मिलावट खोर कर रहे आपकी जान का सौदा, रिपोर्ट का इंतजार- बेखौफ गुनहगार Lucknow News
लैब जांच में आने वाले एक तिहाई नमूने होते हैं फेल। लंबी और जटिल प्रक्रिया से बच निकलते हैं मिलावटखोर।
लखनऊ [राजीव बाजपेयी]। राजधानी में चंद ऐसे उदाहरण हैं, जो बयां कर रहे हैं कि कमजोर कानून और भ्रष्टाचार के चलते मिलावट का बाजार गरम है। मिठाई की दुकान से लेकर नामी-गिरामी प्रतिष्ठानों में भी मिलावटी और घटिया सामान बेचा जा रहा है। मुनाफाखोर जटिल कानूनी प्रक्रिया का फायदा उठाकर लालच में लोगों की जान का सौदा कर रहे हैं। लोगों को शुद्ध खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने का ठेका रखने वाले जिम्मेदार इक्का-दुक्का दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई कर पीठ थपथपा रहे हैं, लेकिन मिलावट जारी है।
लंबी प्रक्रिया बन रही बाधक मिलावट की पुष्टि होने पर दुकानदार को नोटिस भेजा जाता है नोटिस में पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय भी दिया जाता है इस दौरान आरोपी सेकेंड लैब से सैंपल की रेफरल जांच करा सकता है। आरोपी अपर नगर मजिस्ट्रेट की अदालत में पक्ष रख सकता है। सुनवाई के बाद अदालत जुर्माना या सजा तय करती है
मामले
तीन सितंबर-राधेलाल के यहां नौ नमूनों में सभी फेल हुए केएफसी स्टोर में चिकन को पकाने वाले मसाले में खतरनाक मोनोसोडियम ग्लूटामेट मिला राजाजीपुरम स्थित मधु डेयरी में पनीर का नमूना जांच में फेल इंदिरानगर स्थित स्पेंसर का नमूना जांच में फेल आयावित्तीय वर्ष में नमूने
होता क्या है ? प्रयोगशाला से रिपोर्ट 14 दिन में मिलनी चाहिए, लेकिन तीन-चार महीनों तक रिपोर्ट नहीं आती। जब तक रिपोर्ट नहीं आती तब तक घटिया माल बाजार में बदस्तूर बिकता रहता है। रिपोर्ट आने के बाद लैब से रेफरल जांच में लंबा वक्त लगता है। सेकेंड लैब की रेफरल रिपोर्ट जरा भिन्न हुई तो मामला लटक जाता है। सब स्टैंडर्ड या मिथ्या छाप के मामलों में न्याय निर्णायक अधिकारी फैसला लेता है, लेकिन व्यस्तता के चलते जल्द-जल्दी तारीखें ही नहीं लगती जिससे कई साल केस चलता रहता है। रिपोर्ट अनसेफ आने पर एसीजेएम के यहां मामला दर्ज कराया जाता है। तारीख पर तारीख और तब तक मिलावट का धंधा चलता रहता है।
क्या होना चाहिए? सेहत से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्ती की जरूरत मिलावटखोरी के मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में निपटाया जाए मिलावट या संदेह होने पर माल तत्काल जब्त हो एक उत्पाद में मिलावट पाए जाने पर दुकान में बिक्री प्रतिबंधित हो मौके पर जांच किट की व्यवस्था हो ताकि मिलावट का पता चले मिलावटखोरों के खिलाफ फैसले की निर्धारित समय सीता तय हो। प्रयोशालाओं का उच्चीकरण किया जाए ताकि रिपोर्ट जल्द मिल सके। लैब बढ़ाने की जरूरत। प्रदेश में जांच के लिए केवल पांच ही प्रयोगशालाएं हैं जिनमें लखनऊ, मेरठ, आगरा, वाराणसी और गोरखपुर।