Dussehra Special 2020: मानस की चौपाई, उर्दू की ढाई और सौहार्द की शहनाई, उत्तर भारत में अनूठी है ये रामलीला

कानपुर के पाल्हेपुर में 158 साल पहले वाराणसी के संत गोविंदाचार्य द्वारा शुरू कराई गई 20 दिवसीय रामलीला का आयोजन दशहरा से दीपावली तक होता है इसमें गांव के ही बच्चे युवा और बुजुर्ग प्रत्येक पात्र का अभिनय जीवंत करते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 07:43 AM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 07:43 AM (IST)
Dussehra Special 2020: मानस की चौपाई, उर्दू की ढाई और सौहार्द की शहनाई, उत्तर भारत में अनूठी है ये रामलीला
कानपुर के पाल्हेपुर गांव बना रावण का पुतला।

कानपुर, [शैलेंद्र त्रिपाठी]। मानस की चौपाई, उर्दू की ढाई (स्वागत गान) और सौहार्द की शहनाई। ये कानपुर के नर्वल क्षेत्र स्थित पाल्हेपुर गांव की रामलीला के तीन अनूठे दर्शन हैं। उत्तर भारत में सबसे अलग और अद्भुत 158 साल पुरानी रामलीला के मंचन में वर्तमान में भी गंगा-जमुनी तहजीब की 'त्रिवेणी' बह रही है। दशहरा से दीपावली तक मंचन होता है, जबकि रावण वध धनतेरस के दिन किया जाता है। गांव के ही बच्चे, युवा और बुजुर्ग मंचन करके प्रत्येक पात्र का अभिनय जीवंत करते हैं। 

वाराणसी के संत ने कराई थी शुरुआत

पाल्हेपुर की अनोखी रामलीला की शुरुआत वाराणसी से आए संत स्वामी गोविंदाचार्य ने कराई थी। बिधनू के मंझावन गांव निवासी गज्जोदी मियां ने मानस की चौपाइयों पर शहनाई वादन शुरू किया था। वह परंपरा अब उनकी पांचवीं पीढ़ी के लालू मियां निभा रहे हैं।

दिन में काम, रात में मंचन

गांव के ही पात्र पाल्हेपुर रामलीला की खासियत हैं। ये सभी पात्र दिन में अपनी घरेलू जिम्मेदारियां निभाते हैं, जबकि रात में समय से अपने-अपने किरदार का मंचन करते हैं। इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अब शहर या बाहर रहने लगे हैं, लेकिन वह मंचन के समय अपनी भूमिका में दिखते हैं।

अंग्रेजों ने रामलीला पर बैठाया था पहरा

रामलीला समिति के महामंत्री कल्याण सिंह के मुताबिक, उनके पिताजी बताते थे कि आजादी के आंदोलन के समय भी रामलीला आसपास के सैकड़ों गांवों तक लोकप्रिय थी। झंडागीत के रचयिता नर्वल निवासी श्याम लाल गुप्त 'पार्षद' भी प्रतिवर्ष पहुंचते थे। एक बार अंग्रेजों ने पार्षद जी की तलाश में रामलीला स्थल के चारों तरफ सैनिक तैनात कर दिए थे। इस पर पार्षद जी वेश बदलकर आए और निकल भी गए थे।

क्या है ढाई

आइयो बढ़ाइयो दौलत को, राह पे रकीब कदम दर कदम। माहे कातिब से निगाहें रूबरू, आदम-स्यादा उमर दौलत ज्यादा, श्रीरामचंद्रम मेहरबां सलामो। यह ढाई स्वागत गान है। इसका अर्थ है कि हे रामचंद्र जी आप आइए और हमारी दौलत को बढ़ाइए, हमारे कदम-कदम पर दुश्मन हैं पर इस महीने आपके प्रत्यक्ष दर्शन होने पर इन पंक्तियों को लिखने वाले की उम्र और दौलत बढ़ेगी। हे रामचंद्र जी आप की मेहरबानी है, आपको सलाम है।

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