All Religion Prayer: यह युद्ध हम जीतेंगे...हमारा मौन यह उद्घोष करेगा, याद रहे नौ तारीख नौ बजे
मौन की शक्ति असीम। हर कुंभ में मौनी अमावस्या का स्नान होता है। आध्यात्मिक और मानसिक ऊर्जा देता है मौन। हम मौन रखें अपनी शक्ति के संचय के लिए। उनके लिए जो अब हमारे साथ नहीं। उन परिवारों के लिए जो दुखी हैं।
लखनऊ, [आशुतोष शुक्ल]। हारी न बीमारी और न कोई दुर्घटना। बस, एक वायरस आया और ले गया। पतझड़ में जैसे पत्ते गिरते हैं, अप्रैल-मई में वैसे पट-पट आदमी गिरा। अभी वो ठीक था अभी खत्म। जिससे कल बात हुई आज वो नहीं। दुश्मन नहीं था सामने, फिर भी छाती पर चढ़ा कोई दम घोंटता था। जिसे वायरस ने जकड़ा वो डर गया, लेकिन जो बचा वो भी सहम गया। बीमार करवट न बदल सके, वो कमजोरी दे गया। सपने फिर देखे न जा सकें वो नींदें ले गया। कोई शरीर से हारा कोई मन से गया। वो गया और पीछे छोड़ गया अवाक हाकिम, हतप्रभ डाक्टर और सकते सदमे में प्रियजन।
फोन की घंटी तब डराने लगी थी। मैसेज खोलते दिल कांपने लगा था। सालगिरह की खबर देने वाली फेसबुक मौत का डाकिया बन चुकी थी। पढ़ते थे जिसका जिक्र किताबों में वो प्रलय आ चुकी थी। जो दवा कल ठीक थी वो आज इलाज से बाहर हो चुकी थी। जीता जागता आदमी प्रयोगशाला बन चुका था। बस चलता तो हर आदमी अप्रैल और मई के वे दो महीने अपने जीवन से डिलीट कर देता। कोई रह नहीं गया था जिसने मौत को आसपास महसूस न किया हो। कोई घर न बचा था जिसके यहां उसके किसी न किसी प्रिय के जाने का अप्रिय संदेसा न आया हो। डर और बेबसी चौतरफा हावी थी। धनी-निर्धन सब लाचार थे। वायरस ने सबको एक ही तराजू में तौल दिया था।
...लेकिन जीवन डर से नहीं चलता। जीने के लिए लडऩा होता है। लडऩे के लिए खड़े होना होता है। उनके साथ कंधा मिलाना होता है जो लड़ रहे हैं। उन्हें याद करना होता है जो चले गए। यही करना है हमें। दैनिक जागरण का ध्येय वाक्य है-पत्र ही नहीं मित्र भी। मानवता के संकटकाल में उसके साथ खड़े रहना हमारा कर्तव्य है और धर्म भी। इसी निमित्त बुधवार नौ जून को सुबह नौ बजे प्रदेश भर में दो मिनट का मौन रखने का हमारा आग्रह है। जो समाज के अगुवा हैं उनसे और जो समाज की रीढ़ हैं उनसे भी। आप और हम दो मिनट का मौन रखें। जाति-वर्ग-धर्म-क्षेत्र से परे समग्र मानवता के लिए मौन रखें। अपने लिए मौन रखें। पड़ोसी के लिए मौन रखें।
मौन की शक्ति असीम। हर कुंभ में मौनी अमावस्या का स्नान होता है। आध्यात्मिक और मानसिक ऊर्जा देता है मौन। हम मौन रखें अपनी शक्ति के संचय के लिए। उनके लिए जो अब हमारे साथ नहीं। उन परिवारों के लिए जो दुखी हैं। उन बच्चों के लिए जिन्होंने अपना पिता खोया। उन पिताओं के लिए जिनकी संतान खो गई। उन मांओं के लिए जिनकी गोद सूनी हो गई। उनके लिए जिनका साथी छूट गया और उनके लिए भी जिन्होंने वायरस से मोर्चा लिया। जाने वालों के लिए हमारा मौन श्रद्धांजलि हो। लडऩे वालों के लिए हमारा मौन प्रेरणा हो। हमें लडऩा है दूसरी लहर की कमियों से। हमें लडऩा है आहट दे रही तीसरी लहर से। हमें लडऩा है गांव-गांव में टीकाकरण के लिए। हमें लडऩा है उन असुरों से जिन्होंने आपदा को औजार बना लिया। हमारा मौन कहेगा उनसे कि आइंदा किसी को लूटने के पहले अपने बच्चों का मुंह देख लें वे। हमारा मौन सतर्क करेगा प्रशासन को कि ऐसे लोगों को छोड़ें नहीं। हमारा मौन आग्रह करेगा लाखों करोड़ों से कि मास्क लगाए रहें और शारीरिक दूरी के नियम को मत छोड़ें। इस मौन के साथ जो खड़ा होगा वो फिर भूलेगा नहीं कि वायरस से लड़ाई अभी लंबी है। हमारा मौन प्रहार करेगा आसुरी शक्तियों पर...हमारा मौन संबल बनेगा कोरोना योद्धाओं के लिए। यह युद्ध हम जीतेंगे...हमारा मौन यह उद्घोष करेगा। (लेखक दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक हैं)