दिल का डॉक्टर है न सीने का.. कहां जाएं मरीज

लखीमपुर: हाई कोर्ट का कहना है कि सरकार नौकरी में हैं तो सरकारी अस्पताल में ही इलाज

By JagranEdited By: Publish:Sat, 10 Mar 2018 09:16 PM (IST) Updated:Sat, 10 Mar 2018 09:16 PM (IST)
दिल का डॉक्टर है न सीने का.. कहां जाएं मरीज
दिल का डॉक्टर है न सीने का.. कहां जाएं मरीज

लखीमपुर: हाई कोर्ट का कहना है कि सरकार नौकरी में हैं तो सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराएं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को अमल में लाने के लिए सरकार को कड़ी मशक्कत करनी होगी। जिला खीरी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जिसे सदर अस्पताल भी कहते हैं वह खुद इस कदर बीमार है कि उसका इलाज हाल फिलहाल होता नजर नहीं आ रहा है। करीब बयालिस लाख की आबादी वाला ये जिला पिछले पांच साल से एक अदद दिल के डाक्टर की गुहार लगाता थक गया। दिल व सीने के डॉक्टर समेत कई मूल भूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। पूर्ण बहुमत की सरकारों में कमिश्नर से लेकर मंत्री तक इस अस्पताल का कई बार सूरते हाल देखने आए लेकिन सिवा आश्वासन की घुट्टी के कुछ भी नहीं मिला।

जिला अस्पताल में बनी कार्डियोलॉजी को पांच साल से कार्डियोलॉजिस्ट का इंतजार है। पांच वर्ष में तीन मुख्य चिकित्सा अधीक्षक आए। शासन तंत्र में भी बदलाव हुआ, लेकिन जिला अस्पताल के हृदय रोग विभाग की हालत नहीं बदली, न ही यहां हृदय रोग विशेषज्ञ आया। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों का पालन कैसे होगा। जिसमें न्यायालय ने यह आदेश दिया है कि सभी सरकारी कर्मचारी और अधिकारी सरकारी अस्पताल में ही अपना इलाज कराएं। पांच वर्षों में यहां रखे उपकरण भी अब नहीं मिलते। सिर्फ एक ईसीजी मशीन है, इसके अलावा हृदय रोग विभाग में ऐसा कोई उपकरण नहीं जो हृदय रोगियों के लिए प्रयोग किया जाता हो। अस्पताल के कर्मियों की माने तो पुराने रखे हुए उपकरण भी अब खराब हो चुके हैं जिन्हें लखनऊ भेजा गया था। नई तकनीक के उपकरण अभी तक इसीलिए नहीं आए कि अभी तक चिकित्सक ही नहीं आया। इस विषय पर यहां से चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी कोई रुचि नहीं ली। ऐसे में यदि न्यायालय के आदेश के अनुसार सरकारी अधिकारी यहां इलाज कराने आए भी तो कैसे। जिला अस्पताल में बने हृदय रोग विभाग में वर्ष 2013 में डॉ. केसी वर्मा हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में मरीजों का इलाज करते थे। जुलाई में उनका स्थानांतरण पड़ोसी जिला शाहजहांपुर हो गया। तब से यह पूरा हृदय रोग विभाग बिना चिकित्सक के है। अब यहां मरीज भी भर्ती नहीं होते। दो कमरे हैं जिसमें पांच पांच बेड हैं। लेकिन मरीजों की दवा इलाज का यहां कोई प्रबंध नहीं है।जिस कक्ष में डॉ. केसी वर्मा बैठते थे वहां फिजियोथेरेपिस्ट बैठते हैं और इससे संबंधित मरीजों का इलाज किया जाता है।

हर महीने जाता है प्रस्ताव

जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अरुण कुमार गौतम बताते हैं कि हर महीने होने वाली बैठक में यह प्रस्ताव शासन को जाता है, लेकिन अभी तक कोई हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं मिला है। शासन से बराबर मांग की जा रही है।

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