जेहन में आज भी ताजा है आपातकाल की प्रताड़ना

कुशीनगर में आपात काल के दौरान 114 लोगों पर दर्ज हुआ था केस गए थे जेल इनमें से 83 लोग वर्तमान समय में मौजूद हैंलोगों ने उस समय की घटना को याद करते हुए बताया कि रिश्तेदारों के यहां महीनों छिपे रहे फिर गए जेल।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 12:35 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 12:35 AM (IST)
जेहन में आज भी ताजा है आपातकाल की प्रताड़ना
जेहन में आज भी ताजा है आपातकाल की प्रताड़ना

कुशीनगर : 25 जून 1975 की आधी रात को लागू हुआ आपातकाल भुक्तभोगियों के जेहन में अब भी ताजा है। जेल में बंद रहने के दौरान ढाया गया सितम कभी न भूलने वाला वह काला अध्याय है, जिसे याद कर मन सिहर उठता है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू की गई इमरजेंसी के अगले दिन से लोगों की धरपकड़ शुरू हुई, तो अपने-अपने घरों को छोड़ महीनों रिश्तेदारों के यहां शरण लेनी पड़ी। नवंबर में जब लगा कि आपातकाल खत्म नहीं होगा तो गिरफ्तारी देने का कार्य शुरू हुआ। उस समय देवरिया जेल में 250 कैदियों से दोगुना 500 से अधिक लोकतंत्र रक्षकों की संख्या रही। विरोध करने वाले बड़े-बड़े लोगों के नाम जानने के लिए जेल में बंद आमजन व राजनैतिक दलों के नेताओं को प्रताड़ित किया गया। पेड़ में बांध कर पीटना, बर्फ पर लिटा कर पिटाई, घरों पर पुलिस का पहरा व स्वजन का उत्पीड़न चरम पर रहा। विरोध करने वालों जिले के 114 लोकतंत्र रक्षक सेनानियों में से अब 83 ही बचे हैं।

नहीं उबर पाए कई सहयोगी

साढ़े नौ महीने देवरिया जेल में गुजारने वाले लोकतंत्र रक्षक सेनानी बंका सिंह बताते हैं कि हालात बहुत खराब थे। भय से लोग घर से बाहर निकलने से परहेज करते थे। बाजार व चौराहों की दुकानें बंद होने से चारों ओर सन्नाटा था। पुलिस की लाठी से लोगों में खौफ का माहौल था। इमरजेंसी खत्म होने के बाद घर पहुंचे सहयोगी हाटा के कपड़ा व्यापारी लालजी फिर दोबारा कारोबार खड़ा नहीं कर पाए। घर वालों ने उन्हें अलग कर दिया। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि उनके समक्ष भोजन तक का संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने बताया कि मेरे एक मित्र वाराणसी के जवाहर मिश्र को जेल में बंद होने पर इतना टार्चर किया गया कि वह मानसिक संतुलन खो बैठे। उनके ऊपर कुत्ते भी छोड़े गए। रिहा होने के बाद रैबीज का इंजेक्शन न लगने के कारण स्थिति काफी खराब हो गई और उनकी मौत 1986 में हो गई। कठकुइंया चीनी मिल के कर्मचारी बृजनाथ सिंह को विरोध प्रदर्शन के कारण नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हालांकि यह तीनों लोग हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें जेहन में आज भी ताजा हैं।

दहशत व भय का रहा माहौल

13 महीने से अधिक समय तक जेल में रहे लोकतंत्र रक्षक सेनानी जितेंद्र पांडेय ने बताया कि उस समय पूरे देश में दहशत व भय का माहौल था। आमजन को सरकार के खिलाफ कुछ बोलने पर रोक थी। बैनर-पोस्टर लेकर निकलना प्रतिबंधित था। विरोध करने वालों के साथ पुलिस का व्यवहार अमानवीय था। आपातकाल के दौरान कुछ लोगों को दूसरी सरकार बनने के बाद ही छोड़ा गया।

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