गुरु तेगबहादुर का 400वां प्रकाशोत्सव: जानिए नौवें सिख गुरु के इतिहास के बारे में

गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाशोत्सव पर चारबाग के बाल संग्रहालय मैदान में दरबार सजाया जाएगा। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब प्रकाश पर्व संयुक्त कमेटी द्वारा होने वाले आयोजन के संयोजक संपूर्ण सिंह बग्गा ने बताया कि आयोजन को भव्य बनाने के लिए अपील की गई है।

By Vikas MishraEdited By: Publish:Mon, 18 Oct 2021 09:50 AM (IST) Updated:Mon, 18 Oct 2021 09:50 AM (IST)
गुरु तेगबहादुर का 400वां प्रकाशोत्सव: जानिए नौवें सिख गुरु के इतिहास के बारे में
गुरुद्वारा यहियागंज के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि डा.गुरमीत सिंह के संयोजन में आयोजन होगा।

लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। गुरु तेग बहादुर के 400 वें प्रकाशोत्सव पर चारबाग के बाल संग्रहालय मैदान में दरबार सजाया जाएगा। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब प्रकाश पर्व संयुक्त कमेटी द्वारा होने वाले आयोजन के संयोजक संपूर्ण सिंह बग्गा ने बताया कि 31 अक्टूबर को होने वाले आयोजन को भव्य बनाने के लिए लखनऊ के सभी गुरुद्वारों से सहयोग की अपील की गई है। गुरुद्वारा यहियागंज के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि डा. गुरमीत सिंह के संयोजन में आयोजन होगा। 19 अक्टूबर को आलमबाग के संत आसूदाराम शिव शांति आश्रम से आयोजन की शुरुआत होगी। आयोजन में चमनजीत सिंह व सरबजीत सिंह शबद पेश करेंगे। 30 और 31 अक्टूबर को गुरुद्वारों में आयोजन होंगे। रागी भाई मनप्रीत सिंह,गगनदीप सिंह,जसवीर सिंह व प्रचारक बाबा बंता सिंह को आमंत्रित किया गया है। मुख्य आयोजन बाल संग्रहालय मैदान में होगा।

कौन थे गुरु तेग बहादुरः लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेंंद्र सिंह बग्गा ने बताय कि गुरु तेगबहादुर साहिब जी का जन्म (प्रकाश) 1661 में गुरु के महल अमृतसर में हुआ था। गुरु तेग बहादुर साहिब के पिता व सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब जी एवं माता नानकी जी थीं। जब गुरु का जन्म हुआ तो दरबार साहिब अमृतसर में आसा दीवार का कीर्तन हो रहा था। गुरु तेग बहादुर साहिब जी के कानों में आसा दी वार के कीर्तन की पहली आवाज पड़ी फिर बाबा बुड्ढा जी, भाई गुरूदास जी एवं भाई विधीचंद ने आशीष दी और पिता गुरु हरगोविंद साहिब जी ने बालक के चेहरे पर नूर देखा एवं माता नानकी जी ने अपने बालक के गालों पर दो बूंद प्यार भरे आंसुओं को टपका कर तेजस्वी आत्मा, दीन रक्षक, बलिदानी, परोपकारी होने का आशीर्वाद दिया।

श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी के बचपन का नाम त्यागमल था पर जब गुरु जी 14 साल की आयु में त्यागमल ने करतारपुर की जंग में अद्वितीय बहादुरी दिखाई तो उनकी यह बहादुरी देख पिता गुरु हरगोविंद साहिब जी ने त्यागमल से तेग बहादुर नाम रखा जो आगे चल कर नवें गुरु हुए। गुरुद्वारा नाका हिंडोला में विशेष दीवान सजाया जाएगा। गुरुद्वारे में चल रहे वैक्सीनेशन शिविर में लगे योद्धाओं को सम्मानित भी किया जाएगा। उन्होंने समाज के लोगों को एकजुट होकर गुरुद्वारा नाका हिंडोला में होने वाले धार्मिक आयोजन को भव्य बनाने का आह्वान किया है।

20 साल तक किया कठोर तपः गुरुद्वारा मानसरोवर के अध्यक्ष संपूर्ण सिंह बग्गा ने बताया कि गुरु तेग बहादुर ने गुरु हरिराय जी का माथा टेका तथा 23 साल की आयु में माता गुजरी जी के साथ बाबा बकाला में चले गए। वहां जाकर गुरु तेग बहादर ने तप, साधना, सिमरन पर ज्यादा ध्यान दिया। गुरुजी ने बाबा बकाला में भौरा (गुफा) साहिब में 20 साल 8 महीने 13 दिन तक घोर तप किया। इसी दौरान गुरु घर को मानने वाले एक व्यापारी मक्खनशाह लुबाना का जहाज डूब रहा था तो उसने गुरु नानक देव जी को ध्यान में रख कर अरदास की। गुरु तेगबहादुर जी ने मक्खनशाह लुगाने का जहाज अपनी मिहर भरी कृपा से डूबने से बचा लिया। जब मक्खनशाह लुबाना 500 मोहरे लेकर गुरु नानक देव जी के घर बाबा बकाले में आए तो यहां 22 गुरु बने बैठे थे।

मक्खनशाह लुबाना जी ने हर एक को पांच मोहरें दीं। मोहरें बाटने के बाद पूछा कि कोई और भी है तो वहां पर मौजूद लोगों ने बताया कि भौरा (गुफा) साहेब में गुरु तेग बहादर साहिब जी हैं। तब मक्खन शाह लुबाना ने गुरु जी के पास जाकर पांच मोहरें भेट कीं। गुरुजी ने बड़े सहज भाव से मक्खन शाह लुबाना जी से कहा वादा 500 मोहरों का कर पांच मोहरें भेंट कर रहे हो। यह सुन कर मक्खनशाह लुबाना बड़े जोर जोर से चिल्लाया गुरु लाधों रे, गुरु लाधों रे इस तरह गुरु तेग बहादर जी गुरु के रूप में प्रकट हुए। तेग बहादर साहिब जी ने बिहार, बंगाल, आसाम, उड़ीसा, बंगलादेष, उत्तर प्रदेश, सहित कई राज्यों की यात्रा की। 

लखनऊ आए थे गुरु तेग बहादुरः गुरुद्वारा यहियागंज के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताय कि गुरु तेग बहादुर साहिब जी असम से वापस अनंदपुर साहब (पंजाब) जाते वक्त वाराणसी व अयोध्या के रास्ते लखनऊ में आए थे। 1670 में आए गुरु तेग बहादुर गुरुद्वारा यहियागंज (भाई गुरुदित्ता जी जो उदासी मत के संचालक थे) में रुके थे। 1670 से पूर्व ही इस स्थान की स्थापना हो चुकी थी। गुरुजी के आगमन पर संगतिया बाला जी एवं लखनऊ की संगत ने गुरु जी का स्वागत किया। इस पवित्र स्थान पर श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी तीन दिन ठहर कर लखनऊ की संगत को दर्शन दिए। वर्तमान में गुरुद्वारा यहियागंज में कई सिक्के व हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब स्थापित है।

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