माटी है अनमोल, खेती के लिए वरदान

गांव की माटी में खेती करना सौभाग्य है। किसान अपने खेत में दिन रात मेहनत कर फसल के रूप में सोना उगाता है। इसी परिप्रेक्ष्य पर डा. गोपाल पांडेय स्मृति मेमोरियल व्याख्यान माला के अवसर पर माटी के मोल अनमोल विषय पर खेती से जुड़े विज्ञानी व शोध छात्रों की उपस्थिति में वर्चुअल कार्यक्रम हुआ।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 10:58 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 10:58 PM (IST)
माटी है अनमोल, खेती के लिए वरदान
माटी है अनमोल, खेती के लिए वरदान

संसू, टेढ़ीमोड़ : गांव की माटी में खेती करना सौभाग्य है। किसान अपने खेत में दिन रात मेहनत कर फसल के रूप में सोना उगाता है। इसी परिप्रेक्ष्य पर डा. गोपाल पांडेय स्मृति मेमोरियल व्याख्यान माला के अवसर पर माटी के मोल अनमोल विषय पर खेती से जुड़े विज्ञानी व शोध छात्रों की उपस्थिति में वर्चुअल कार्यक्रम हुआ।

मृदा विज्ञानी डा मनोज कुमार सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, कौशांबी ने कहा कि तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनकर मैं खिल जावां, इतनी सी है दिल की आरजू.. यह फिल्मी गीत उन पर सटीक बैठ रहा है, जो दशकों पहले अपनी माटी दूसरे के हाथ सौंपकर दूसरे प्रदेश चले गए थे। लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना संक्रमण काल में जब परिस्थितियां बदली तो वह फिर लौट आए और माटी के मोल को पहचानते हुए खेतों को वापस लेकर खुद ही फसल उगाने की तैयारी में लग गए। वही माटी आज उनके लिए अनमोल बन गई है। माटी के मोल अनमोल कैसे है पहले इसे समझते है। माटी के मोल को पहचानने की आवश्यकता है, हमें यह भी समझना चाहिए कि फसल को नत्रजन चाहिए यूरिया नहीं। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता का जीवन परिचय डा. मनोज कुमार सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, उद्यान विज्ञान विभाग, कुलभास्कर आश्रम पीजी कालेज प्रयागराज ने दिया। कार्यक्रम का संचालन डा. ज्योति वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर जंतु विज्ञान विभाग सीएमपी पीजी कालेज, प्रयागराज ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. देवेंद्र स्वरूप, पशु विज्ञानी चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर ने दिया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डा. मनोज कुमार सिंह को डा. गोपाल पांडेय इस स्मृति पुरस्कार -2021 से सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के सैकड़ों शिक्षकों व छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। माटी के तत्व

मृदा अथवा मिट्टी पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत होती है। मिट्टी का निर्माण टूटी चट्टानों के छोटे महीन कणों, खनिज, जैविक पदार्थो, बैक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है। मिट्टी की कई परतें होती हैं। सबसे ऊपरी परत में छोटे मिट्टी के कण, गले हुए पौधे और जीवों के अवशेष होते हैं। यह परत फसलों की पैदावार के लिए महत्वपूर्ण होती है। दूसरी परत महीन कणों जैसे चिकनी मिट्टी की होती है और नीचे की विखंडित चट्टानों और मिट्टी का मिश्रण होती है। साथ ही आखिरीपरत में अ-विखंडित सख्त चट्टानें होती हैं। देश के सभी भागों में मिट्टी की गहराई अ-समान रूप से पाई जाती है। यह कुछ सेमी. से लेकर 30 मी. तक गहरी हो सकती है। मिट्टी के प्रकार

मिट्टी अपनी विशिष्ट भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार की फसलों को लाभ प्रदान करती है। जलोढ़ मिट्टी उपजाऊ व पोटेशियम से भरपूर है। यह विशेष कर धान, गन्ना और केले की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है। लौह मात्रा अधिक वाली लाल मिट्टी चना, मूंगफली, अरण्डी के लिए उपयुक्त है। काली मिट्टी में कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम प्रचुर मात्रा में, लेकिन नाइट्रोजन कम होती है। कपास, तम्बाकू, मिर्च, तिलहन, ज्वार, रागी और मक्के जैसी फसलें अच्छी उगती हैं। रेतीली मिट्टी में पोषक तत्व कम होते हैं, लेकिन यह अधिक वर्षा क्षेत्रों में नारियल, काजू और कैजुरिना के लिए उपयोगी है।

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