रोजा रखने संग कोरोना से बचाव जरूरी
संवाद सूत्र शिवली माह-ए-रमजान का मुकद्दस महीना अल्लाह की हम पर नेमत है। मुस्लिम बंदे रोजा
संवाद सूत्र, शिवली : माह-ए-रमजान का मुकद्दस महीना अल्लाह की हम पर नेमत है। मुस्लिम बंदे रोजा को लाजिम पकड़े क्योंकि रोजे जैसी कोई और इबादत नहीं है। कोरोना वायरस के चलते यह बेहद जरूरी है कि सभी लोग सब्र से काम लें और घरों में ही नमाज अदा करें। यह बात बड़ी मस्जिद शिवली के पेश इमाम नूर मोहम्मद ने कही। मौलाना ने रोजेदारों को बताया कि रोजा शरीयत में तुलुफजर से लेकर गुरूब आफताब खाने-पीने और ख्वाहिशात नफ्सानी से अपने आपको रोकने का नाम है ।
रोजे का एक फायदा यह है कि ये कानून की पाबंदी सिखाता है। रोजे के जरिए इंसान एक मुकर्रर वक्त के लिए खाने पीने से भी रुक सकता है। अल्लाह का मकसद है कि इंसान कानून का पाबंद हो जाए, जब इंसान कानून की पाबंदी के जरिए हलाल चीजों से रुक सकता है तो वह हराम चीजों से भी रुक जाएगा। नफ्सानी ख्वाहिशों की तकमील से इंसान का नफ्श मजीद फलता है। तअल्लाकुम तत्तकून का यही मतलब है कि इंसान में तकवा जैसी अच्छी खशलत पैदा हो सके। कोरोना महामारी के कारण सभी लोग प्रशासन के जारी निर्देशों का हर हाल में पालन करें। कोई भी लोग इफ्तार में अधिक भीड़ एकत्र न करें और कोशिश करें कि घर के लोग ही शामिल हो। इसके अलावा मास्क पहनना न भूलें। हमें बीमारी से खुद को व दूसरों को भी हिफाजत रखना है।