घूंघट की आड़ से चुनावी वैतरणी पार करेंगी महिला प्रत्याशी

कौशांबी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए तय कोटे के अनुसार सीटों का आरक्षण सूची 27 मार्च को जारी किया जा चुकी है लेकिन धरातल पर वास्तविक स्थित कुछ और ही देखने को मिल रहा है। ज्यादातर महिला प्रत्याशी घूंघट में रहकर अपने पतियों या फिर बेटों के सहारे ही पंचायत चुनाव की वैतरणी पार उतरने का मंसूबा पाल रखा है। कुछ गांवों को छोड़ दे तो अधिकांश महिला सीटों पर नाम तो महिलाओं का है लेकिन असल में चुनाव उनके पति या पुत्र ही लड़ते देखे जा रहे हैं। इसके चलते सरकार के महिलाओं को पंचायत चुनाव में प्रतिनिधित्व दिलाने के मंसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 10:25 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 10:25 PM (IST)
घूंघट की आड़ से चुनावी वैतरणी पार करेंगी महिला प्रत्याशी
घूंघट की आड़ से चुनावी वैतरणी पार करेंगी महिला प्रत्याशी

संसू, अर्का : कौशांबी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए तय कोटे के अनुसार सीटों का आरक्षण सूची 27 मार्च को जारी किया जा चुकी है, लेकिन धरातल पर वास्तविक स्थित कुछ और ही देखने को मिल रहा है। ज्यादातर महिला प्रत्याशी घूंघट में रहकर अपने पतियों या फिर बेटों के सहारे ही पंचायत चुनाव की वैतरणी पार उतरने का मंसूबा पाल रखा है। कुछ गांवों को छोड़ दे तो अधिकांश महिला सीटों पर नाम तो महिलाओं का है, लेकिन असल में चुनाव उनके पति या पुत्र ही लड़ते देखे जा रहे हैं। इसके चलते सरकार के महिलाओं को पंचायत चुनाव में प्रतिनिधित्व दिलाने के मंसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है।

चुनाव आयोग ने 27 मार्च को त्रिस्तरीय पंचायत के सभी पदों के लिये आरक्षण सूची जारी किया था। जिसमें जनपद के 438 ग्राम पंचायतों में से 145 ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधित्व का जिम्मा महिलाओं को दिया गया है। इसके अलावा सामान्य सीट पर भी कई गांवों में महिलाएं मैदान में ताल ठोक रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। कहने को तो आरक्षित महिला सीटों पर महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन वास्तविकता देखी जाए तो बहुत सी महिला प्रत्याशी ऐसी है जो घर से निकली तक नहीं हैं और निकले भी क्यों, उनके प्रचार-प्रसार और जिताने का ठेका उनके पतियों और बेटों ने जो ले रखा है। कुछ तो महिला प्रत्याशियों के पतियों ने पोस्टर, होर्डिंग में अपनी पत्नी की फोटो तक लगवाना मुनासिब नहीं समझा। अपने पत्नी के नाम के साथ अपनी फोटो लगाकर गांव का मुखिया बनने के लिए दिन-रात एक किये हुए हैं। अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि जीतने के बाद क्या महिलाएं स्वयं के बूते काम करेंगी या पति ही गांव की सत्ता चलाएंगे। कुल मिलाकर यदि ऐसा हुआ तो सरकार के नारी सशक्तिकरण के लिए उठाए जा रहे कदम पर पानी फिरना तय है।

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