Zika Virus: यूपी के तीन जिलों में पांव पसार चुका है ये घातक वायरस, जानें- लक्ष्ण, बचाव व इलाज

Zika Virus अभी तक माना जा रहा है कि डेंगू की अपेक्षा जीका घातक नहीं है लेकिन गर्भस्थ शिशु के लिए इसका संक्रमण खतरनाक है। इसलिए गर्भवती के लिए जीका वायरस से बचाव के एहतियात बरतना बहुत जरूरी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 16 Nov 2021 03:47 PM (IST) Updated:Tue, 16 Nov 2021 04:04 PM (IST)
Zika Virus: यूपी के तीन जिलों में पांव पसार चुका है ये घातक वायरस, जानें- लक्ष्ण, बचाव व इलाज
कहीं भी खुले में पानी जमा न होने दें

ऋषि दीक्षित, कानपुर। बीते साल तक दक्षिण भारत में सिमटा जीका वायरस अब मध्य तथा उत्तर भारत को डरा रहा है। अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में उत्तर प्रदेश के कानपुर में रहने वाले 57 वर्षीय एयरफोर्स अधिकारी में जीका संक्रमण की पुष्टि हुई। इसके बाद से अब तक कई संक्रमित मिल चुके हैं। इस वायरस ने अब करीबी जिले कन्नौज में भी दस्तक दे दी है। खबरें गुजरात और राजस्थान से भी हैं। जीका संक्रमण के वाहक डेंगू और चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्छर ही हैं। जीका वायरस के संवाहक एडीज एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस मच्छर होते हैं, जिन्हें टाइगर मच्छर भी कहा जाता है। एडीज मच्छर ही डेंगू, चिकनगुनिया व यलो फीवर के वायरस के संक्रमण फैलाने की वजह भी बनता है।

इस तरह से फैला संक्रमण: जीका वायरस सबसे पहले अफ्रीकी देश युगांडा के जीका जंगल में अप्रैल 1947 में बंदरों (रीसस मकाक प्रजाति) में पाया गया था। इस जंगल के नाम पर ही इसका नाम जीका रखा गया। यह आरएनए वायरस है। वर्ष 1952 में नाइजीरिया में पहली बार मनुष्य में जीका वायरस पाया गया। इसके बाद से कई अफ्रीकी देशों सहित भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में जीका वायरस के केस मिले।

शोधकर्ताओं ने इसे अफ्रीकन और एशियन की दो श्रेणियों में रखा है। वर्ष 2016 में जीका के अफ्रीकन वैरिएंट में पहली बार म्यूटेशन देखने को मिला, जो गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक था, मगर इसकी असली जटिलता गर्भ में पल रहे शिशु में देखने को मिलती थी। पाया गया कि जीका से संक्रमित मां में गर्भस्थ शिशु का सिर अत्यधिक छोटा व विकृत (माइक्रो सिफैली), गर्भपात, गर्भ में शिशु की मौत जैसी समस्याएं हुईं। वहीं जन्म के बाद भी ऐसे शिशळ् मैनेंजाइटिस, जापानी इंसेफलाइटिस के आसान शिकार साबित हुए।

ऐसे हो सकता है संक्रमण ब्लड ट्रांसफ्यूजन (खून चढ़ाने) से जीका संक्रमित मच्छर के काटने से संक्रमित साथी से शारीरिक संबंध से संक्रमित गर्भवती से गर्भस्थ शिशु को

ऐसे लगाते हैं पता: अगर कोई व्यक्ति जीका संक्रमणग्रस्त क्षेत्र में आया-गया है और आने के 7-14 दिनों के बीच बुखार, शरीर में लाल दाने आएं, बुखार बना रहे। मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली व कीचड़ तथा सिरदर्द बना रहे तो चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। इसकी जांच आरटीपीसीआर, ब्लड सैंपल, यूरिन, मस्तिष्क जल(सीएसएफ), गर्भ जल (एम्योटिक फ्लूड) आदि से होती है।

संक्रमण के लक्षण: जीका वायरस का संक्रमण होने के बाद 60 से 80 फीसद लोगों में कोई लक्षण ही नहीं उभरते हैं। वहीं 20-40 फीसद लोगों में तेज बुखार, शरीर में लाल दाने, लाल चकत्ते उभरते हैं। लाल दाने सबसे पहले पेट, छाती, इसके बाद बांह व जांघ तथा बाद में हाथ व पैरों से लेकर तलवों में उभर आते हैं। जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, पेट में ऐंठन, आंखों में लालिमा, जलन होने लगती है। इसके बाद प्लेटलेट्स काउंट कम होने लगता है। संक्रमण के दो हफ्ते बाद जीका वायरस का असर स्वत: न्यून हो जाता है। इसीलिए इसे सेल्फ लिमिटिंग वायरस भी कहते हैं।

इस तरह करें बचाव मच्छरदानी का इस्तेमाल करें हर दूसरे दिन फागिंग कराएं जिससे मच्छर खत्म हो जाएं कहीं भी खुले में पानी जमा न होने दें तालाबों में गंबूसिया मछली डालें, जो मच्छरों के लार्वा खाती है लेमन ग्रास का तेल व यूकेलिप्टस का तेल लगाने से मच्छर भागते हैं जहां पानी जमा हो, वहां जला हुआ मोबिल आयल डालें। इससे मच्छरों का प्रजनन और लार्वा की बढ़त रुकेगी

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