यूपी में स्वयं सहायता समूहों को नहीं मिलेंगी सस्ते गल्ले की दुकानें, हाई कोर्ट ने रद क‍िया शासनादेश

कोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि सरकार ने अपने शासनादेश में स्वयं सहायता समूहों की प्रकृति को भी स्पष्ट नहीं किया। कहा कि बिना समुचित रजिस्ट्रेशन के इस प्रकार के समूहों का कोई कानूनी स्तर नहीं होता और न ही वे शास्वत होते हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Tue, 25 May 2021 04:38 PM (IST) Updated:Wed, 26 May 2021 07:09 AM (IST)
यूपी में स्वयं सहायता समूहों को नहीं मिलेंगी सस्ते गल्ले की दुकानें, हाई कोर्ट ने रद क‍िया शासनादेश
ग्रामीण क्षेत्रों स्वयं सहायता समूहों को दुकानों का लाइसेंस जारी करने वाला शासनादेश हाई कोर्ट ने किया रद।

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार के सात जुलाई, 2020 के उस शासनादेश को सोमवार को रद कर दिया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों को वरीयता के आधार पर सस्ते गल्ले की दुकानों का लाइसेंस जारी करने का आदेश किया गया था। कोर्ट ने कहा कि उक्त शासनादेश आठ अगस्त, 2019 इसी विषय में जारी एक अन्य शासनादेश से भिन्न है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को ग्रामीणों को भी लाइसेंस लेने के लिए चुनाव में खड़े होने का प्रविधान था।

यह आदेश जस्टिस एआर मसूदी की एकल पीठ ने पांच रिट याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाते हुए पारित किया। दो याचिकाओं में उक्त शासनादेश को चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट किया कि सरकार ने अपने शासनादेश में स्वयं सहायता समूहों की प्रकृति को भी स्पष्ट नहीं किया। कहा कि बिना समुचित रजिस्ट्रेशन के इस प्रकार के समूहों का कोई कानूनी स्तर नहीं होता और न ही वे शास्वत होते हैं।

सुनवायी के दौरान पीठ ने वर्तमान कोरोना महामारी के दौरान गरीबों को अन्न मिलने में कथित रूप से आ रही दिक्कतों पर अफसोस प्रकट किया। कहा कि ऐसे में न्यायपालिका अपनी आंख बंद नहीं रख सकती। पीठ ने कोरोना महामारी के मुद्दे पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट व इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ से सरकार की ओर से वितरण के लिए चलाई जा रही प्रणाली के संबंध में विचार करने का अनुरोध किया है। कोर्ट ने कहा है कि वंचित समूह के लोगों को वितरित किए जा रहे खाद्यान्न की मात्रा व गुणवत्ता की जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए।

अपने फैसले में कोर्ट ने टिप्पणी की कि महामारी के इस समय में वंचितों की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि महामारी के कारण आई बेरोजगारी की वजह से खाद्यान्न वितरण का मुद्दा काफी गंभीर है। कोर्ट ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि पंचायत चुनाव के बाद ग्राम पंचायतें अब तक काम शुरू नहीं कर सकी हैं। अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने खाद्यान्न वितरण के अप्रबंधन के कारण अप्राकृतिक मौतों की आशंका भी व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि हम वंचित समूहों को होने वाले खाद्यान्न सप्लाई की प्रणाली में कमी को अनदेखा नहीं कर सकते। भूख और कुपोषण के कारण भी मानव जीवन का नुकसान हो सकता है। उक्त टिप्पणियों के साथ ही कोर्ट ने निर्णय की प्रति सुप्रीम कोर्ट व इलाहाबाद हाई कोर्ट के महानिबंधकों, नागरिक आपूॢत मंत्रालय व प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं। 

chat bot
आपका साथी