व्रत रख गन्ना और सिघाड़े से पूजा कर मनी देवोत्थान एकादशी

जागरण संवाददाता कानपुर देहात देवोत्थान एकादशी का पर्व पूरे जिले में परंपरागत तरीके से

By JagranEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2020 07:44 PM (IST) Updated:Wed, 25 Nov 2020 07:44 PM (IST)
व्रत रख गन्ना और सिघाड़े से पूजा कर मनी देवोत्थान एकादशी
व्रत रख गन्ना और सिघाड़े से पूजा कर मनी देवोत्थान एकादशी

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : देवोत्थान एकादशी का पर्व पूरे जिले में परंपरागत तरीके से मनाया गया। इस पर्व पर गन्ना, सिघाड़ा का खास महत्व होने के कारण अकबरपुर, शिवली, रसूलाबाद, झींझक, सिकंदरा, पुखरायां, सरवनखेड़ा, पुखरायां, रूरा सहित कस्बों में इनकी दुकानें चौराहों व नुक्कड़ों में सजी रही। मांग बढ़ने के साथ ही देर शाम तक दस रुपये में बिकने वाला गन्ना दोपहर बाद 20-25 रुपये तक बिक्री हुआ।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। इसी को हरि प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए जगत के पालनहार की जिम्मेदारी भगवान शिव को सौंप कर सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। बुधवार को जिले के ग्रामीण व कस्बा क्षेत्रों में देवोत्थान एकादशी का पर्व मनाया गया। महिलाओं ने व्रत रख विधिविधान से पूजा-अर्चना की। अकबरपुर चौराहा, रूरा मार्ग, शिवली, पुखरायां, डेरापुर, रसूलाबाद कस्बे के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान गन्ने के साथ ही सिघाड़े की बिक्री भी हुई। सुबह दस रुपये में बिक्री होने वाला गन्ना दोपहर बाद 20-25 रुपये तक पहुंच गया। ऐसे हुई पूजा -देवोत्थान एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। गन्ने का मंडप बनाकर बीच में चौक रखी और उसमें भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रखी। भगवान के चरण चिह्न बनाए गए, जिन्हें ढंक दिया गया। भगवान को गन्ना, सिघाड़ा व फल-मिठाई समर्पित कर घी का दीपक जला सुख-शांति की प्रार्थना की। रात भर दीपक जलने के बाद भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की। चरणों को स्पर्श कर शंख, घंटा और कीर्तन की ध्वनि के साथ उन्हें जगाया। देवोत्थान एकादशी के अवसर पर घर-घर तुलसी विवाह का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने व्रत रखने के साथ शाम को गन्ने और सिघाड़े आदि से भगवान का भोग लगाया।

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