समूह बनाकर शायदा ने महिलाओं की बदली तकदीर

लाएं अलग अलग क्षेत्र में अपने घर में ही काम शुरू कर आमदनी कर रही हैं। परिजनों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है। थारू बाहुल्य इलाके में शायदा अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी है।घर पर सिलाई के अलावा समूह की महिलाओं के साथ जूट से सामान बनाकर बेंच रही है। जूट से बनी चप्पल आसन डलिया समेत तमाम बनते है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 18 Feb 2020 10:49 PM (IST) Updated:Tue, 18 Feb 2020 10:49 PM (IST)
समूह बनाकर शायदा ने महिलाओं की बदली तकदीर
समूह बनाकर शायदा ने महिलाओं की बदली तकदीर

लखीमपुर: पति की कमाई से छह बच्चों सहित 10 लोगों का खर्च नही चला तो पलिया के चंदनचौकी की महिला शायदा ने घर पर सिलाई का काम शुरू किया। इसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को तलाश कर समूह बनाया। समूह की महिलाओं को सप्ताह में प्रति सदस्य 10 रुपये जमा करने की आदत डाली। समूह में 12 महिलाएं जुड़ी है। शुरुआत में दो प्रतिशत ब्याज पर महिलाओं को समिति से कर्ज देना शुरू किया। इसी दौरान एनआरएलएम के लोगों से मुलाकात हुई तो समूह से जुड़ी महिलाओं की तकदीर ही बदल गई।

पति ने भी दिया भरपूर साथ

शायदा भले ही उर्दू से साक्षर हों, लेकिन उन्हें कभी कोई समस्या नहीं आई। शायदा के पति नूर इस्लाम की चंदनचौकी में अंडे की दुकान थी। जब अंडे बेंचकर घर का खर्च नहीं चला तो उसे भी मदद के लिए आगे आना पड़ा। शायदा ने अब अपने पति को समूह से 50 हजार का कर्ज दिलाया। हर माह ब्याज और कुछ मूल की धनराशि भी जमा कर रही है। नूर इस्लाम भी अब अंडे का व्यवसाय छोड़कर गल्ले की खरीद कर रहे है। शायदा की दो बेटियां और चार बेटे है। सभी पढ़ रहे हैं।समूह की अन्य महिलाएं भी अपना काम कर्ज लेकर कर रही है। शायदा कहती है कि हाथ में हुनर हो तो उसे अपने रोजगार का जरिया बनाया जा सकता है।

थारू बाहुल्य इलाके में अब शायदा की धमक

समूह की कई महिलाएं हैं जिन्होंने समूह के अलावा भी अपना काम शुरू किया है। अपने हुनर से राष्ट्रीय आजीविका मिशन के जरिए स्वयं सहायता समूह बनाकर खुद का रोजगार खड़ा किया है। इन समूहों में जुड़ी महिलाएं अलग अलग क्षेत्र में अपने घर में ही काम शुरू कर आमदनी कर रही हैं। परिजनों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है। थारू बाहुल्य इलाके में शायदा अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी है।घर पर सिलाई के अलावा समूह की महिलाओं के साथ जूट से सामान बनाकर बेंच रही है। जूट से बनी चप्पल, आसन, डलिया समेत तमाम बनते है।

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