कोरोना में बुरा वक्त आया तो जेवरात ही सहारा बने, जानिए इन परिवारों की दर्द भरी कहानी
संक्रमण काल में अपनों को बचाने के लिए संघर्ष भले ही सफलता का सुखद अहसास करा रहा हो लेकिन जिंदगी की असली लड़ाई तो महामारी के बाद शुरू हुई है। यह सच है कि सराफा व्यवसायियों के प्रतिष्ठान पर आने वाले ग्राहकों में उनकी संख्या ज्यादा है
इटावा (सोहम प्रकाश)। बुजुर्ग सही कहते थे, ' बुरे वक्त का साथी है सोना ' कोरोना संक्रमण की दूसरी भयावह लहर गुजरने के बाद बाजार पहली जून से अनलाक है। सहालग नहीं है, फिर भी सराफा व्यवसायियों के प्रतिष्ठानों पर बड़ी संख्या में ग्राहक पहुंच रहे हैं। इनमें 40 फीसद ग्राहक वे होते हैं, जिनको गहने बेचने या गिरवी रखने हैं। सराफा बाजार की रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य दिनों की अपेक्षा सोने के गहने बेचने या गिरवी रखने वालों की संख्या ज्यादा है। कोई अंगूठी, कंगन, कुंडल, झुमकी, पायल बेचकर कोरोना संक्रमण काल की उधारी चुका रहा है तो कोई बच्चे की फीस भरने को मजबूर है। मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती, बड़े अरमानों से पत्नी के लिए पाई-पाई जोड़कर बनवाई गई गले की चैन अब दो वक्त पेट की खुराक का जरिया भी बन रही है।
यही है कोरोना महामारी के बाद का असल दृश्य। संक्रमण काल में अपनों को बचाने के लिए संघर्ष भले ही सफलता का सुखद अहसास करा रहा हो, लेकिन जिंदगी की असली लड़ाई तो महामारी के बाद शुरू हुई है। यह सच है कि सराफा व्यवसायियों के प्रतिष्ठान पर आने वाले ग्राहकों में उनकी संख्या ज्यादा है, जो सोने का भाव 48 हजार रुपये के आसपास टिके रहने से पुराने जेवरात बेचकर मुनाफा लेने के साथ-साथ नई डिजाइन के जेवरात बनवाना पसंद कर रहे हैं, लेकिन कुल ग्राहकों में रोजाना 40 फीसद ग्राहक जेवरात बेचने अथवा गिरवी रखने को मजबूर हो रहे हैं, तो यह स्थिति वाकई काफी चिंताजनक है। सराफा की दुकान पर पहुंची एक महिला ने चैन दिखाते हुए मोलभाव किया तो दुकानदार ने मजबूरी पूछी, तो उसने बताया जब सुहाग ही उजाड़ गया तो अब चैन पहनकर ही क्या करेगी, बच्चों का पेट तो पालना ही है। एक व्यक्ति ने बताया कि उसकी जॉब छूट गई, लेकिन मकान की किश्त भरना जरूरी है, इसलिए अंगूठी बेचने आया है। केस 1 : पत्नी ज्योति रही नहीं, तो अब जेवर का भी क्या करेंगे। बेचकर पांच लाख का कर्ज चुकाने की कोशिश कर रहे हैं। कोरोना संक्रमित पत्नी को बचाने के लिए इलाज वास्ते नाते-रिश्तेदारों से रुपये उधार लिए थे। इटावा से रायबरेली तक बहुत भागे-दौड़े, फिर भी ज्योति को बचा नहीं सके। यह कहना है जनता कालेज बकेवर में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उन्नाव निवासी ऋषिराज का। केस 2 : जुगरामऊ के सहदेव सिंह कुशवाहा कोरोना संक्रमित हुए, तो उनके इलाज के दौरान ही पत्नी शीला देवी को गहने गिरवी रखने पड़ गए थे। सहदेव नहीं रहे तो घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अमित कुशवाहा बताते हैं मामा सहदेव के न रहने पर उनके तीन छोटे-छोटे बच्चों को नाना-नानी संभाल रहे हैं। मामा खुद की फोरव्हीलर गाड़ी को भरण पोषण का जरिया बनाए हुए थे। केस 3 : धमना की मड़ैया गांव के गांधी सिंह बताते हैं कि कोरोना की वजह से किसानों की आर्थिक स्थिति भी गड़बड़ा गई है। पशुओं के दूध की बिक्री कोरोना काल में कम हुई थी, जिससे पशुओं को चारा आदि खिलाने और परिवार का पेट पालने के लिए सोने की अंगूठी और कुंडल बेचकर परिवार का भरण-पोषण कर सके। कोरोना महामारी में बुरा वक्त आया तो जेवरात ही सहारा बने।
इमरजेंसी में काम आता है गोल्ड लोन : यह एक ऐसा लोन है, जिसे लोग किसी खास वित्तीय जरूरतों को तत्काल पूरा करने के लिए लेते हैं। यानी यह किसी आकस्मिक जरूरत में काम आने वाला एक इमरजेंसी फंड की तरह है। इसकी जरूरत हाई एजुकेशन, शादी-ब्याह, घर की मरम्मत, मेडिकल इमरजेंसी, ट्रैवल, डाउनपेमेंट आदि करने में पड़ सकती है। सोना बेहद कम समय में कैश में बदल सकता है।
साहूकारों, रिश्तेदारों ने की मदद : लाकडाउन के दौरान बाजार बंद थे और बैंकों ने भी अपने यहां सोना गिरवी रखना प्रतिबंधित कर रखा था। उस समय ग्रामीण और नगर के साहूकारों एवं रिश्तेदारों ने सोने के आभूषणों को अपने यहां गठोन (गिरवी) के रूप में रखकर रुपयों से परेशान जरूरतमंदों की मदद की। हमारी परंपराएं भी ऐसी हैं कि सोना खरीदना मजबूरी भी है। अक्षय तृतीया, धनतेरस जैसे पर्व पर सोना खरीदने का चलन है। बेटियों के ब्याह में भी सोना खरीदते हैं। महिलाएं अपनी सुंदरता में चार चांद लगाने के लिए स्वर्णाभूषण खरीदती हैं। यानी सोना खरीदने की पूरी वजहें हैं। भविष्य में आने वाले बुरे वक्त के लिए भी सोना खरीदना अच्छा माना जाता है। सोना एक बढिय़ा निवेश भी है।
सराफा बाजार 300 करीब सराफा प्रतिष्ठान जनपद में 2 से 2.5 करोड़ का इन दिनों कारोबार 40 फीसद ग्राहक रोजाना बेच रहे गहने
इनका ये है कहना
आकाशदीप जैन, प्रदेश सह प्रभारी, इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन
राजीव चंदेल, सेक्रेटरी, इंडिया बुलियन एंड जवैलर्स एसोसिएशन दूसरे वर्ष भी लगे लाकडाउन से सराफा कारोबार प्रभावित हुआ है। कई सराफा कारोबारियों ने सराफा कारोबार बंद कर रेस्टोरेंट और खानपान से संबंधित कारोबार कर लिया है। सोने के आभूषणों को बेचकर जरूरतमंद व्यक्ति दवा, राशन सहित अन्य जरूरतों को पूरा कर रहा है। अनलाक में सराफा बाजार में कारोबार बढ़ा है, तो उसमें एक वजह मजबूरीवश गहनों को बेचना अथवा गिरवी रखना भी है।
आलोक दीक्षित, सदर अध्यक्ष व्यापार मंडल