37 साल बाद दिखा ऐसा मंजर, बाढ़ से चारों तरफ हाहाकार
धौरहरा तहसील में घाघरा और शारदा नदी की बाढ़ से वैसे तो हर साल ईसानगर और आसपास के गांव प्रभावित हुए।
लखीमपुर: धौरहरा तहसील में घाघरा और शारदा नदी की बाढ़ से वैसे तो हर साल ईसानगर और आसपास के गांव प्रभावित होते हैं लेकिन, इस साल हालात ज्यादा खराब हैं। लोगों का कहना है कि उन्होंने 37 साल बाद ऐसी बर्बादी देखी है। ईसानगर के करीब एक दर्जन ग्रामपंचायतों में घाघरा नदी का पानी भरा है। फसलें बर्बाद हो गई हैं। कई मार्गों पर पानी बह रहा है। घरों में पानी भर जाने से लोग छत पर मचान सहित उंचे स्थानों पर शरण लिए हैं। लोगों का कहना है कि पानी तो लगभग हर साल आता है लेकिन, बाढ़ से ऐसी बर्बादी वर्ष 1984 में ही दिखी थी। बाढ़ के आखिरी दिनों में घाघरा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर चला गया था।
नदियों के किनारे बसे गांवों में पानी भर गया। फसलें जलमग्न हो चुकी हैं और लोगों के घरों में भी पानी भरा है। लोग इधर-उधर रहकर पानी घटने का इंतजार कर रहे हैं। लोग पेड़ के सहारे मचान बनाकर बैठकर हालात पर चर्चा कर रहे थे। 70 वर्षीय बृजकिशोर ने बताया कि वर्ष 1984 की बाढ़ में ऐसे हालात बने थे। वैसे हर साल बरसात में पानी आता है लेकिन, खास दिक्कत नहीं होती है। फसलों का भी कम नुकसान होता है लेकिन, इस समय आई बाढ़ ने धान की फसल को नष्ट कर दिया। 80 वर्षीय त्रिलोकी ने बताया कि इस इलाके के लोग धान व सब्जी की खेती करते हैं। इस साल की बाढ़ में दोनों फसलें बर्बाद हो गईं हैं। खेतों व घरों में पानी भरने के चलते काफी दिक्कत हो रही है। हाल की बाढ़ में बेलागढ़ी, ओझापुरवा, कैरातीपुरवा व उनके मजरे, चकदहा, गनापुर, मांझासुमाली, सरैंयाकलां, भदईपुरवा, ठकुरनपुरवा, साहबदीनपुरवा सहित एक दर्जन ग्रामपंचायतों में घाघरा नदी का पानी घरों में भर गया। नहीं मिली कोई सुविधा
बेलागढ़ी के मजरा बनटुकरा गांव के मनोज कुमार, रामजीवन, जगदीश व फूलमती, रेनू सादिया कोइली आदि का कहना था कि चारों तरफ पानी भरा होने के कारण सबसे अधिक दिक्कत महिलाओं को हो रही है। नित्यक्रिया के लिए भी कहीं जगह नहीं है। बच्चों की निगरानी करनी पड़ रही है। प्रशासन की तरफ से अब तक कोई खोज खबर लेने नहीं पहुंचा है। महिलाओं का आरोप है कि अभी तक उन्हें राहत सामग्री नहीं उपलब्ध कराई गई है जबकि उनका गांव बाढ़ के पानी में डूबा हुआ है। रुकने के लिए कोई इंतजाम नहीं
बाढ़ पीड़ित गुड्डी बताती हैं कि बाढ़ का पानी घर में भरा है, फसल डूब गई है। पूरा परिवार तख्त व छतों पर वक्त गुजार रहा है। मवेशियों के चारे का संकट बन गया है। अभी तक कहीं से कोई मदद नहीं मिली है। प्रशासन ने बाढ़ पीड़ितों के रुकने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया है। प्रशासन ने नहीं ली खोज-खबर
ठकुरनपुरवा के बाढ़ पीड़ित संजय ने बताया कि इस बार की बाढ़ ने सबसे अधिक नुकसान फसलों को पहुंचाया है। धान की फसल चौपट हो गई है। कोरोना के चलते पहले ही रोजगार प्रभावित था, अब खेती भी बर्बाद हो गई। प्रशासन ने भी खोज-खबर नहीं ली। इससे बाढ़ प्रभावित लोगों की पीड़ा बढ़ती जा रही है। लेखपाल को कई बार बुलाया गया लेकिन वह गांव देखने तक नहीं आया।