घर कै नमक-रोटी कुबूल, नाही चाही बाहर की मलाई
घर कै नमक-रोटी कुबूल नाही चाही बाहर की मलाई
अजय दीक्षित, कानपुर देहात:
जा मजबूरी जौ ना करावै, कहिका आपन घर बार छोड़ि कै परदेश नीक लागत है। दिल मजबूत करिकै कसक मार कै चार साल पहिलै गुजरात गए रहन, साल बार बादि उहां किराया का कमरा लेहिन, बाद में पत्नी, एक बेटवा का भी उहैं बुला लीन, सब कुछ ठीक थौ, अचानक जौ कोरोना सब तहस नहस कहि दिहेस। अब तौ घर कै नमक-रोटी कुबूल है, बाहर की मलाई नाही चाही। यह दर्द है डेरापुर के शिवनंदन का।
यहां किस तरह गुजर बसर करेंगे? इस सवाल पर शिवनंदन का कहना है कि दो भाइयों के बीच डेढ़ बीघा जमीन में तो गुजर होने से रही। अब बलकट पर खेत लेंगे और मजदूरी भी करेंगे, लेकिन अहमदाबाद नहीं जाएंगे। उनके साथ लौटे 36 कामगारों में ज्यादातर का यही कहना है। उन्हे गांव में रहकर मजदूरी करके पेट पालना कुबूल हैं लेकिन परदेश नहीं जाना चाहते। अहमदाबाद में साड़ी फैक्ट्री में काम करने वाले रसूलाबाद के श्यामू के पास खेत नहीं हैं, बावजूद इसके वह अब बाहर नहीं जाना चाहते। बोले, मनरेगा के साथ आसपास मजदूरी कर पत्नी व दो बच्चों का पेट पालेंगे। रसूलाबाद के राम मनोहर, लालू और रूरा के सोनू अपने भाई ललित के साथ गुजरात में साड़ी फैक्ट्री में काम करते थे। वह भी अब वापस नहीं जाना चाहते हैं। झींझक के भोलानगर निवासी अमित व उमाशंकर चेन्नई में कुल्फी बेचते थे। बोले, बलकट पर खेत लेकर व मजदूरी कर गांव में रहकर गुजर बसर करेंगे।
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जो भी कामगार बाहर से आ रहे हैं उनके लिए तहसील व ब्लाक स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर बने हैं। सभी की सुविधा का ख्याल रखा जा रहा है। बाहर से आए लोगों को घर भेजने के दौरान राशन पैकेट भी देने के निर्देश हैं।
-राकेश कुमार सिंह, डीएम
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एक नजर में प्रवासी कामगार
अब तक लौटे- लगभग नौ हजार
आने की संभावना- लगभग 10 हजार