पीएम ने बुद्ध धरा पर रोपा पवित्र बोधि पौधा

कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर परिसर में जिस पौधे का रोपण किया गया उसे बोधगया के बोधि वृक्ष से तैयार किया गया है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने देहरादून से मंगाया पौधा।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 01:10 AM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 01:10 AM (IST)
पीएम ने बुद्ध धरा पर रोपा पवित्र बोधि पौधा
पीएम ने बुद्ध धरा पर रोपा पवित्र बोधि पौधा

कुशीनगर : 2500 वर्ष पूर्व बोधगया में गौतम बुद्ध को जिस बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उसी बोधि वृक्ष से तैयार पौधे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर परिसर में रोपा।

प्रधानमंत्री ने इससे न केवल श्रीलंका से आए उच्चस्तरीय दल और 13 देशों से आए प्रतिनिधियों को आत्मिक रूप से जोड़ा बल्कि देश-दुनिया में शांति, समृद्धि और विकास की कामना की।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उद्यान विभाग ने पौधा देहरादून से मंगाया था। बोधि वृक्ष बौद्धों में अत्यंत श्रद्धा, आस्था व पवित्रता का पर्याय है। प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का लोकार्पण करने के बाद पौधा रोपा। इस मौके पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे। बोधि वृक्ष को सम्राट अशोक ने श्रीलंका से मधुर संबंध बनाने का माध्यम बनाया था। पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को बोधि वृक्ष की टहनी देकर श्रीलंका भेजा था। बुद्ध प्रतिमा पर चढ़ाया चीवर, वैश्विक शांति के लिए की पूजा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में बुद्ध की पांचवीं सदी की शयनमुद्रा वाली प्रतिमा को चीवर अर्पित किया। चीवर पीले रंग के सिल्क के वस्त्र से म्यांमार बौद्ध विहार में विशेष रूप से तैयार किया गया था। म्यांमार बौद्ध विहार के प्रबंधक भदंत ज्ञानेश्वर महाथेरो, भंते अशोक व भंते नंदरत्न ने प्रधानमंत्री के हाथों चीवर अर्पित कराया। बौद्ध भिक्षुओं ने धम्म पाठ कर प्रधानमंत्री के दीर्घायु व निरोग जीवन की कामना की। साथ ही पूरी दुनिया में शांति, अहिसा व विकास के लिए विशेष पूजा की।

प्राचीन प्रतिमा के समक्ष खड़े हुए प्रधानमंत्री भावविभोर दिखे। प्रधानमंत्री के साथ राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिधिया भी मौजूद रहे। बौद्ध भिक्षुओं ने प्रधानमंत्री को प्राचीन प्रतिमा की विशेषता बताई। यह प्रतिमा सिर की तरफ से मुस्कुराती हुई, मध्य से चितन मुद्रा और पैर के तरफ शयन मुद्रा में प्रतीत होती है। प्रतिमा की इस विशेषता को महसूस करने के लिए देश-दुनिया से सैलानी आते हैं। बौद्ध भिक्षुओं ने प्रधानमंत्री को यह खासियत बताई तो उन्होंने परिक्रमा के दौरान प्रतिमा की विशेषता को महसूस भी किया। गुप्तकाल में निर्मित यह प्रतिमा पुरातात्विक अवशेषों की खोदाई के दौरान सन् 1876 में प्राप्त हुई थी। बलुए पत्थर से बनी 6.10 मीटर लंबी इस प्रतिमा के प्रस्तर फलक पर बुद्ध के अंतिम समय में साथ रहे तीन शिष्यों का भी चित्रण है। पांचवीं शताब्दी का एक अभिलेख भी है, जिस पर प्रतिमा के समर्पणकर्ता हरिबल का उल्लेख है।

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