सफेद कद्दू की खेती बन रही किसानों के लिए वरदान
चायल कौशांबी दोआबा के गंगा-यमुना के तराई क्षेत्र में पैदा होने वाले सफेद कद्दू से बना रसी
चायल, कौशांबी : दोआबा के गंगा-यमुना के तराई क्षेत्र में पैदा होने वाले सफेद कद्दू से बना रसीला चेरी पेठा जहां गर्मियों में लोगों की पहली पसंद है। वहीं अनुकूल मौसम और कम लागत की वजह से किसानों के लिए यह वरदान साबित हो रहा है। सफेद कद्दू के मामले में नजीर बन चुके तराई क्षेत्र से प्रेरित होकर अब मैदानी क्षेत्र के किसान भी हजारो एकड़ में उत्पादन कर मालामाल हो रहे हैं।
जनपद के तराई वाले गांव दिया उपरहार, भखंदा, लाला का पूरा, मखापुर, पन्ना का पूरा, नंदा का पूरा, केवट पुरवा, मोहिद्दीनपुर उपरहार में करीब 25 वर्ष पहले शुरू हुई सफेद कद्दू की खेती अब मैदानी क्षेत्र के हजारो एकड़ में फैल चुकी है। गत 15 वर्षो से लगातार सफेद कद्दू की खेती कर रहे बिगहरा गांव के किसान विनोद दुबे का कहना है कि सफेद कद्दू की खेती में बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। गर्मियों में खेत की जुताई के बाद आठ से दस फुट की दूरी पर एक फुट का गहरा गड्ढा खोद दिया जाता है। उसके बाद गोबर की खाद और 50 ग्राम डीएपी गड्ढे की मिट्टी में मिलाकर पहली ही बरसात में ही तीन से चार बीज की बुआई कर देते हैं। बरसात होने से सिचाई नहीं करनी पड़ती, जरूरत पड़ने पर ही एक दो सिचाई करनी पड़ती है। पौधों में फूल लगने से पहले एक बार निराई कर खरपतवार को खेत से बाहर कर देते हैं। प्रति एकड़ आठ हजार रुपये की लागत में तकरीबन 100 से 125 कुंतल सफेद कद्दू का उत्पादन होता है। भाव अच्छा मिलने पर प्रति एकड़ 60 हजार से 80 हजार का लाभ होता है।
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मेवशी भी नहीं चरते सफेद कद्दू की फसल :
बेसहारा मवेशियों के फसल नष्ट करने से किसानों की परेशानी बढ़ी है। यह छुट्टा मवेशी झुंड के झुंड में पहुंच कर चना, मटर, सरसों और गेंहू की फसल को चरकर बर्बाद कर देते हैं। लेकिन सफेद कद्दू की फसल को मवेशी क्षति नहीं पहुंचाते हैं। जिससे किसानों को इसकी देखभाल में ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ती है।
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प्रयागराज, आगरा और कानपुर में की जाती है आपूर्ति :
दोआबा की बलुई और दोमट मिट्टी से उत्पादित सफेद कद्दू का ज्यादा प्रयोग चेरी पेठा बनाने में किया जाता है। कुछ लोग इसी कद्दू से बरी व कोहड़ौरी भी बनाते हैं। तैयार कद्दू को खरीद व्यापारी तोड़ाई करवाने के बाद ट्रैक्टर और ट्रक से प्रयागराज, कानपुर और आगरा में आपूर्ति करते हैं। जहां इसका लाजवाब रसीला चेरी पेठा तैयार किया जाता है।
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उद्यान विभाग से मिले सहायता तो बढ़ सकती है खेती :
धर्मपुर गांव के निवासी किसान रमाशंकर, अर्जुन सिंह, चतुर सिंह आदि का कहना है कि यहां की बलुई और दोमट मिट्टी सफेद कद्दू के लिए मुफीद है। उद्यान विभाग से सहायता मिलने पर इसका रकबा और बढ़ सकता है। अच्छी प्रजाति का बीज और वैज्ञानिक विधि से खेती के प्रशिक्षण से सफेद कद्दू के उत्पादन के तौर पर भी जनपद की पहचान बन सकती है।
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जनपद में सफेद कद्दू का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। किसानों की सहायता के लिए शासन को चिट्ठी लिखी गई है। शासन से बजट मिलते ही जनपद के किसानों के लिए सफेद कद्दू के बीज की व्यवस्था कराई जाएगी।
-सुरेंद्र राम भाष्कर, जिला उद्यान अधिकारी, कौशांबी।