विशिष्ट ज्ञान हासिल करना ही विज्ञान है
कुशीनगर में नेहरू इंटर कालेज समेरी सुकरौली में जागरण की संस्कारशाला में प्रधानाचार्य ने कहा कि वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति तार्किक ढंग से सोचता है और किसी भी बात का सूक्ष्म विश्लेषण करता है ऐसे लोग बिना गहन अध्ययन के कोई दावे नहीं करते।
कुशीनगर : नेहरू इंटर कालेज समेरी सुकरौली में दैनिक जागरण की संस्कारशाला में प्रधानाचार्य डा.अरूण प्रताप सिंह ने कहा कि विज्ञान का अर्थ सिर्फ विषय ज्ञान ही नहीं बल्कि विशिष्ट ज्ञान या विशेषज्ञता हासिल करना है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति हर विषय, मुद्दे व तथ्य पर तार्किक ढंग से सोचता है और सूक्ष्म विश्लेषण करता है। ये लोग हर मुद्दे को बारीकी से समझना चाहते हैं, और बिना गहन अध्ययन, विश्लेषण के कोई दावे नहीं करते। इनके तथ्य प्रामाणिक व प्रयोग सिद्ध होते हैं। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति अनवरत एक दिशा में गहन परिश्रम करता है, कभी कभी समय ज्यादा लगता है, वह हारता भी है, लेकिन वह निरंतर आगे बढ़ता है। उसकी सोच सदैव सकारात्मक होती है।
कुछ लोग अपने कार्य में इतना तल्लीन रहते हैं कि मुख्य धारा में आते ही नहीं, इन्हें हम जान ही नहीं पाते, क्योंकि ये नाम के नहीं काम के शौकीन होते हैं। ये लोग धार्मिक बातों को भी तार्किकता की कसौटी पर परखना चाहते हैं, इसका अर्थ ये नहीं कि ये नास्तिक होते हैं बल्कि इनका उद्देश्य विचारों को वैज्ञानिक आधार देना होता है।
एक ही वस्तु को लोग अलग-अलग नजरिए से देखते हैं। एक छोटा बच्चा खिलौने से खेलता है तो दूसरा उसे तोड़कर उसका सूक्ष्म अवलोकन करता है। देखता है कि उसमें क्या-क्या है, वह वस्तु को बड़े ध्यान से देखता है। कई तरह के सवाल करता, उसके सवाल तार्किक और आश्चर्यचकित करने वाले होते हैं। भारतीयों की सोच प्राचीन काल से ही सृजनात्मक और वैज्ञानिक रही है। और कई पुरानी धारणाएं व तथ्य आज भी सत्य प्रतीत होते हैं। कई प्रथाओं व परंपराओं के वैज्ञानिक आधार हैं। ओटोहन ने लिखा है कि उसे परमाणु बम बनाने की प्रेरणा व विचार महाभारत के ब्रह्मास्त्र से ही मिली। रावण के पुष्पक विमान और गणेशजी के गजमुख के विषय में खोजें अभी तक देश विदेश में हो रहे हैं। शब्दबेधी बाण और आज के स्वचालित विमानों को जोड़कर देखा जा रहा है, संजीवनी बूटी खोज का विषय है। कई प्राचीन औषधियां आज भी आयुर्वेद में पाई जाती हैं। इस कोरोना काल में भी विश्व हमारी तरफ आयुर्वेद के लिए देख रहा था, हमने अपने आप को साबित भी किया और सराहना भी पाई। दवाओं के क्षेत्र में हम जर्मनी को पछाड़कर पहले पायदान पर आ गए। विश्व के कई विश्वविद्यालयों व संस्थाओं में भारतीयों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार हमारी प्राचीन सोच आज भी चरितार्थ है, अंतर बस इतना है कि कल हम विज्ञान को धर्म से जोड़ते थे और आज धर्म को विज्ञान से जोड़ना चाहते हैं।