भुड़वारा की महिलाओं के बनाए जूता-चप्पल को मिल रही पहचान

बांकेगंज ब्लॉक के छोटे से गांव भुड़वारा की शफीका एक दुकान पर जूते बनाती थी।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 17 Jan 2021 10:30 PM (IST) Updated:Sun, 17 Jan 2021 10:30 PM (IST)
भुड़वारा की महिलाओं के बनाए जूता-चप्पल को मिल रही पहचान
भुड़वारा की महिलाओं के बनाए जूता-चप्पल को मिल रही पहचान

लखीमपुर : बांकेगंज ब्लॉक के छोटे से गांव भुड़वारा की शफीका एक दुकान पर जूते बनाती थीं। पांच साल पहले एनआरएलएम के लोगों से मुलाकात हुई। उनके प्रयासों से शफीका ने 11 महिलाओं को जोड़कर नबी स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें हर माह धनराशि एकत्र करबैंक खाते में जमा करनी शुरू की। एनआरएलएम से 11 हजार रिवाल्विग फंड के रूप में सहायता मिली। इससे शफीका ने महिला सदस्यों के सहयोग से जूते चप्पल बनाने का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने दूसरों के यहां नौकरी करने वाली महिलाओं को भी समूह से जोड़कर अपना काम करने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान में भुड़वारा गांव की 50 महिलाएं स्वावलंबी बन चुकी हैं।

समूह से वर्ष 2016 में एक लाख रुपये का कर्ज लिया था। वर्तमान में समूह के पास दो लाख से अधिक रुपये का बना और कच्चा माल उपलब्ध है। प्रतिमाह 25 से 30 हजार की आय हो रही है। कच्चा माल लखनऊ, आगरा और कानपुर से आता है। भुड़वारा की महिलाओं के निर्मित जूते और चप्पल कलकत्ता, कुरुक्षेत्र, राजस्थान और दिल्ली में मेलों और प्रदर्शनी में स्टाल में लग चुके हैं। इनमें एक लाख रुपये तक की अतिरिक्त आय हुई है। भुड़वारा में निर्मित जूते और चप्पल जिले में विभिन्न स्थानों पर दुकानदारों को आपूर्ति किए जाते हैं। समूह की अधिकांश महिलाएं साक्षर हैं, लेकिन उनके आगे अशिक्षा रोड़ा नहीं बन सकी। शफीका के दो लड़के और तीन लड़कियां हैं। उन्हें वह अब अच्छे स्कूलों में शिक्षित करा रही हैं। साथ ही 50 से अधिक महिलाओं को जूते-चप्पल निर्माण में लगाकर स्वावलंबी भी बनाया है।

समूह द्वारा लेडीज व जेंट्स चप्पल, जूते, सैंडिल और चमड़े की बेल्ट बनाई जा रही हैं। यह न केवल मजबूती के कारण अपनी विशेष पहचान रखते हैं, बल्कि बेहद ही कम कीमत पर उपलब्ध होने के कारण सभी वर्ग के लोगों को बेहद पसंद आते हैं।

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