पीएचसी के बाद भी झोलाछाप से उपचार को मजबूर
संवाद सहयोगी झींझक करीब 50 हजार लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी निभाने वाला प्राथमिक स्वास्
संवाद सहयोगी, झींझक : करीब 50 हजार लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी निभाने वाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कंचौसी बदहाल है। टूटी खिड़की, अस्पताल के आसपास गंदगी व खड़ी झाड़ियां के साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों का गैरहाजिर रहना जिम्मेदारों की उदासीनता को बयां करता है। इसका खामियाजा यहां के लोगों को उठाना पड़ रहा है और न चाहते हुए झोलाछाप से उपचार कराने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
झींझक ब्लाक के कंचौसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जहां इमरजेंसी वार्ड, जननी सुरक्षा वार्ड के साथ ही चिकित्सकों के रहने के लिए आवास की व्यवस्था है। इसके साथ ही डाक्टर आर कुमार, फार्मासिस्ट संजय पोरवाल, स्टाफ नर्स पुरुष समंदर सैनी, एलटी रामजीवन, सफाई कर्मी विवेक सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती है, लेकिन इसके बाद भी अस्पताल में ओपीडी के समय के बाद इमरजेंसी नहीं की जाती है। जननी सुरक्षा वार्ड होने के बाद भी आज तक एक भी प्रसव नहीं किए गए हैं। तैनात कर्मियों का कभी कभी आवासों में रुकना भी होता है, लेकिन आवास के चारो ओर गंदगी, कूड़े के ढेर के साथ ही झाड़ियां जिम्मेदारों की उदासीनता बयां कर रही हैं। इसके साथ ही आवास की खिड़कियां, शीशे टूटे हैं। वहीं अस्पताल में तैनात चिकित्सक की दो दिन झींझक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ड्यूटी रहती है, जिससे उन दिनों में फार्मासिस्ट व स्टाफ नर्स के सहारे ही अस्पताल चलता है। इससे क्षेत्र के लोगों को समस्या होने पर झींझक सीएचसी, औरैया के साथ ही झोलाछाप से उपचार कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अधीक्षक डा. राजेश कुमार ने बताया कि वैक्सीनेशन के कारण उनकी ड्यूटी सीएचसी में लगाई जा रही है। वहीं अस्पताल में सफाई के साथ ही रंगरोगन भी जल्द ही करवाया जाएगा। लोगों का दर्द
- इमरजेंसी सेवा न मिलने के कारण क्षेत्र के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही न चाहते हुए रात में झींझक व औरैया जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। - राजू पोरवाल - सप्ताह में दो दिन डाक्टर नहीं रहते हैं, जिससे फार्मासिस्ट के भरोसे अस्पताल चलता है। इससे आने वाले मरीजों को समस्या होती है जबकि कई बार समय से अस्पताल खुलता भी नहीं है। - देवेश पालीवाल - कंचौसी में पीएचसी होने के बाद भी झोलाछाप चिकित्सक से उपचार के लिए लोगों को मजबूर होना पड़ता है, लेकिन इसके बाद भी जिम्मेदार ध्यान नहीं दे रहे हैं। - सुधीर पोरवाल - समस्या को लेकर कई बार अधिकारियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों को भी बताया गया, लेकिन इसके बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हो सका। इसका खामियाजा आमजन को उठाना पड़ता है। - गुड्डू राजपूत