Padma Shri Award 2021: पिता की विरासत को संभाल फलक पर पहुंची बेटी ने बढ़ाया कानपुर का मान
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. उषा यादव के पिता भी बाल साहित्यकार थे। उनका बचपन कानपुर में बीता और स्कूल की मैग्जीन में पहली कविता छपी थी। उन्होंने सीएसजेएमयू से पीएचडी करते हुए शहर के साहित्यिक माहौल से सीखा।
कानपुर, जेएनएन। पद्मश्री से सम्मानित हुईं डॉ ऊषा यादव ने अपने पिता की विरासत को संभाला और फलक तक पहुंचीं। उनका बचपन शहर में ही बीता, स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई भी यहीं हुई। कानपुर विश्वविद्यालय (अब छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय) से पीएचडी करने के साथ ही साहित्यिक माहौल वाले शहर ने उन्हें सब कुछ सिखाया। वह कहती हैं, यहां का साहित्यिक वातावरण लेखन में धार लाता है। लोगों की बोलचाल की भाषा में भी मुहावरे और लोकोक्तियां रहती हैं। उसका फायदा उन्हें भी मिला।
अधिवक्ता पिता के किताबों के संग्रह ने बनाया साहित्यकार
हिंदी साहित्यकार व लेखिका डॉ. उषा यादव ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि उनके पिता चंद्रपाल सिंह मयंक बाल साहित्यकार थे। वह अधिवक्ता भी रहे। उनकी बहुत सी किताबें और कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। वह न्यायिक क्षेत्र से जुड़े होने की वजह से उनको जज बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से शिक्षण और लेखन में रही। डॉ. ऊषा के मुताबिक, उनकी पहली कविता जब वह कक्षा नौ में थीं, तब स्कूल की मैग्जीन में छपी। उस दिन के बाद से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बस साहित्य और कहानियों की रचनाओं की ओर बढ़ती गईं।
आगरा विवि से डिलीट करके शुरू किया पढ़ाना
आगरा विश्वविद्यालय से डी लिट किया और फिर वहीं के एक शिक्षण संस्थान में पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा में नियुक्ति हुई और वहीं से प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत हुईं। आगरा में ही पति डॉ. राज किशोर सिंह और अन्य परिजनों संग रह रही हैं। डॉ. राज किशोर सिंह स्वयं कॉलेज से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं। वह उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के पूर्व सदस्य भी रह चुके हैं।
महिलाओं और बच्चों पर साहित्य व कहानियां
डॉ. उषा बताती हैं कि उनके साहित्य और कहानी संग्रह महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ऊपर होते हैं। उन्होंने सौ से अधिक पुस्तकें इन्हीं पर लिखी हैं। वर्तमान में बच्चों का बचपन संकटग्रस्त है। बच्चा अगर अच्छे खासे घर का है तो उसके पास सब कुछ है, सिवाय माता-पिता के समय के। वह अकेला और उदास रहता है। मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों पर माता-पिता की आशाओं का दबाव है। उन पर हमेशा थोपा जाता है कि उन्हें यह करना है, वह नहीं करना है। निर्धन वर्ग के बच्चे पर रोटी और पेट भरने का संकट है। उसका बचपन उसी की पूर्ति में बीतता चला जाता है। इसी तरह महिलाओं और बच्चियों पर असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। वह बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं।
मंच के लिए कभी बाहर नहीं गईं
डॉ. उषा के मुताबिक, वह मंच के लिए कभी बाहर नहीं गईं। उन्हें लेखन और साहित्य सृजन ही पसंद है। आगरा में जरूर कवि गोष्ठियों में शामिल होती रहती हूं। वहां कविताओं की प्रस्तुति भी दी है।
कानपुर से गहरा लगाव
उन्होंने बताया कि कानपुर से गहरा लगाव है। हमेशा आना-जाना रहता है। उनके कई रिश्तेदार यहां पर रहते हैं। शहर में पहले के मुकाबले बहुत कुछ बदल गया है। आने-जाने से स्मृतियां ताजा हो जाती हैं।
पहले भी कई पुरस्कार मिले उसके हिस्से की धूप उपन्यास के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग ने महात्मा गांधी द्विवार्षिक हिंदी लेखन पुरस्कार से नवाजा गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से बाल साहित्य भारती पुरस्कार मिला। इलाहाबाद में मीरा फाउंडेशन की ओर से मीरा स्मृति सम्मान मिला। काहे री नलिनी उपन्यास के लिए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी ने सम्मानित किया। भोपाल में बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र की ओर सम्मानित।