जंगल से वनवासियों के पुनर्वासन पर सहमति का अड़ंगा
दुधवा टाइगर रिजर्व के कोर जोन में बसे गांवों को पुनर्वासित करने की अधिकारियों की तैयारी।
लखीमपुर : दुधवा टाइगर रिजर्व के कोर जोन में बसे गांवों को पुनर्वासित करने की अधिकारियों की योजना को झटका लगा है। कुल 14 गांवों में कतर्निया घाट इलाके के मात्र भरतापुर गांव के लोग ही जंगल से बाहर निकलने पर सहमत हुए हैं, लेकिन दुधवा प्रशासन और गांव के करीब 250 परिवारों के बीच अनुबंध न होने के कारण योजना अधर में लटकी हुई है। शेष 13 गांवों को जंगल से बाहर करने पर कोई सहमति नहीं बनी है।
स्वैच्छिक ग्राम पुनर्वासन योजना के तहत दुधवा प्रशासन की ओर से दो वर्ष पूर्व जंगल में बसे गांवों को बाहर करने के लिए सर्वे कराया गया था। इनमें 11 गांव कतर्निया घाट, दो किशनपुर व एक गांव दुधवा का शामिल है। मंशा थी कि जंगल का इलाका सिर्फ वन्यजीवों के लिए सुरक्षित रहे, इंसानी दखल से उसे दूर रखा जाए। दुधवा ने जंगल में बसे गांवों का सर्वे कराया। टीमों ने गांव-गांव जाकर ग्रामीणों की इच्छा जानी, लेकिन सर्वे में यह पता चला कि ग्रामीण अपना पुश्तैनी घर बार छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं। सिर्फ कतर्निया घाट के गांव भरतापुर में बसे करीब 200 परिवारों ने अपनी सहमति दी। इसके बाद यहां फिर से सर्वे कर पुनर्वासन की योजना को अमली जामा पहनाया गया। फिर भी अभी कई प्रक्रियाएं बाकी हैं। इसमें अनुबंध पत्र का बनना सबसे महत्वपूर्ण है। अधिकारियों को अनुबंध पत्र मिलने के बाद परिसंपत्तियों का मूल्यांकन हो पाएगा। पति-पत्नी के संयुक्त खाते में मिलते हैं 15 लाख
योजना में केंद्र 60 प्रतिशत व प्रदेश सरकार 40 प्रतिशत सम्मिलित बजट देती है। पुनर्वासन के लिए एक बैंक खाता पति-पत्नी का और दूसरा डीएम और लाभार्थी का होता है। प्रक्रिया पूरी होने पर लाभार्थी को जमीन के लिए 30 प्रतिशत, घर बनाने के लिए 30 प्रतिशत और खेती के लिए 30 प्रतिशत धनराशि भेजी जाती है। पैसे का दुरुपयोग रोकने के लिए डीएम जिम्मेदार होते हैं। पहले इस योजना के तहत एक लाभार्थी को 10 लाख रुपये की स्वीकृति मिलती थी, लेकिन अब इसके बढ़ा कर 15 लाख कर दिया गया है। जानिए क्या है जंगल का कोर जोन
जंगल का वह अंदरूनी हिस्सा जहां बाघ व अन्य वन्यजीव पूरे परिवार के साथ बिना किसी खलल के रहते हैं। उसे कोर जोन कहा जाता है। कोर जोन से जब बाघ या अन्य वन्यजीव भ्रमण पर निकलते हैं, उसे बफरजोन कहा जाता है। तराई में जंगल का भौगोलिक इलाका ऐसा है, जिसका प्रतिकूल असर वन्यजीवों पर पड़ता है। जिम्मेदार की सुनिए
फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक कहते हैं कि स्वैच्छिक ग्राम पुनर्वासन योजना में अभी सिर्फ भरतापुर गांव के लोगों से ही सहमति मिली है। अन्य गांवों के लोग अभी राजी नहीं हैं। इसलिए योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।