एकता का पैगाम देने आए बुंदेलों ने शुरू कराई थी रामलीला, आधुनिक तरीके से हर वर्ष होता है रामलीला का मंचन

आदर्श नगर करारी का इतिहास स्वर्णिम रहा। मुगलों से संघर्ष के दौरान एकता का संदेश देने के आए बुदेलों ने रामलीला का शुभारंभ कराया था। कस्बे का इतिहास और बुजुर्ग भी इसकी गवाही देते हैं। पहले स्थानीय लोग रामलीला का मंचन करते थे। अब रामलीला हाईटेक हो गई है। बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी में बाहरी कलाकार आधुनिक तरीके से रामलीला का मंचन करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 11:00 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 11:00 PM (IST)
एकता का पैगाम देने आए बुंदेलों ने शुरू कराई थी रामलीला, आधुनिक तरीके से हर वर्ष होता है रामलीला का मंचन
एकता का पैगाम देने आए बुंदेलों ने शुरू कराई थी रामलीला, आधुनिक तरीके से हर वर्ष होता है रामलीला का मंचन

कौशांबी। आदर्श नगर करारी का इतिहास स्वर्णिम रहा। मुगलों से संघर्ष के दौरान एकता का संदेश देने के आए बुदेलों ने रामलीला का शुभारंभ कराया था। कस्बे का इतिहास और बुजुर्ग भी इसकी गवाही देते हैं। पहले स्थानीय लोग रामलीला का मंचन करते थे। अब रामलीला हाईटेक हो गई है। बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी में बाहरी कलाकार आधुनिक तरीके से रामलीला का मंचन करते हैं।

मुगलकाल में कर (टैक्स) की वसूली की जाती थी, जिसका विरोध बुंदेलों ने शुरू किया। 1729 ई में जब मुगलों से बुंदेलों का संघर्ष हुआ तो बुंदेले एकजुटता का पैगाम देने कौशांबी आए थे। वे धार्मिक नाटकों के माध्यम से पहले लोगों की भीड़ इकट्ठा करते थे। फिर मौजूद लोगों से एकजुट होने का आह्वान करते थे। कौशांबी भ्रमण के दौरान बुंदेला सरदार छत्रसाल के बेटे हरदे नारायण करारी भी आए थे। संगठित होने का संदेश देने के लिए उन्होंने ही यहां रामलीला शुरू कराई। उनके जाने के बाद स्थानीय लोगों के सहयोग से यहां लगातार रामलीला का मंचन हो रहा है। जमींदारों की वजह से इस दौरान कई बार जगह बदली गई। जगह निर्धारित न होने से रामलीला में काफी दिक्कतें आया करती थीं, जिसे देखते हुए 1885 ई. में माफीदार पंडित रामाधीन भट्ट ने कृष्णनगर मोहल्ले में स्थित अपनी को रामलीला कमेटी को दान करते हुए 12 दिन रामलीला के लिए मुकर्रर कर दी। आने वाली पीढि़यां जमीन को लेकर रामलीला में किसी तरह का कोई विघ्न न डाल सकें, इसके लिए श्री भट्ट ने अपनी जिदगी की शाम ढलने से पहले 14 जुलाई 1913 को दानपत्र रामलीला कमेटी को सौप दिया था। विभिन्न कमेटियों के सहयोग से हर वर्ष रामलीला का का मंचन होता है। कस्बे के लोगों की मांग पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने रामलीला के लिए आधुनिक तरीके से मंच बनाने के लिए पिछले वर्ष दस लाख रुपये दिए थे। भव्य मंच व दर्शकों के बैठने को स्टेडियम का निर्माण करवा दिया गया है। रामलीला के मंचन में हर वर्ष निखार आता जा रहा है। उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों से हर साल आने वाले कलाकारों का सुंदर अभिनय देखने की खातिर श्रद्धालुओं की तादाद भी हर वर्ष बढ़ती जाती है। आधुनिकता और बदलते परिवेश में भी यहां की रामलीला का अस्तित्व कम नहीं हुआ है। भूलता नहीं उनका अभिनय

नगर की रामलीला में सहयोग के साथ ही कुछ स्थानीय लोगों ने यादगार अभिनय भी किया है। उनके जैसा कुशल अभिनय इस मंच पर तो कम से कम अभी तक कोई नहीं कर सका है। इन्हीं में से एक हैं। आदित्य नारायण शर्मा। एक वक्त था जब वह मंच पर आते थे। तो हजारों की संख्या में जुटी भीड़ की निगाह उन पर टिक जाती थीं। राम सुग्रीव मित्रता के दौरान प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण को कंधे पर बैठाते तो लगता था जैसे हनुमान जी स्वयं मंच पर आ गए हों। इसके अलावा भी तमाम स्थानीय लोगों ने करारी रामलीला मंच पर काबिले तारीफ अभिनय किया है।

आजादी के बाद से निकलता है जुलूस

नगर में रामलीला शुरू तो 1729 ई. से हुई लेकिन यहां भरत-मिलाप का जुलूस आजादी के बाद 1948 से निकलना शुरू हुआ। पहली बार जब जुलूस निकाले जाने की बात आई तो भरत मिलाप के लिए जगह की व्यवस्था नहीं थी। लिहाजा महादेव वर्मा ने जुलूस का खर्च वहन किया और सुक्खू लाल भट्ट ने हमेशा के लिए सोनारन टोला मोहल्ले में स्थित अपनी जमीन भरत मिलाप के लिए दान दे दी। लोगों के सहयोग से अब मैदान काफी सुंदर बन गया है।

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