मनौरी व पूरामुफ्ती से हो रही नकली उर्वरक की आपूर्ति
दोआबा की धरती बासमती धान गेंहू और आलू की अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है। भगवान बुद्ध के उपदेश से सिचित कोसम खिराज क्षेत्र की पांच सौ बीघा भूमि पर तो बिना उर्वरक और पानी के ही चना सरसों अलसी और मसूर की अच्छी उपज होती है।
विनोद सिंह, चायल : दोआबा की धरती बासमती धान, गेंहू और आलू की अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है। भगवान बुद्ध के उपदेश से सिचित कोसम खिराज क्षेत्र की पांच सौ बीघा भूमि पर तो बिना उर्वरक और पानी के ही चना, सरसों, अलसी और मसूर की अच्छी उपज होती है।
किसान खेतों में 95 प्रतिशत रासायनिक व पांच प्रतिशत जैविक (कंपोष्ट) व अन्य उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। रासायनिक उर्वरक के अधिक प्रयोग ने मिलावट खोरों को बढ़ावा दिया है। नतीजतन मिलावटी और नकली उर्वरक का खेल शुरू हो गया है। किसान मुख्य रूप से डीएपी, यूरिया, पोटाश का प्रयोग खेतों में करते हैं। इफ्को के क्षेत्रीय प्रबंधक जितेंद्र गंगवार की मानें तो वर्षभर में 63695 मीट्रिक टन यूरिया, 13344 मीट्रिक टन डीएपी व 5002 मीट्रिक टन एनपीके सहित 584 मीट्रिक टन एमओपी की आपूर्ति किसानों के लिए की जाती है। वहीं किसानों के मुताबिक तो 82625 मीट्रिक टन उर्वरक आपूर्ति हो रही है। ऐसे करें असली उर्वरक की पहचान
कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह के अनुसार यूरिया सफेद, चमकदार व समान आकार के गोल दाने में होती है। पानी में पूरी तरह घुलकर पानी को ठंडा कर देता है। गर्म करने पर वाष्प बन विलुप्त हो जाती है। जबकि डीएपी दानेदार एवं भूरे व काले रंग की होती है। इसके दाने कठोर होते हैं, चूना मिलाकर रगड़ने पर तीखी गंध देती है। हवा के संपर्क में आने पर नम हो जाती है। गर्म करने पर फूल जाती है। पोटाश सफेद कण, पीसा नमक तथा लाल रंग में होती है। इनके कणों को गीला कर दिया जाए तो यह आपस में चिपकते नहीं हैं। पानी में डालने पर लाल रंग पानी के ऊपर फैल जाता है। कारोबारियों ने बाजार में पहुंचा दिया नकली उर्वरक
- रबी की बोआई शुरू होते ही नकली उर्वरक के कारोबारियों ने बाजार में विक्रेताओं के पास बड़े पैमाने पर खेप पहुंचा दी है। नाम न छापने पर एक उर्वरक विक्रेता ने बताया कि डीएपी में 350 रुपये में 50 किलो मिलने वाली सिगल सुपर फास्फेट की मिलावट कर सप्लाई की जाती है। ब्रांडेड कंपनी की मिलती जुलती पैकिग में जिक और सल्फर की बड़ी खेप बाजार में पहुंच चुकी है। शक्तिमान के नाम से मिलने वाली जिक की मिलती जुलती पैकिग कर शक्तिवान नाम से बेची जा रही है। जबकि दीमक के लिए कंपनी की रीजेंट की जगह मिलती जुलती पैकिग कर रीजेंसी के नाम से बेची जा रही है। विक्रेता की मानें तो नकली उर्वरक का पूरामुफ्ती और भरवारी में पैकिग कर चायल, नेवादा, सरायअकिल, विजिया, म्योहर, सैनी, सिराथू, पश्चिम शरीरा सहित पूरे जनपद में आपूर्ति की जा रही है। जैविक खाद से कम लागत में मिलती अच्छी उपज
- कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट व जैविक उर्वरक रासायनिक खाद का अच्छा विकल्प है। कृषि विभाग नाडेप, वर्मी (केंचुआ खाद) व जैविक खाद के उत्पादन पर किसानों को अनुदान भी दिया जाता है। नाडेप में खरपतवार और मवेशियों के गोबर से कम लागत में कंपोष्ट खाद तैयार कर अच्छी उपज ली जा सकती है। कंपोष्ट खाद से तैयार उपज स्वास्थ्यवर्धक भी होता है। मिट्टी परीक्षण है जरूरी
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि खेत की मिट्टी की न्यूट्रल (पोषक तत्व) कम से कम सात पीएच होना चाहिए। नकली उर्वरक से खेत की मिट्टी ऊसर होने लगती है। वहीं नकली खाद के प्रयोग से उपजे फसल का मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता भी साल दर साल प्रभावित होती है। इससे अनेकों प्रकार के रोग से ग्रसित होने की आशंका बढ़ जाती है।
रासायनिक खाद में मिलावट व नकली खाद की सूचना पर छापेमारी कर कार्रवाई की जाती है। बिना लाइसेंस विक्रेताओं को नोटिस भेज जवाब मांगा गया है। मिलावटी और नकली उर्वरक की मिलने पर विक्रेताओं के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाई जाएगी।
- मनोज कुमार गौतम, जिला कृषि अधिकारी।