व्रती महिलाओं ने की पति की लंबी उम्र की कामना
करवाचौथ के मौके पर महिलाओं ने पूजन-अर्चन कर व्रत से जुड़ी कथाएं सुनीं चांद को अर्घ्य देने के बाद किया जल ग्रहण व्रती महिलाओं ने विधि विधान से चांद के दर्शन किए साथ ही पति के भी दर्शन किए।
कुशीनगर : अखंड सौभाग्य की कामना के साथ सुहागिन महिलाओं का रविवार को निर्जला उपवास देर शाम चांद के अर्घ्य देने के साथ करवाचौथ व्रत पूर्ण हुआ। इस दौरान पति ने पत्नी को जल अथवा मिष्ठान ग्रहण करा व्रत का अनुष्ठान संपन्न कराया।
व्रती महिलाओं ने सोलहो ऋंगार के बाद करवाचौथ की कथा का श्रवण किया। विधि विधान से पूजन अर्चन किया। कई स्थानों पर चलनी का प्रयोग नहीं किया गया, बल्कि पूजा कर देर शाम चन्द्र दर्शन कर अर्घ्य देकर भोजन किया गया। इस दौरान पूजन की सभी सामग्रियों का प्रयोग किया गया। धर्मशाला रोड निवासी गीता देवी, छाया, पूजा, प्रेरणा, हेमा, रेनू व किरन ने चौथ माता की कथा सुनी और पूजन कर पति के स्वस्थ, दीर्घायु व परिवार के उत्थान की कामना की। करवा चौथ के पूजन अर्चन के बाद निधि टिबड़ेवाल के पति विष्णु टिबड़ेवाल ने जल ग्रहण कर व्रत तोड़वाया। मारवाड़ी युवा चेतना महिला शाखा की अध्यक्ष मीनू जिदल के पति सतीश जिदल, मारवाड़ी युवा मंच के अध्यक्ष संजय टिबड़ेवाल ने पत्नी ममता टिबड़ेवाल को जल ग्रहण करा व्रत तोड़वाया। निर्जला व्रत रखते हुए महिलाओं ने पीली मिट्टी और गोबर की मदद से माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर लकड़ी के आसान पर बिठाकर मेंहदी, महावर, सिदूर, कंघा, बिदी, चुनरी, चूड़ी और बिछुआ अर्पित कर पूजन किया। अर्घ्य देते वक्त पति की लंबी उम्र और जिदगी भर साथ बने रहने की कामना की। आचार्य भोला पांडेय, ज्योतिषाचार्य नितेश पांडेय उर्फ सोनू, मारकंडेय मणि तथा ज्योतिषाचार्य शेषनाथ राय ने बताया कि चौथ माता के पूजन-अर्चन से पति के दीर्घायु की कामना की जाती है, इसका विशेष महत्व है।
श्रीमद्भागवत प्रभु श्रीकृष्ण को पाने का सुलभ मार्ग : आचार्य विनय
श्रीमद्भागवत महापुराण वेद रूपी कल्पवृक्ष का फल है। इस कथा के सानिध्य में आकर मनुष्य मन के विकारों अर्थात छल, कपट, द्वेष आदि से दूर होकर प्रभु श्रीकृष्ण को प्राप्त कर सकता है।
यह बातें आचार्य विनय शास्त्री ने कही। वह तमकुही विकास खंड के सपही बरवा गांव में आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन शुक्रवार की रात्रि श्रद्धालुओं को कथा सुना रहे थे।
उन्होंने नारद-व्यास संवाद, परीक्षित का जन्म व शाप, विदुर का हस्तिनापुर से जाना, विदुर-मैत्रेय की मुलाकात आदि प्रसंग सुनाते हुए कहा कि गुरु शिष्य परंपरा से प्राप्त ज्ञान अमिट है।