चेत जाइए, हर रोज नया सबक दे रही जंगल की आग
बफरजोन के डीडी डॉ. अनिल पटेल कहते हैं कि दुधवा में वनकर्मियों को बड़े जूते दिए गए हैं।
लखीमपुर : तराई के जंगलों में आए दिन लग रही आग पर काबू पाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। खासकर संसाधनों की कमी के कारण अफसर लाचार नजर आ रहे हैं। दुधवा पार्क हो या बफरजोन कहीं पर फायर किट नहीं है। एक अरसा बीत गया उपकरणों की खरीद किए हुए। स्थानीय प्रशासन से लेकर बड़े अफसर तक ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि अगर जंगल में भीषण आग लगी तो उसे कैसा बुझाया जाएगा?
तराई में 884 वर्ग किलोमीटर में फैले दुधवा पार्क में आग बुझाने के लिए जरूरी उपकरणों हेलमेट, बड़े जूते और फायर प्रूफ यूनीफार्म की कमी है। बफरजोन या साउथ डिवीजन में भी ये उपकरण नहीं हैं। वन विभाग के पास पानी के टैंकर तो हैं, लेकिन उनमें पाइप नहीं है। डिवीजनों में हाल के तीन-चार वर्षों में इन उपकरणों की खरीद के लिए कभी बजट भी नहीं आया और न ही कभी यहां के अधिकारियों द्वारा प्रस्ताव ही शासन को भेजे गए। दुधवा पार्क के किशनपुर सेंच्युरी के चल्तुआ, कटैया, कांप में जब दो दिन पहले भीषण आग लगी तो असहाय अधिकारियों के पास फायर बिग्रेड का मुंह ताकने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। यहां संसाधनों की कमी के कारण आग 40 हेक्टेयर क्षेत्रफल तक फैली। जिसमें पेड़ों के साथ वनस्पतियां और पर्यावरण में योगदान करने वाले धरातल के कीड़े-मकौड़े तक जल गए। इससे पहले मैलानी रेंज में आग से पांच हेक्टेयर वन संपदा राख हो गई थी।
फायर सीजन में आग की घटनाओं को रोकने के लिए रेंज स्तर पर टीमें गठित हैं। डिवीजनों में कंट्रोल रूम तक खोला गया है। वाचरों को जंगल में गश्त पर गया है और घुसपैठ पर कड़ी नजर है। फिर भी अग्निकांड होना पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है। जिम्मेदार की सुनिए
बफरजोन के डीडी डॉ. अनिल पटेल कहते हैं कि दुधवा में वनकर्मियों को बड़े जूते दिए गए हैं, हां अन्य डिवीजनों में फायर किट की कमी है। हाल वर्षों में उपकरणों की खरीद न होने से संसाधन कम पड़ रहे हैं।