परंपरागत पानी की होली से बचने लगे है लोग
गुलाल से होली खेलने का क्रेज बढ़ता जा रहा है। हरवल और अरारोट के गुलाल की बाजार में भरमार है।
संवाद सहयोगी, कासगंज: पानी में रंग डालकर होली खेलने से अब लोग दूर होते जा रहे है। गुलाल की होली का क्रेज लोगों में बढ़ रहा है, जिससे गुलाल की मांग बढ़ी है। बाजार में हरवल और अरारोट से बने सतरंगी गुलाल की बाजार में भरमार हो गई है। इनकी बिक्री भी थोक बाजार में शुरू हो गई है।
एक समय था जब लोग पानी में रंग डालकर होली की मस्ती से खेलते थे। शहर से लेकर कस्बों तक हफ्तों पहले रंग के पानी की होली होने लगती थी। धूलिद्री के दिन तो हर गली कूंचे की छतों से होली के हुलियारों पर रंग के पानी की बौछार होती थी। चौक और चौबारे, गांव की चौपालों पर बड़े-बड़े बर्तन कढ़ाही और मिट्टी से पनी पशुओं के चारे की नादों में लोग रंग का पानी तैयार कर लेते थे और आने-जाने वालों पर बच्चे पानी डालते थे। शहर में तो रंग से भरे बड़े कढ़ाहे में लोगों को डाल दिया जाता था। रंग की होली की यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है, लेकिन अब लोग इससे बचने लगे है। अधिकांशत: लोगों में गुलाल की होली का क्रेज बढ़ता जा रहा है। बाजारों में हरवल और अरारोट से बने सतरंगी गुलाल की भरमार है। पानी के रंग की होली खेलना अब नहीं भाता है। छोटे थे तब पानी की होली खेलते थे। अच्छा भी लगता था। लेकिन अब गुलाल से होली खेलना पसंद है।
- सीमा, झंडाचौक केमिकल के रंग आते है। इनसे त्वचा भी खराब होती है। महंगाई का दौर है कपड़े भी खराब हो जाते है। गुलाल की होली खेलना अच्छा लगता है।
कंचन, मोहल्ला नाथूराम