लखनऊ नगर निगम में दर्ज नहीं हैं 44,862 भवन, हाउस टैक्स, सीवर व जलकर की नहीं हो रही वसूली
जीआइ सर्वे (जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम) से 110 में से 88 वार्डों में इन भवनों को खोजा है। इस सर्वे ने भवन कर का निर्धारण करने के लिए नगर निगम की भारी भरकम फौज की कार्यप्रणाली पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। इनका भवन कर निर्धारण तक नहीं किया है।
लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि नगर निगम की सीमा में 44,862 ऐसे भवन हैं, जिसकी जानकारी ही नगर निगम को नहीं थी। इनका भवन कर निर्धारण तक नहीं किया गया है तो इस कारण उनसे जलकर और सीवर कर भी वसूला नहीं जा पा रहा है। भवन कर का निर्धारण होने पर ही सीवर और जलकर वसूला जा सकता है। इसमे जितना भवन स्वामी दोषी है तो उससे कहीं अधिक नगर निगम की लचर व्यवस्था भी जिम्मेदार है। जीआइ सर्वे (जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम) से 110 में से 88 वार्डों में इन भवनों को खोजा है। इस सर्वे ने भवन कर का निर्धारण करने के लिए नगर निगम की भारी भरकम फौज की कार्यप्रणाली पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। रविवार को जीआइ सर्वे की रिपोर्ट नगर निगम की समीक्षा बैठक में पेश की गई तो यह हकीकत सामने आई। अगर छूटे भवनों से भवन कर वसूला जाता तो नगर निगम की आय में और भी वृद्धि हो जाती।
नगर निगम के 110 वार्ड में जीआइ सर्वे से भवनों का पता किया जा रहा है। नगर निगम के अभिलेखों में 5,75,238 संपत्तियां दर्ज हैं, जो सभी 110 वार्डों में हैं, जबकि सर्वे में 88 वार्डों में ही 6,20,100 संपत्तियों का पता चला है। इस हिसाब से 88 वार्डों में 44,862 संपत्तियों का कर निर्धारण करने में कर विभाग से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी विफल रहे हैं।
नगर निगम को चूना लगा रहे हैं अधिकारी: आय बढ़ाने के बजाय राजस्व निरीक्षक से लेकर कर अधीक्षक और जोनल अधिकारी तक नगर निगम को चूना लगा रहे हैं। अधिकारियों का संरक्षण मिलने से कर निर्धारण में गड़बड़ी करने वाले बच भी जाते हैं। नगर निगम के जोन आठ के ट्रांसपोर्टनगर में भवन कर निर्धारण में बड़ा घपला पकड़ा गया था। दैनिक जागरण ने ही इस गड़बड़ी को उजागर किया था और नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने जांच के आदेश दिए थे, लेकिन जांच पर भी परदा डाल दिया गया। नगर आयुक्त ने इस गड़बड़ी में कर अधीक्षक सुनील त्रिपाठी व राजस्व निरीक्षक राहुल यादव समेत अन्य को जोन आठ से हटाकर जोन सात में भेज दिया था, लेकिन अपने प्रभाव से कर अधीक्षक फिर से जोन आठ पहुंच गए और ट्रांसपोर्टनगर का काम पाने में भी सफल हो गए। जांच में इन सभी का दोषी पाया जाना तय था, लेकिन जांच रिपोर्ट का ही अता-पता नहीं है।
लंबे समय से वार्डों में हैं जमे: एक वार्ड में तीन साल तैनाती का नियम नगर निगम में बनाया गया था, लेकिन कई राजस्व निरीक्षक कई-कई साल से एक ही वार्ड में तैनात हैं। कई तो ऐसे भी है, जो राजस्व निरीक्षक भी नहीं है, लेकिन भवन कर निर्धारण में खासा दखल रखते हैं। अधिकांश राजस्व निरीक्षकों ने बाहरी लोगों को भी इस काम में लगा रखा है, जो सामान्य संपत्तियों का कर निर्धारण करने के बजाय ऊपरी कमाई वाली संपत्तियों को ही टटोलने का काम करते हैं। इसमें व्यावसायिक संपत्तियां अधिक होती है।
निरीक्षकों से तेज है मोबाइल का मैसेज: ऐसा नहीं है कि लोग कर नहीं देना चाहते हैंं, लेकिन उन्हें बेवजह दौड़ाया जाता है। आपत्तियां लगा दी जाती हैं और मामला तय होने के बाद वहीं, भवन कर का निर्धारण कर दिया जाता है। भवन कर जमा न होने पर नगर निगम के अधिकारी राजस्व निरीक्षकों से लेकर कर अधीक्षक और जोनल अधिकारियों पर दबाव बनाता है, लेकिन कर वसूली तब तेज होती है, जब नगर निगम मोबाइल पर पंजीकृत भवन स्वामियों को भवन कर जमा करने का मैसेज करता है।
कर निर्धारण के बाद भी 1.75 से हाउस टैक्स नहीं मिलता
नगर निगम में 1.75 लाख भवन ऐसे दर्ज हैं, जिनसे आज तक नगर निगम को एक बार भी हाउस टैक्स नहीं मिला है। इनसे हाउस टैक्स वसूलने में नगर निगम लग्घी से पानी पिलाने जैसा ही काम कर रहा है। नगर निगम को जिन 4.3 लाख भवनों से कर मिल रहा है, उसमे बीस प्रतिशत ऐसे हैं जो नियमित कर जमा नहीं करते हैं।
नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने बताया कि जीआइ सर्वे से ही छूटे हुए भवनों का पता चल रहा है। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर इन भवनों का भौतिक मिलान कराया जा रहा है। जीआइ सर्वे में आए इन भवनों कर निर्धारण के दायरे का काम चालू कर दिया गया है और जल्द ही सभी को नगर निगम में दर्ज कर लिया जाएगा।इसके लिए समीक्षा की जा रही है।