मशरूम से संवार रहे 'भविष्य', रिटायरमेंट के बाद 'सेवा'
आदमी चाहे तो अपनी तकदीर बदल सकता है पूरी दुनिया की तस्वीर बदल सकता है। जिदगी का फलसफा लिए हुए हिदी फिल्म के इस गाने को सेना से रिटायर मुनेश्वर सिंह ने अपना ध्येय बना लिया। उन्होंने पहले कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक आरके सिंह से ऑर्गेनिक मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद धान गेहूं बाजरे आदि की पारंपरिक खेती को छोड़कर मशरूम की खेती शुरू कर दी। आज वह दूसरे किसानों के लिए आदर्श बन गए हैं।
मूरतगंज : आदमी चाहे तो अपनी तकदीर बदल सकता है, पूरी दुनिया की तस्वीर बदल सकता है। जिदगी का फलसफा लिए हुए हिदी फिल्म के इस गाने को सेना से रिटायर मुनेश्वर सिंह ने अपना ध्येय बना लिया। उन्होंने पहले कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक आरके सिंह से ऑर्गेनिक मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद धान, गेहूं, बाजरे आदि की पारंपरिक खेती को छोड़कर मशरूम की खेती शुरू कर दी। आज वह दूसरे किसानों के लिए आदर्श बन गए हैं।
सेना से रिटायर हुए मूरतगंज ब्लाक के चंदवारी निवासी मुनेश्वर सिंह ने गांव आकर खेती करने का इरादा बनाया। इसके लिए वह कुछ अलग करना चाहते थे। पहले उन्होंने अपने संसाधन देखे। उनके पास एक पुराना घर था। जिसका वह प्रयोग नहीं कर रहे थे। उन्होंने घर को ही एक खेती का जरिया बनाने को ठाना और कृषि अनुसंधान केंद्र बरेली के वैज्ञानिक डॉ. आरके सिंह से संपर्क किया। वह उनके पूर्व परिचितों में थे। डॉ. आरके सिंह से प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने करीब एक साल पहले खेती शुरू की। कच्चे घर को उन्होंने मशरूम के खेती के अनुसार ढाला और बरेली से मशरूम के 500 बीज और बैग खरीदा। करीब एक माह की मेहनत के बाद फसल तैयार होने लगी। करीब 50 रुपये प्रति बैग की दर से लागत लगाने के बाद उन्होंने प्रतिदिन 30-50 किलो मशरूम का उत्पादन मिलने लगा। उन्होंने 150-180 रुपये की दर से मशरूम को बेचकर अच्छा लाभ कमाया। मुनेश्वर बताते हैं कि उनको करीब एक बैग में 450 रुपये का लाभ हो रहा है। उनका उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है। आसपास के किसानों ने मशरूम की खेती को लेकर अपनी रुचि दिखाई तो उन्होंने घर पर किसानों को बुलाकर सप्ताह में एक दिन का प्रशिक्षण शुरू कर दिया। उनके इस प्रयास की जानकारी डीएम अमित कुमार सिंह को हुई तो उन्होंने मुनेश्वर को कार्यालय बुलाया और उनके इस प्रयास की सराहना करते हुए हर संभव मदद का आश्वासन दिया। तीन माह में तैयार होता है ऑर्गेनिक ओएस्टर मशरूम
ऑर्गेनिक ओएस्टर मशरूम तीन माह की फसल है। एक कच्चे मकान में बीज को एक पॉलीथिन में डरकर उसमें चार-पांच किलो धान की भूसी या गन्ने का सुखा छिलका भरा जाता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पॉलीथिन बिलकुल टाइट रहे। इसके बाद बैग को रस्सी के सहारे टांग दिया जाता है। पॉलीथिन में नमी रहे। इसके लिए समय-समय पर पानी का हल्का छिड़काव जरूरी होता है। 25 दिन से एक माह में मशरूम का उत्पादन शुरू हो जाता है। एक बैग में तीन से चार किलो तक मशरूम प्राप्त किया जा सकता है। मशरूम की खेती जहां पर करें। वहां अंधेरा होना चाहिए। मशरूम खाने के फायदे
-मशरूम कैंसर रोधी है। इसका सेवन कैंसर व मरीज के लिए लाभदायक है।
-मधुमेह व हृदय रोग में भी फायदेमंद है। इसमें पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन निर्माण, फाइबर, रेशा की अधिकता, पोटेशियम की अधिकता, वसा, कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।
-गठिया रोगी और ट्यूमर के रोग से परेशान लोग भी खा सकते हैं। इसमें विटामिन बी, विटामिन 12, फॉरलेट, थाईमीन, नियासिन की प्रचुर मात्रा व आयरन व फास्फोरस की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
-यह मशरूम स्वास्थ्यवर्धक, औषधि गुणों से परिपूर्ण, रोग निरोधक, सुपाच्य खाद्य पदार्थ है। इसमें बहुत ही ज्यादा मात्रा में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। पूरी तरह ऑर्गेनिक है और खाने में बहुत स्वादिष्ट व लाजवाब है।