41 साल बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया जमीन विवाद में फैसला, वर्ष 1980 में दाखिल हुई थी याचिका

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में 41 साल से लंबित चल रहे भूमि विवाद के एक मसले पर अब फैसला सुनाया है। वर्ष 1980 से विचाराधीन चल रहे इस मुकदमे में फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने इस भूमि के कुछ विवादित पहलुओं को तय कर दिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 08:01 AM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 08:26 AM (IST)
41 साल बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया जमीन विवाद में फैसला, वर्ष 1980 में दाखिल हुई थी याचिका
हाईकोर्ट ने 41 साल से लंबित चल रहे भूमि विवाद के एक मसले पर अब फैसला सुनाया है।

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में 41 साल से लंबित चल रहे भूमि विवाद के एक मसले पर अब फैसला सुनाया गया है। वर्ष 1980 से विचाराधीन चल रहे इस मुकदमे में फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने इस भूमि के कुछ विवादित पहलुओं को तो तय कर दिया है, लेकिन उत्तराधिकार तय करने के लिए मामले को वापस बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी, सुल्तानपुर को भेजा है व उनको पुनर्विचार करने का आदेश दिया है।

यह आदेश जस्टिस रजनीश कुमार की एकल पीठ ने राम सुंदर व अन्य की ओर से 1980 में दाखिल याचिका पर पारित किया। इस केस में कोर्ट ने सुनवायी पूरी कर पांच फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसे उसने सोमवार को सुनाया। याचियों का कहना था कि चकबंदी के दौरान प्रतिवादी का नाम गलत तरीके से उनकी पुश्तैनी जमीन पर चढ़ा दिया गया। इस पर याचियों ने आपत्ति दाखिल की।

चकबंदी अधिकारी ने 27 दिसंबर, 1974 को याचियों के पक्ष में उनकी आपत्ति को निस्तारित कर दिया। इस पर प्रतिवादी ने 27 दिसंबर, 1974 के आदेश को अपील के माध्यम से चुनौती दी। 26 जून, 1975 को सहायक बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी ने अपील को स्वीकार करते हुए, चकबंदी अधिकारी के आदेश को निरस्त कर दिया। तब याचियों ने बंदोबस्त अधिकारी के आदेश को पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर संयुक्त निदेशक चकबंदी के समक्ष चुनौती दी। उक्त पुनरीक्षण याचिका 24 मई, 1980 को खारिज हो गई। इसके बाद मामला हाई कोर्ट आया।

हाई कोर्ट ने पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजों पर गौर करने के उपरांत याचियों के दावे को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने विवादित जमीन पर प्रतिवादी के उत्तराधिकार के प्रश्न को पुन: निर्णित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि विवादित जमीन पर प्रतिवादी का उत्तराधिकार नहीं सिद्ध होता तो गांव की भूमि प्रबंधन समिति विवादित जमीन का कब्जा प्राप्त कर सकती है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि मामला काफी पुराना हो चुका है लिहाजा इसे छह महीने में निर्णित किया जाए।

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