270 लाख वर्ष पुराना है भारतीय मानसून सिस्टम, लखनऊ में BSIP ने आठ वर्षों में सुलझायी गुत्थी

Indian Monsoon System भारतीय मानसून की तीव्रता के समय को अब तक विवादास्पद माना जाता रहा है। इस शोध अध्ययन से यह साफ हो गया है कि भारतीय मानसून सिस्टम 270 लाख वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आ गया था।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 07:05 AM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 04:00 PM (IST)
270 लाख वर्ष पुराना है भारतीय मानसून सिस्टम, लखनऊ में BSIP ने आठ वर्षों में सुलझायी गुत्थी
बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान ने उम्र के कयासों पर लगाया विराम।

लखनऊ, [रूमा सिन्हा]: बीरबल साहनी पुरा विज्ञान संस्थान (बीएसआइपी) के वैज्ञानिक शोध अध्ययन से भारतीय मानसून सिस्टम की आयु से जुड़े कयासों पर विराम लग गया है। आठ वर्षों के अथक प्रयास के बाद वैज्ञानिकों ने पहली बार भारतीय मानसून सिस्टम से जुड़ी इस गुत्थी को सुलझाने में सफलता प्राप्त की है। आइसोटोपिक तकनीक पर आधारित शोध में भारतीय मानसून सिस्टम की आयु को 270 लाख वर्ष पुराना बताया गया है। अब तक किए गए अध्ययन में तिब्बत के वजूद में आने की भूवैज्ञानिक आयु (जियोलाजिकल एज) के आधार पर भारतीय मानसून सिस्टम की आयु को 120 लाख वर्ष पुराना माना जाता था, लेकिन संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. साजिद अली के 17 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार मौजूदा भारतीय मानसून सिस्टम 270 लाख वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आ गया था। यह तस्वीर बंगाल की खाड़ी में जमा हुए सेडिमेंटस (तलछट) के अध्ययन से साफ हुई है।

डॉ. अली बताते हैं कि भारतीय मानसून की तीव्रता के समय को अब तक विवादास्पद माना जाता रहा है। इस शोध अध्ययन से यह साफ हो गया है कि भारतीय मानसून सिस्टम 270 लाख वर्ष पूर्व ही अस्तित्व में आ गया था। डॉ. अली बताते हैं कि भूमध्य रेखा और बंगाल की खाड़ी में 235 मीटर लंबी तलछट के अध्ययन के आधार पर दक्षिण एशियाई मानसून इतिहास को परखा गया। बंगाल की खाड़ी में उच्च हिमालय के क्रिस्टलाइन पहाडिय़ों के क्षरण से सेडिमेंटस बंगाल की खाड़ी में पहुंचे थे। तलछट अवशेषों (नैनो फासिलस) के जो 38 नमूने एकत्र किए गए, उनकी आयु आइसोटोपिक विश्लेषण में 270 लाख वर्ष पुरानी मिली है। दरअसल, इन सेडिमेंट्स में पाए जाने वाले खनिज व अन्य कण पुराजलवायु के ठोस गवाह माने जाते हैं। वर्ष 2013 से किए जा रहे शोध अध्ययन पर अमेरिका की प्रतिष्ठित जियोफिजिकल यूनियन ने दो वर्ष की वैज्ञानिक समीक्षा के बाद अपनी मुहर लगा दी है। यह शोध पत्र पेलियोओशनोग्राफी एवं पेलियोक्लाइमेटोलॉजी जनरल में प्रकाशित किया गया है।

डॉ. अली का मानना है कि पुराजलवायु खासकर भारतीय मानसून प्रणाली से जुड़े इस शोध निष्कर्षों से भविष्य में जलवायु परिवर्तन व मानसून संबंधी अध्ययनों को नई दिशा मिल सकेगी। उन्होंने बताया कि बंगाल की खाड़ी में जो कोर स्टडी की गई, उसमें अलग-अलग तरह के मिनरल मिले हैं। वह कहते हैं कि मानसून की तीव्रता का अनुमान इन सेडिमेंट्स से लगाया जा सकता है। हिमालय उद्भव के साथ ही शुरू हुआ भारतीय जलवायु सिस्टम का निर्माण लगभग 500 लाख वर्ष पूर्व इंडियन प्लेट के एशियन प्लेट से टकराने के बाद हिमालय अस्तित्व में आना शुरू हुआ। उसके बाद ही हिमालय की पहाडिय़ों ने लगभग 300 लाख वर्ष पूर्व आकार लेना शुरू कर दिया। भूगर्भ विज्ञान के अनुसार इस युग को ओलिगोसीन व शुरुआती मायोसिन कहा जाता है। इसी युग में हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के उद्भव में आने को भारतीय जलवायु प्रणाली के निर्माण की शुरुआत माना जाता है।

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