कानपुर में Travel Agency वाले नोटों की गड्डी से चला रहे पूरा सिस्टम, सरकार की तो सिर्फ तनख्वाह लेते हैं अधिकारी
ट्रैवल एजेंसी संचालित करने को जीएसटी में पंजीयन जरूरी है। कानपुर ट्रैवल एजेंसी एसोसिएशन का दावा है कि यहां सिर्फ आठ एजेंसियां ही जीएसटी में पंजीकृत हैं। बाकी असली नामों से मिलते-जुलते नाम रखकर धोखा दे रहे हैं। सर्वाधिक संख्या फजलगंज में है।
कानपुर (गौरव दीक्षित)। शहर में महज आठ पंजीकृत ट्रैवल्स एजेंसियां हैं, जबकि हकीकत में सौ से अधिक अवैध रूप से कारोबार कर रहीं हैं। उनसे लाखों की कमाई करने वाला सिस्टम उनके ही इशारों पर नाचता है। सचेंडी सड़क हादसे में 18 मौतों के बाद बुधवार को दैनिक जागरण ने पड़ताल की तो पता चला है कि ट्रैवल एजेंसियों के काले धंधे में पुलिस, प्रशासन, आरटीओ से लेकर रोडवेज की मिलीभगत है। इनकी नाक तले ट्रैवल एजेंसियां यातायात नियमों को तार-तार करती हैं, मगर कागजी खानापूरी करने के अलावा कभी किसी के खलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हो सकी।
बिना पंजीयन मिलते-जुलते नामों से खेल : ट्रैवल एजेंसी संचालित करने को जीएसटी में पंजीयन जरूरी है। कानपुर ट्रैवल एजेंसी एसोसिएशन का दावा है कि यहां सिर्फ आठ एजेंसियां ही जीएसटी में पंजीकृत हैं। बाकी असली नामों से मिलते-जुलते नाम रखकर धोखा दे रहे हैं। सर्वाधिक संख्या फजलगंज में है। झकरकटी पुल की ढलान से अफीम कोठी चौराहे तक भी इनके दफ्तर हैं। इनके खिलाफ कभी अभियान नहीं चला।
रात में ही गायब हो गए बैनर-होॄडग : झकरकटी पुल की ढलान से अफीम कोठी चौराहे के बीच सिर्फ कुर्सी-मेज डालकर बनाए गए कोठरीनुमा दफ्तरों से मंगलवार रात सचेंडी सड़क हादसे के बाद होॄडग-बैनर उतर गए।
यह है सवारी भरने का नियम : लंबी दूरी की यात्रा के लिए ट्रैवल एजेंसियों में दो तरह की बसें हैं। एक 36 सीटर और दूसरी 30 सीटर स्लीपर बस। नियमानुसार वातानुकूलित बसों का किराया दोगुना होता है, इसलिए इनमें एक सीट पर सिर्फ एक ही सवारी जानी चाहिए। नॉन एसी में यह संख्या दोगुनी हो सकती है। इसके बावजूद ट्रैवल एजेंसियां नॉन एसी बसों में 100 से 120 तक यात्री बैठाते हैं। कई बार ते ये संख्या 150 तक पहुंच जाती है।
गुजरात और राजस्थान की ट्रैवल एजेंसियां उप्र पर भारी : आरटीओ व पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि उप्र की ट्रैवल एजेंसियों पर गुजरात और राजस्थान की कंपनियां भारी पड़ रही हैं। इनका यहां की गैर पंजीकृत एजेंसियों से कमीशन पर करार है। उनके लिए सवारियों की व्यवस्था यही एजेंसियां करती हैं। मंगलवार रात को हुए हादसे में मिले टिकटों से यह बात साफ होती है। सूत्रों के मुताबिक, फजलगंज में पिछले तीन माह में 17 बसों का चालान हुआ, जिसमें 14 गुजरात और राजस्थान नंबर की हैं। ये चालान भी सिर्फ कागजी खानापूरी है, जिससे वक्त आने पर कागजी लिखा-पढ़ी को ढाल बनाया जा सके।
रोडवेज बस स्टैंड से बैठाते सवारियां, अफसरों तक पहुंचती रकम : पता चला है कि शहर में पुलिस, आरटीओ, प्रशासन और रोडवेज विभाग के कर्मचारियों का सिंडीकेट है। इस गैंग में कुछ तथाकथित पत्रकार भी शामिल हैं। तमाम रोडवेज बस के चालकों के पास इन अवैध एजेंसियों के मोबाइल फोन नंबर होते हैं। शहर आने से पहले ही ये उन्हेंं बता देते हैं कि उनकी बस में अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, जयपुर, आगरा या अन्य लंबी दूरी तक जाने वाले यात्री हैं। इसपर ट्रैवल एजेंसी वाले वैन या अन्य कोई साधन लेकर जाजमऊ पुल, रामादेवी या गुमटी के पास पहुंचकर सवारियों को झकरकटी या फजलगंज पहुंचने से पहले ही उतार लेते हैं। साथ ही बसों की तलाश में झकरकटी बस स्टैंड पर खड़े यात्रियों को भी बैठाते हैं। इसके लिए बड़े अफसरों को बाकायदा रकम पहुंचाई जाती है। यहां तैनात रहे एक तत्कालीन एसएसपी की शह पर कथित पत्रकारों के एक गिरोह को बस स्टैंड से सवारियां भरने का ठेका मिला हुआ था।
बिचौलियों को 20 से 30 फीसद कमीशन, प्रतिदिन लाखों की कमाई : सवारियां ढोने के खेल में रोजाना लाखों की कमाई है। ट्रैवल एजेंसियां बिचौलियों को 20 से 30 फीसद तक कमीशन देती हैं। सूत्र बताते हैं, गैंग प्रतिदिन दो हजार सवारियां एजेंसियों की बसों को देकर चार से छह लाख रुपये कमाता है।