गाय के गोबर से गोशाला में बन रही लकड़ी
आय के साथ पर्यावरण का हो रहा सरंक्षण। इससे लकड़ी की खपत तो कम होगी साथ ही गोबर का धुंआ पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक भी होगा।
लखीमपुर: जिले की तीन गोशालाओं में गोबर की लकड़ी तैयार की जा रही है। इससे लकड़ी की खपत तो कम होगी साथ ही गोबर का धुंआ पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक भी होगा।
खंभारखेड़ा के अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल में गाय के गोबर और घास से दो दो फिट की एक ट्राली लकड़ी तैयार कर ली गई है। इसके अलावा दो अन्य गोवंश आश्रय स्थल में गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है। आने वाले समय में शमशानघाट में भी यही लकड़ी इस्तेमाल में लाई जाएगी। इससे होने वाली आय से गोशाला स्वावलंबी बनेगी। अभी तक लोगों ने गोबर से बनी खाद और उपलों के बारे में ही सुना होगा लेकिन, यहां तीन गोशालाओं में गोबर की लकड़ी तैयार की जा रही हैं। इससे लकड़ी की खपत तो कम होगी साथ ही गोबर का धुंआ पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक भी होगा।
जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर खंभारखेड़ा में नगरपालिका परिषद की गोशाला बनी हुई है। इस गोशाला में संरक्षित गोवंश से आमदनी करने के लिए इनके गोबर का उपयोग जरूरी था। पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में जिले की तीन गोशाला में गोबर से लकड़ी बनाने का काम शुरू किया गया है। धीरे-धीरे जिले की अन्य गोशालाओं में इसकी शुरूआत होगी। कुल 30 गोशालाएं यहां पर संचालित है।
गोशाला में पिछले दो महीने से गोबर से लकड़ी बनाने का काम किया जा रहा है। गोशाला का संचालन नगर पालिका परिषद करता है। अभी गाय के गोबर से लकड़ी तैयार की जा रही है। नगरपालिका अभी बिक्री दर तय नहीं कर पाई है। इसका इस्तेमाल बैकुंठ धाम में होने वाले शवों के अंतिम संस्कार और ईंट भट्ठा पर किया जाएगा। इसके लिए गोशाला में गोबर से लकड़ियां बनाने के लिए मशीन भी लगाई गई हैं। मशीन से लकड़ियां तैयार करने के लिए पहले गोबर को मशीन में डाला जाता है। उसके बाद दो से ढाई सेकेंड में दो फीट की गोबर से बनी लकड़ी निकल आती है। इसके आकार को घटा-बढ़ा भी सकते हैं। बरसात में काम धीमा है। तैयार लकड़ी को सुखाने में समय लगता है।