीजन का भी बढ़ेगा स्तर। निर्मित वेटलैंड के माध्यम से पादप उपचार से भूजल भी होता है रिचार्ज।

इन पौधों का होगा इस्तेमाल : एलीफैंट ग्रास (पटेरा), नरकुल, जूनाक्स, कामन रश, हाइड्रिला, कुमुद, शैवाल, वाटर चेस्टनट, जलकुंभी, कामन डकवीड, क्लब-रश व वाटर क्लोवर आदि

कुंभ के मौके पर हुआ था बायो रेमेडिएशन का प्रयोग : कुंभ के मौके पर स्वच्छ गंगाजल मुहैया कराने के लिए योगी सरकार ने गंगा में सीधे गिर रहे नालों में बायो रेमेडिएशन तकनीक का प्रयोग किया था। इसके तहत सूक्ष्म जीवों का प्रयोग कर पर्यावरणीय प्रदूषकों को कम किया जाता है। इसमें नालों की सिल्ट में एंजाइम डाले जाते हैं। नालों में स्लज को रोकने के लिए छोटे-छोटे हिस्से बनाए जाते हैं। इस तकनीक में खर्च अधिक आता है।

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