पानी बचाने का नायाब उदाहरण पेश करेगी कानपुर की मेट्रो, ग्रे और ब्लैक वाटर के लिए अलग अलग प्लांट

कानपुर में मेट्रो डिपो में जल संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाएगा और यहां इस्तेमाल सारा पानी अंदर ही प्रयोग किया जाएगा। एक बार इस्तेमाल हो चुका पानी दोबारा इस्तेमाल करने के लिए वाटर रीसाइकिल प्लांट लगेंगे ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 08:53 AM (IST) Updated:Tue, 04 May 2021 08:53 AM (IST)
पानी बचाने का नायाब उदाहरण पेश करेगी कानपुर की मेट्रो, ग्रे और ब्लैक वाटर के लिए अलग अलग प्लांट
मेट्रो प्रबंधन का जल संरक्षण पर जोर है।

कानपुर, [जागरण स्पेशल]। यात्रा को सुगम बनाने के साथ मेट्रो जल संरक्षण का कार्य भी करेगी। मेट्रो प्रबंधन का जल संरक्षण पर शुरू से ही पूरा जोर है, एक ओर जहां हर दूसरे पिलर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था कराई जा रही है, वहीं मेट्रो डिपो में भी पानी की बर्बादी रोकने के लिए उपाय किए जा रहे हैं। यहां पर जल संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाएगा और इस्तेमाल पानी का दोबारा प्रयोग करने के लिए अलग अलग प्लांट भी स्थापित किए जा रहे हैं।

एक ट्रेन को साफ करने लगेगा सिर्फ 150 लीटर पानी

मेट्रो के ऑटोमेटिक वाशिंग प्लांट में जैसे ही ट्रेन अंदर जाएगी। उसे पूरी तरफ साफ करने में मात्र 150 लीटर पानी खर्च होगा। यह पानी भी मेट्रो डिपो में इस्तेमाल हो चुका पानी होगा और ट्रेन धोने के बाद इसे फिर रिसाइकिल के लिए भेज दिया जाएगा। मेट्रो के गीतानगर डिपो में जितना भी पानी किसी भी तरह इस्तेमाल होगा, उसका एक बूंद भी बाहर डिस्चार्ज नहीं होगा। सारे पानी का वहीं उपयोग किया जाएगा। गीता नगर और पॉलिटेक्निक मेट्रो डिपो के बीच डिपो लाइन तैयार की जा रही है। डिपो में प्रवेश से पहले डिपो लाइन पर बने ऑटोमैटिक वॉश प्लांट लगाया जाएगा। रात में डिपो में खड़ी होने जा रही ट्रेनों को प्रवेश के दौरान ही साफ किया जाएगा।

पांच चरणों में होती सफाई

मुख्य रूप से पांच चरणों में मेट्रो की सफाई होती है। पहले चरण में ट्रेन पर पानी छिड़का जाता है, ताकि ऊपरी सतह पर लगी गंदगी हट जाए और ट्रेन की बॉडी का तापमान कम हो जाए। तापमान कम करने का तकनीकी उद्देश्य यह होता है कि इसकी वजह से सरफेस टेंशन कम हो जाता है। इसके बाद अगले चरण में जब ट्रेन पर डिटर्जेंट स्प्रे किया जाता है तो डिटर्जेंट ट्रेन की बॉडी पर ठीक से चिपकता है। तीसरे चरण में ट्रेन की सतह को पानी और ब्रश से रगड़ कर साफ़ किया जाता है। इसके बाद एक बार फिर पानी से ट्रेन को धोया जाता है जिससे ट्रेन पर किसी तरह के दाग न रह जाए। अंत में ब्लोअर की हवा से ट्रेन पर लगे पानी को सुखाया जाता है और ट्रेन यार्ड में खड़ी होने के लिए चली जाती है।

वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट के लिए लगेंगे दो प्लांट

गीतानगर डिपो जीरो डिस्चार्ज पर आधारित होगा। यहां वेस्ट वॉटर को निस्तारित या डिस्चार्ज नहीं किया जाएगा। इसे रीसाइकल करके अलग-अलग कार्यों इस्तेमाल किया जाएगा। यहां साफ पानी और रीसाइकल्ड पानी के लिए अलग-अलग पाइप लाइन डाली जाएंगी।

ग्रे और ब्लैक वाटर के लिए अलग-अलग प्लांट होंगे

डिपो में दो अलग-अलग ट्रीटमेंट प्लांट लगेंगे। किचन, वॉशरूम और फ्लोर क्लीङ्क्षनग से निकलने वाले ग्रे पानी को रीसाइकल करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगेगा। वहीं ऑटोमैटिक वॉश प्लांट में ट्रेनों की सफाई और मेंटीनेंस शेड में ट्रेनों की मरम्मत आदि से निकलने वाले केमिकलयुक्त वेस्ट वॉटर जिसे ब्लैक वॉटर कहा जाता है। इसे रीसाइकल करने के लिए एफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीवी) लगाया जाएगा।

10 हजार लीटर का होगा एसटीपी

डिपो में लगने वाले एसटीपी की क्षमता 10 हजार लीटर प्रतिदिन और ईटीपी की क्षमता 70 हजार लीटर प्रतिदिन की होगी। दोनों प्लांट से रीसाइकल हुए पानी को फिर से ट्रेनों की सफ़ाई, हॉर्टीकल्चर के प्रबंधन और वॉशरूम में फ्लशिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

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