आत्ममुग्ध रहे तहसील के अफसर, बाढ़ में डूब गए 92 गांव
तहसील भी वही है और कर्मचारी भी वही। न तो क्षेत्र का भूगोल बदला न ही इसे संभालने वाले राजस्वकर्मियों की संख्या बदली।
लखीमपुर : तहसील भी वही है और कर्मचारी भी वही। न तो क्षेत्र का भूगोल बदला न ही इसे संभालने वाले राजस्व कर्मियों की संख्या बदली। बदली तो सिर्फ तहसील की लीडरशिप और उसकी कार्यशैली। परिणाम सामने है कि तहसील क्षेत्र के 92 गांवों में नदियों की बाढ़ से त्राहिमाम गूंज रहा है। नाव पलटने की एक ही दिन में दो घटनाओं ने जिले को हिला दिया। बुधवार रात तक महिला और बच्चों समेत आठ लोग लापता थे। रात 12 बजे कमिश्नर तक को मौके पर आना पड़ा। 92 गांवों में पानी भरा है। लोगों की फसलें, गृहस्थी सब अस्त व्यस्त है लेकिन, तहसील के एसडीएम और तहसीलदार के पास न तो बचाव और राहत की ठोस योजना है, न ही शासन के निर्देशों का क्रियान्वयन। पूर्ववर्ती एसडीएम के साथ बाढ़ और कोविड 19 जैसी आपदा को अच्छे से संभाल चुके अनुभवी कर्मचारियों को किनारे लगा दिया गया है। एक भी गांव में अभी तक पर्याप्त नाव नहीं पहुंचीं। आपदा में भूखे पेट के लिए राशन नहीं पहुंचा। बर्बाद हुई फसलों का कोई आंकड़ा नहीं है। आलम यह है कि जब दो दिन पहले से इस आफत का अलर्ट जारी हुआ था तब खतरनाक जगहों से लोगों को निकालने और बचाने की कोई योजना नहीं बनी। जब बाढ़ चढ़ आई तब भी प्रशासन को पता नहीं था कि लोग कहां फंसे हैं और उन्हें निकालने के रास्ते क्या हैं। डीएम ने लताड़ा तो साहब ने लेखपाल पर उतारा गुस्सा
मिर्जापुर में नाव पलटने के बाद गौरा झबरा के पास टापू पर फंसे लोगों के रेस्क्यू के लिए जब डीएम ने तहसील प्रशासन से भौगोलिक स्थिति पूछी तो अधिकारी बगलें झांकते नजर आए। डीएम ने इस बात पर लताड़ा तो रात 12 बजे साहब ने अपना गुस्सा एक लेखपाल पर उतार दिया। इससे लेखपालों में गुस्सा भड़का तो डीएम को हस्तक्षेप करना पड़ा। खुद तहसील आकर लिखित माफी मंगवाने के डीएम के आश्वासन पर लेखपाल शांत हुए। पूरा समय नदी किनारे डटे रहे विधायक
विधायक बाला प्रसाद अवस्थी नाव डूबने की खबर पाकर गौरा झबरा पहुंचे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री से बात की और डीएम के साथ मोर्चा संभाला। तब जाकर टापू पर फंसे लोगों को हेलीकाप्टर से रेस्क्यू किया जा सका। एसडीएम रेनू पूरा समय एक भी सटीक अपडेट नहीं दे सकीं। हौकना मटेरा के पास तेलिया घाट से बही नाव पर सवार लोगों को बचाने में पुलिस और वन विभाग न जुटा होता तो नौ लोगों का जिदा बचना भी मुमकिन नहीं था। शारदा नदी की बाढ़ से प्रभावित गांव
राजापुर भज्जा, समदहा, रैनी, मड़वा, लुधौनी, मिडनिया, खनवापुर, गंगोलिया, मूडी, टहारा, संकल्पा, चकनाथपुर, जंगल नंबर तीन, समर्दा बदाल, खगियापुर, राजापुर पेमन, दूल्हामऊ, भव्वापुर खुर्द, कबीरपुर, चहमलपुर, चिकनाजती, सरगड़ा, ऐरा, फत्तेपुर, लखपेड़ा, खड़वामीतमऊ, रोटिहा, नंदूरा, ईसापुर, फूलपुर, डाबर, रायपुर मल्लापुर, कामना, गोपालापुर, चपकहा, कोडरीरूप, गौढी, जमदरी, दुर्गापुर पड़री, डिहुआ कलां, बिनौरा, गैसापुर, बेती सहदेव, बमहौरी, बेलवामोती, सरसवां, दुलही, सहरिया, रंजीतनगर। घाघरा नदी की बाढ़ से प्रभावित गांव
सुजानपुर, जंगल सुजानपुर, गुलरिया तालुके अमेठी, रामनगर बगहा, जंगल मटेरा, देवमनिया, बाछेपारा, मटेरा, परसा, रामलोक, कैराती पुरवा, ओझापुरवा, बेलागढी, चहलुआ, फकीरे पुरवा, वीरसिगपुर, सरैयाकलां, भुर्जनिया, धरमपुर, नारीबेहड़, मिर्जापुर मल्लापुर, रुद्रपुर सालिम, फिरोजाबाद, शेखूपुर, डुंडकी, गौरा, गनापुर, चकदहा, चंदौली, साधुवापुर, मिलिक, बुलाकीपुरवा, लौकाही मल्लापुर, गौढी, जंगलवाली, हरसिंहपुर, मांझा सुमाली, अचरौरा, बिजहा, कबिरहा, करिमापुर, परौरी, धुंधाकलां।