नई तकनीक से करें अरहर की खेती, बढ़ेगी पैदावार
कुशीनगर में अरहर की दाल की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को निश्शुल्क बीज देकर किया गया प्रोत्साहित कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि अरहर की खेती से बढ़ती है जमीन की उर्वरा शक्ति।
कुशीनगर : पूर्वांचल कभी अरहर की खेती का हब हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी परिवर्तन व किसानों की रुचि कम होने के कारण पैदावार कम हो गई। शासन द्वारा अरहर की खेती करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र सरगटिया करनपट्टी में इसकी बोआई के लिए प्रदर्शनी लगाई गई और निश्शुल्क बीज वितरण कर किसानों को खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
केंद्र प्रभारी डा. अशोक राय ने कहा कि किसान अगर अरहर की खेती के प्रति जागरूक हों तो पैदावार बेहतर होगी। अरहर की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसकी जो पत्तियां जमीन पर गिरती हैं, वह खाद का काम करती हैं। साथ ही इस फसल से जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के बीज की प्रजाति की बोआई करना लाभप्रद रहेगा। 135 से 140 दिन में शीघ्र तैयार होने वाली प्रजातियों में उपास 120, पूसा 992, पूसा 2000 एवं पूसा 2002 का प्रयोग किया जाना चाहिए। 210 से 250 दिन में तैयार होने वाले प्रजातियों में मालवीय चमत्कार, नरेंद्र अरहर एक, नरेंद्र अरहर दो का चयन करना चाहिए। शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बोआई जून के अंतिम सप्ताह तक व देर से पकने वाली प्रजातियों की बोआई जुलाई माह तक अवश्य कर दें। केंद्र के मृदा एवं शस्य वैज्ञानिक डा. टीएन राय ने कहा कि अरहर की बोआई मेड़ बनाकर लाइन में करें। इससे अरहर के साथ मूंग, बाजरा, मक्का, हल्दी बाजरा की सह फसली पैदावार ली जा सकती है। अरहर की खेती में खाद की मात्रा कम प्रयोग होती है, लेकिन अच्छी पैदावार बढ़ाने के लिए 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की देशी खाद का प्रयोग की जा सकती है। रसायनिक उर्वरकों के लिए 20 से 25 किग्रा नाइट्रोजन, 60 से 80 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश, 25 किग्रा सल्फर का प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जा सकता है।