अंग्रेजों से मोर्चा लेते 13 रणबांकुरों ने दी थी शहादत

जागरण संवाददाता कानपुर देहात जिले का सबलपुर केवल एक गांव नहीं बल्कि आजादी का तीर्थस्थल

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 05:40 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 05:40 PM (IST)
अंग्रेजों से मोर्चा लेते 13 रणबांकुरों ने दी थी शहादत
अंग्रेजों से मोर्चा लेते 13 रणबांकुरों ने दी थी शहादत

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : जिले का सबलपुर केवल एक गांव नहीं बल्कि आजादी का तीर्थस्थल है। देश में जब 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई हुई तो यहां के लोग भी पीछे नहीं रहे। कई गांव के लोगों ने एकत्र होकर यहां अंग्रेज सेना पर हमला कर दिया। कई को जान से मार डाला और आखिरी में पकड़ लिए गए। सबलपुर में ही नीम के पेड़ में एक साथ 13 लोगों को फांसी दे दी गई थी। आज यहां शहीदों की याद में स्मारक बना है।

झींझक ब्लाक के सबलपुर में बना शहीद स्मारक हमें उन शहीदों की याद दिलाता है जिन्होंने अपने प्राणों को देश की आजादी की खातिर न्योछावर कर दिया। मई 1857 में अंग्रेज अफसर कालिन कैपवेल की सेना यहां पर थी। उस समय मंगल पांडेय के अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने की चर्चा हर तरफ थी। यहां के भी सबलपुर, झींझक व रसूलाबाद के लोगों ने देश के दुश्मन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की ठानी। सबलपुर के उमराव सिंह, देवचंद्र, रत्ना राजपूत, भानू राजपूत, परमू राजपूत, केशव चंद्र, धर्मा, रमन राठौर,चंदन राजपूत, बलदेव राजपूत, खुमान सिंह, करन व झींझक के बाबू उर्फ खिलाड़ी नट के साथ ही अन्य ने मोर्चा लिया। कई अंग्रेजों को उन्होंने अपनी वीरता के दम पर मार गिराया, लेकिन सेना बड़ी थी और वह लोग पकड़ लिए गए। इसके बाद नीम के पेड़ पर इन 13 लोगों को फांसी दे दी गई। मौजूदा समय में नीम का पेड़ तो नहीं रहा, लेकिन चबूतरा और शहीद स्मारक अभी भी क्रांतिकारियों की कुर्बानी की याद दिलाते हैं। वर्ष 2003 में इसका सुंदरीकरण कराया गया था। स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर यहां ग्रामीण एकत्र होकर इन शहीदों को याद करते हैं।

- शहीद खुमान सिंह हमारे परिवार के पूर्वज रहे और उनकी वीरता व देशप्रेम का ही असर रहा कि मेरे पिता ज्ञान सिंह स्वतंत्रता सेनानी रहे और जेल भी गए। आज भी शहीद स्मारक हमें देश प्रेम की सीख देता है।

- करन सिंह, शहीद खुमान सिंह के वंशज - सबलपुर में 13 वीरों ने अंग्रेजों को सबक सिखाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। अभी चौरीचौरा महोत्सव के दौरान यहां पर इन शहीदों को याद किया गया तो काफी सुखद लगा। हमें ऐसे लोगों को भूलना नहीं चाहिए जिनकी वजह से हम आज आजाद हैं।

- प्रो. संजू, इतिहास विभाग राजकीय महाविद्यालय अकबरपुर

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