गुरु के प्रति श्रद्धा और आशीर्वाद ने पहुंचाया ऊंचाइयों तक

गुरु और गोविद में गुरु का प्रथम स्थान माना गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर लोग अपने गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 11:27 PM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2020 11:27 PM (IST)
गुरु के प्रति श्रद्धा और आशीर्वाद ने पहुंचाया ऊंचाइयों तक
गुरु के प्रति श्रद्धा और आशीर्वाद ने पहुंचाया ऊंचाइयों तक

लखीमपुर: सनातन संस्कृति में गुरु का बहुत बड़ा महत्व है। गुरु और गोविद में गुरु का प्रथम स्थान माना गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर लोग अपने गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। प्रस्तुत है शहर की ऐसी कुछ प्रतिभाओं से बातचीत जिन्होंने अपने गुरु के आशीर्वाद से ही अपने जीवन में ऊंचे स्थान प्राप्त किए। गुरु ने दिया संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के निर्देश शहर के मुहल्ला बहादुर नगर निवासी डॉ. उमापति मिश्र संस्कृत में पीएचडी हैं। हिदी से एमए करने के साथ-साथ उन्होंने संस्कृत में पीएचडी की थी। 68 वर्षीय डॉ. उमापति मिश्र को वर्ष 2010 में अपने अच्छे शिक्षण के लिए दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया था। उस समय वे राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। छह साल पहले सेवानिवृत्त हो चुके डॉ. उमापति मिश्र बताते हैं कि संस्कृत का ज्ञान उन्हें वास्तविक रूप में वाराणसी के वाइस चांसलर पद्मश्री महामहोपाध्याय डॉ. राजेंद्र मिश्र से मिला। उन्हीं के दिशा निर्देशन में उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की और उन्हीं के बताए रास्ते पर चलकर छात्रों की सेवा का अवसर भी मिला। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के निर्देश भी उन्होंने ही दिए थे। आज भी वे अपने गुरु के प्रति श्रद्धावान हैं। उनका कहना है कि सरल स्वभाव के दयालु ऐसे गुरु के कारण ही उन्हें राष्ट्रपति के द्वारा यह सम्मान प्राप्त हुआ और संस्कृत जैसी देववाणी की सेवा करने का अवसर मिला। गुरु बिन भव निधि तरहि न कोई.. राज गोपाल मंदिर मुड़िया महंत के पुरोहित कथा व्यास आचार्य पंकज कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि श्री धाम वृंदावन में उनके गुरु डॉ. शिवकरण लाल मिश्र थे, जो श्रीनाथ धाम भागवत विद्यालय में उन्हें पढ़ाते थे। एक साधारण किंतु असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्हीं से भागवत सीखी है। आचार्य पंकज कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि करीब 20 वर्षों से श्रीमद्भागवत महापुराण के माध्यम से धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। यह उनके गुरुदेव की ही देन है। 35 वर्षीय आचार्य पंकज कृष्ण शास्त्री एक घटना बताते हैं जो उनके गुरुदेव ने उन्हें सिखाया था कि धर्म शास्त्रों के प्रति जितना समर्पित रहोगे, धर्म तुम्हें उतना ज्यादा संरक्षण देगा और धर्म की मर्यादाओं का पालन करके ही तुम उसे लोगों तक पहुंचा पाओगे। बस तभी से आचार्य पंकज ने अपने गुरु की बात पर अमल करना शुरू कर दिया। आज के दौर में वे देश के कई बड़े-बड़े स्थानों पर श्रीमद् भागवत सुना चुके हैं। लखनऊ, बरेली, रामपुर के अलावा मध्य प्रदेश या अन्य कई जगहों पर श्रीमद् भागवत कथा सुनने वालों की भीड़ जुटती है। अपने गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कि गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तरता। गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में गुरु बिन कोई . . .और यह बात उनके जीवन में चरितार्थ होती है। समर्पण और श्रद्धा ही पहुंचाती है ऊंचाइयों तक मुहल्ला शास्त्री नगर निवासी 29 वर्षीय आलोक शुक्ल एक अच्छे चित्रकार हैं। शहर के एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी चित्रकारी की प्रतिभा को निखारा। आस पड़ोस के कई विद्यालयों में जाकर उन्होंने चित्रकारी सीखी। इसके बाद गांधी विद्यालय में भी चित्रकला उनका प्रिय विषय रहा। वर्तमान में वे गोवा में अपनी चित्रकारी का सिक्का जमा चुके हैं। कई फिल्मी हस्तियों के साथ देश की अन्य बड़ी हस्तियों से भी मिल चुके हैं। वर्ष 2014 में लखीमपुर से गोवा जाने के बाद फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी इस प्रतिभा के पीछे बताते हैं कि आपकी श्रद्धा और समर्पण ही आपका गुरु है। अंतरमन में जब श्रद्धा उपजती है तभी अंदर कला जन्मती है। इसलिए श्रद्धा और समर्पण से बड़ा कोई गुरु नहीं। वे अपना गुरु इटली के प्रसिद्ध चित्रकार लियोनार्डो द विची को मानते हैं। वे बताते हैं कि उन्हीं के प्रति मेरी श्रद्धा है उन्हें ध्यान में रखकर ही चित्रकारी सीखी थी। वैसे बहुत लोगों का सहयोग है किसके बारे में क्या कहें।

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