स्मृति शेष : राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के प्रबल विरोधी थे अजित सिंह, सीएम बनने का सपना नहीं हो सका पूरा

स्मृति शेष हमेशा किसानों व गांवों की आवाज बुलंद करने वाले राष्ट्रीय लोकदल मुखिया अजित सिंह राजनीति में अपराधियों को बढ़ावा देने के प्रबल विरोधी रहे। तीन दशक से ज्यादा प्रभावी सियासी भूमिका में रहे अजित चाहते तो शुचिता की राजनीति छोड़कर अपना दबदबा और बढ़ा सकते थे।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 01:06 AM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 01:07 AM (IST)
स्मृति शेष : राजनीति में अपराधियों के प्रवेश के प्रबल विरोधी थे अजित सिंह, सीएम बनने का सपना नहीं हो सका पूरा
पेशे से कंप्यूटर वैज्ञानिक अजित सिंह ने किसान व वंचित वर्ग को राजनीतिक ताकत बनाने के लिए संघर्ष किया।

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। हमेशा किसानों व गांवों की आवाज बुलंद करने वाले राष्ट्रीय लोकदल मुखिया अजित सिंह राजनीति में अपराधियों को बढ़ावा देने के प्रबल विरोधी रहे। तीन दशक से ज्यादा प्रभावी सियासी भूमिका में रहे अजित चाहते तो शुचिता की राजनीति छोड़कर अपना दबदबा और बढ़ा सकते थे। पेशे से कंप्यूटर वैज्ञानिक अजित सिंह ने किसान व वंचित वर्ग को राजनीतिक ताकत बनाने के लिए संघर्ष किया।

किसानों को नई तकनीकी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने वाले अजित सिंह कृषि क्षेत्र में निजी निवेश का महत्व भी बखूबी समझते थे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बढ़े हुए निवेश और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए स्थायी प्रौद्योगिकियों के प्रसार पर उन्होंने हमेशा जोर दिया।

राष्ट्रीय लोकदल मुखिया अजित सिंह ने चीनी मिलों की स्थापना के लिए बीच की दूरी 25 किलोमीटर से घटाकर 15 किलोमीटर की थी। इससे चीनी उद्योग में अधिक निवेश और प्रतिस्पर्धा बढ़ी। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में कोल्ड स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना भी शुरू की। इससे भी निजी निवेश को प्रोत्साहन मिला। उनके निकटस्थ रहे अनिल दूबे बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में बदलाव के साथ किसान हित उनकी हमेशा प्राथमिकता में रहा।

चौधरी साहब ने अपराधियों को राजनीति से दूर रखने के लिए कभी उन्हें पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया। इसका कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा। अपनी राजनीति के शुरुआती काल में अजित सिंह का मुलायम सिंह से टकराव भी इन्हीं मुद्दों पर हुआ माना जाता है। चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकार की लड़ाई और मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए तनातनी भी बढ़ी। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए तो अजित ने केंद्र की राजनीति की ओर रुख किया। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की उनकी मंशा पूरी नहीं हो सकी।

आरंभिक काल से ही अजित सिंह के साथ रहे डॉ. राजकुमार सांगवान बताते हैं कि जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का मौका देने में चौधरी साहब हमेशा उदार रहे। सादाबाद से लहटू ताऊ, सिवालखास से बनारसी दास चांदना व जानसठ से विजेंद्र आर्य जैसे सामान्य कार्यकर्ताओं को विधायक बना कर कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाए रखा।

छोटे राज्यों के पैरोकार रहे अजित सिंह ने राज्य पुनर्गठन के लिए संघर्ष किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग हरित प्रदेश बनाने के लिए उनके प्रयास को सदैव याद किया जाएगा। यह अलग बात है कि अलग राज्य बनाने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका।

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