उत्तर प्रदेश में 54 फीसद परिवार आज भी कर रहे पारंपरिक ठोस ईंधन का उपयोग, जानिए क्या है कारण

काउंसिल आन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार सूबे में 70 प्रतिशत से अधिक परिवार खाना पकाने के लिए प्राथमिक ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग करते हैं और 85 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन मौजूद है।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 10:32 AM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 08:44 AM (IST)
उत्तर प्रदेश में 54 फीसद परिवार आज भी कर रहे पारंपरिक ठोस ईंधन का उपयोग, जानिए क्या है कारण
सीईईडब्लू ने 16 जिलों में 1500 से ज्यादा परिवारों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित यह सर्वे किया है।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। विकास के साथ ही लोगों के जीवन में भी बदलाव आने लगा है। खासकर यह बदलाव ग्रामीण परिवेश में चूल्हा जलाकर खाना बनाने वाले परिवार में आया है। काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार सूबे में 70 प्रतिशत से अधिक परिवार खाना पकाने के लिए प्राथमिक ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग करते हैं और 85 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन मौजूद है। हालांकि यूपी के 54 प्रतिशत परिवारों ने पारंपरिक ठोस ईंधनों का नियमित रूप से उपयोग भी किया जा रहा है। सीईईडब्लू ने सूबे के 16 जिलों में 1500 से ज्यादा परिवारों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित यह सर्वे किया है।

खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले, कृषि अवशेष और लकड़ी का कोयला (चारकोल) जैसे ठोस ईंधनों का उपयोग ऐसे परिवारों के लिए घरेलू वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ा देता है। सीईईडब्ल्यू के यह निष्कर्ष ‘इंडिया रेजिडेंशियल एनर्जी सर्वे (आईआरईएस) 2020’ पर आधारित है जिसे इनिशिएटिव फार सस्टेनेबल एनर्जी पालिसी (आईएसईपी) के साथ साझेदारी में किया गया था। इसमें मिले निष्कर्ष बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में एलपीजी का विस्तार बिहार, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की तुलना में बेहतर है, लेकिन आईआरईएस में शामिल 13 अन्य राज्यों के मुकाबले कमजोर है। सीईईडब्लू का अध्ययन यह भी बताता है कि इटावा, महोबा, मैनपुरी, प्रतापगढ़ और सुलतानपुर जैसे जिलों में एलपीजी का विस्तार विशेष तौर पर कम है। इसके अलावा, इन पांच जिलों में लगभग एक-चौथाई (25 प्रतिशत) परिवार खाना पकाने के लिए केवल ठोस ईंधनों का ही उपयोग करते हैं।

सीईईडब्लू की सीनियर प्रोग्रामर शालू अग्रवाल ने बताया कि एलपीजी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उज्ज्वला के पहले चरण के तहत किए गए सरकार के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यूपी के 15 प्रतिशत परिवारों के पास अभी भी एलपीजी कनेक्शन नहीं है। उज्ज्वला के दूसरे चरण में लाभार्थियों की सुनियोजित तरीके से पहचान करने, संशोधित नामांकन प्रक्रिया लाने, और जागरूकता अभियान चलाने जैसे प्रयासों के माध्यम से इस अंतर को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। इटावा, महोबा, और मैनपुरी जैसे जिलों में, जहां एलपीजी का विस्तार बहुत कम है, विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है। इसके अलावा, सरकार को एलपीजी रिफिल पर सब्सिडी को दोबारा शुरू करने को भी प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि लोगों को ठोस ईंधन के उपयोग से दूर किया जा सके, जो खासकर महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर सबसे खराब असर डालता है। अध्ययन के अनुसार, यूपी में जो परिवार एलपीजी और ठोस ईंधन दोनों का एक साथ उपयोग करते हैं, उनमें से 93 प्रतिशत परिवारों ने एलपीजी को पूरी तरह से प्रयोग न करने का कारण इसकी ऊंची कीमतों को बताया है।

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